Sunday 9 August 2015

मेरा अध्यात्म मेरी आवारगी है

बताया था ना कुछ एक महीने पहले अटकते भटकते उत्तराखंड के कैंची धाम पहुंची थी --- बाबा नीब करौरी को और जानने की इच्छा से  लौटते समय आश्रम से कुछ किताबें ले आयी थी ! जितना पढ़ती गयी उतनी ही उलझती गयी …अध्यात्म की शक्ति से अभिभूत हूँ या चमत्कार की कहानियों से ………… कहना अभी भी कठिन है।

योगानंद परमहंस की लिखी किताब से लहडी महाशय और महावतार बाबा जी की आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला था।  उसके बाद लम्बे अरसे तक उनके साहित्य को पढ़ा ……   पढ़ने के बाद याद आया कि किताब में जिन जगहों का जिक्र हुआ उन में से अल्मोड़ा प्रवास के दौरान बहुत सी जगह मैं जा चुकी हूँ ……जागेश्वर के जंगलों में शिव का प्रवास अनुभव हुआ !! लगा कि सब कुछ तय है ,प्रकृति की टाइमिंग के आगे हर प्लानिंग बेकार है।

एक लम्बे अरसे तक ब्रह्माकुमारी शिवानी को सुनती रही ,आज भी उसको सुनना अच्छा लगता है तो मन हुआ कि ब्रह्माकुमारी जाकर और  नज़दीक से अनुभव किया जाये  ....... संयोग  कहिये कि माउन्ट आबू में फैमली वेकेशन के लिए सर्किट हाउस के जिस कॉटेज को बुक कराया वहां से आश्रम कुछ ही मीटर की दूरी पर  था।

कितना अजीब है ,सब कुछ कितना तय होता है -- वक्त -जगह सब कुछ तय है फिर "मैं " क्या तय करता हूँ ?
रास्ते तय हैं ,मंजिलें तय हैं ,साथी तय हैं ,माध्यम भी तय हैं …………घड़ी की सुई सी देह जन्म दर  जन्म टिकटिकाती रहती है।  कभी प्रेम का कर्ज कभी नफरतों के घाव लिए हर जन्म में नए कलेवर में आमने -सामने होते रहते हैं --- पुराने चुकते नहीं ,नए तैयार हो जाते हैं।

रास्ते पुकार रहे हैं……पंछी किस दिशा में उड़ जाएगा कौन जाने लेकिन नियति का संकेत स्पष्ट है कि लौट के वहीं आना है जहाँ के कुछ कर्ज बाकी हैं।

अब तक जहाँ भी गयी लगा कि पहली बार नहीं आयी हूँ ,लौट आयी हूँ .......मेरा अध्यात्म मेरी आवारगी है और खुद में ही लौट आना ही मेरी नियति है।





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