Thursday 31 December 2015

काल की गति कैलेंडर की मोहताज नहीं है........ !!

वक़्त ने बीतना होता है , बीत जाता है। हम तारीखों को ढोते हैं और समय हमारी कलाईयों पर बंधे रहने का भरम देता हुए हमें कहीं पीछे छोड़ जाता है। आगे बढ़ना भी कहाँ हो पाता  है। जो पीछे छूट गया वो भला था या बुरा था जैसा भी रहा गुज़र गया.......  कुछ सीखा कि नहीं ,नहीं कह सकती ये भी वक्त ही तय करेगा। 

खुशनसीबी पर इतराने को जी करता है तो दूसरे ही पल मन उदास भी हो जाता है। लम्हे बड़े सौदाई होते हैं ,हर एहसास की कीमत मांगते हैं। सिर पर प्यार करने वालों का उधार चढ़ा है उधर नफरत करने वाले दरवाजा पीट रहे हैं। मैं किस से तकाजा करूँ ? दोनों ही मेरे अपने हैं.......  मेरे ही लेनदेन के खाते है। 

जाईये गुज़र जाईये , हर गली में सौदाई हैं ,हर गली जज्बात बिकते हैं , रिश्तों की होली जलती है कभी ख्वाबों की दिवाली मनती है। ये कारवां है  जिधर से गुज़र जाए जिंदगी , अजब रंग बिखरे हैं गज़ब लोग मिलते हैं। 

 ये साल शानदार रहा , उम्मीद से बेहतर हासिल किया और उम्मीद से कहीं अधिक खो भी  दिया। पाया जो कुछ सर माथे , जो खोया उसका हौसला जुटाने में जो पाया वो भी उम्मीद से बढ़ कर पाया। अफ़सोस कुछ नहीं बस यही तल्ख़ी रह गयी कि कुछ सितारे जो फ़लक पर चमक सकते थे वो अनजाने ही जमीन पर आ गिरे और मैं निमित्त बन गयी। 

तोड़ देते हैं कुछ पल, कुछ भरोसे डगमगा जाते हैं ,कुछ उम्मीदें जला के ख़ाक कर देती हैं लेकिन दूसरे ही पल कुछ नए लम्हे हाथ आगे बढ़ा  देते हैं........   विश्वास  लौट आता है , भरोसा और बढ़ जाता है कि ईश्वर हमारे लिए कभी गलत चुन नहीं सकता। 

मैंने जो चुना गलत चुना पर वही सजा मेरे लिए नियति ने तय कर रखी थी कि मैं ठोकर खा लूँ तो समझूँ कि जिंदगी सीधा सपाट मैदान नहीं है। घुटने छिले हैं तो दर्द भी होगा ,कुछ तमाशबीन हंसेंगे भी लेकिन जख्म याद दिलाता रहेगा कि काल की गति कैलेंडर की मोहताज नहीं है। 

मैंने जो निर्णय किये वो सही थे क्यूंकि उन्हीं ने मुझे सच को जीने का हौसला दिया। नई मंज़िलों के पते मिले ,नया आसमान मिला। ईनाम के तौर  मिली किसी अजनबी मुस्कुराहट की कीमत  लगाई ही नहीं सकती।  

जो किया दिल से किया ! शिकायत किसी से अब कोई बाकी नहीं..........  कटुता शेष नहीं केवल मंगल कामनाएं हैं .......  नियति क्या चुन के लाई है पता नहीं पर मेरी दुआएं आप के हर नेक कदम पर आपके साथ हैं। 

2016 मेरे जीवन में तुम्हारा स्वागत है !




Saturday 12 December 2015

वो एक रिश्ता है , डूबने लगती हूँ तो हाथ बढ़ा देता है .........

जिंदगी के कैनवास पर जितनी भी बार नज़र डालो हर तस्वीर कुछ पहचानी सी लगती है मनो कल की ही बात हो , कभी बोलती से लगती है कभी सिर्फ खामोशी से मुझे देखती है।  इन तस्वीरों में एक उसका चेहरा भी है जो हर तस्वीर के पीछे से मुझे खामोशी से देख रहा है। बरसों का खामोश साथ है , कितने रंग चढ़े और फीके भी पड़ गए पर उसकी चमक कभी गयी ही नहीं।

वो एक रिश्ता है , डूबने लगती हूँ तो हाथ बढ़ा देता है और जब तैरने का जी चाहता है खामोशी से मुझे लहरों के साथ खेलते देख मुस्कुरा भर देता है। उसके किनारे पर बैठ मुझे देखते रहना बड़ा सुकून देता है। ये यकीन हो जाता है कि शाम ढ़ले वहीं किनारे उसी से मुलाक़ात होगी।

अल्हड़पने के वो दिन उसने बखूबी संजो लिए हैं।  न मिलने न बिछड़ने के दर्द से परे के ये खामोश रूमानी से लम्हे, इश्क़ का वो दरिया बन गए जिसे उस नीली छतरी वाले ने खुद मेरे लिए रचा है।  वक्त का ये दरिया अब और खूबसूरत दिखाई देता है। किसी शाम जब आँखों से कुछ लम्हे झरने लगते है तो दरिया का ये किनारा ही कुछ कंकर हथेली में थमा जाता है और मैं घंटों उसी खेल में गुम फिर से आसमान छूने के लिए उड़  जाती हूँ। अपने पंखों पर इतराती, लजाती देख वो मुस्कुरा भर देता है। 

इस रिश्ते का कोई नाम न होना ही इसे संजोये हुए है। नाम वाले रिश्तों के साथ अपेक्षाओं और आक्षेपों के सिलसिले होते हैं ,बड़े अजीब होते हैं ,होते हैं पर किसी और के होते हैं। मेरे भी हैं ,सबके होते हैं पर मैं उनमें कहीं नहीं हूँ।

सांसों से लिखे नाम वक्त की सियाही भी धुंधला नहीं पाती। उसके साथ के वो पल इतने अज़ीज इस कदर अपने कि वजूद कब पिघल गया और एक नए सांचे में ढल गया पता ही नहीं चला। मैं लम्हा लम्हा जीती रही वो लम्हा लम्हा संजोता रहा और बरस बीत गए। न उम्मीदों की गुलामी न नाम की जिदें .......... न रवायतों की जंजीरें। आवाज़ देने से पहले आवाज़ सुन लूं और बिना देखे भी जिसके  जख़्म पढ़ लूं उस रिश्ते के साथ जिंदगी बसर हो तो मंज़िलों की परवाह कौन करे !

मेरी आवारगी को खुदा ने रहमतें बख्शी हैं। बेशुमार मोहब्बत पायी है मैंने जिंदगी से ,इतनी कि शिकायतें अब कोई बाकी नहीं हैं। सवाल हज़ारों हैं ,रोज़ बुलबले से उठते -बैठते हैं।  मैं उन आँखों के समंदर को पढ़ लेती हूँ तो हर सवाल का जवाब मिल जाता है।

दर्द के जंगल के पार वो  राहतों का दरिया है  ,वो आकाश जिसने मुझे अपने भीतर ऐसा सहेजा कि मैं हर उड़ान के बाद भी उस जद को पार नहीं कर पाती जिसके पार वो नहीं है। 

मेरी आवारगी तुझसे मेरा ये रिश्ता मेरा प्यार है ...... चल ले चल, जहाँ चाहे ... अब कोई अरमान भी बाकी नहीं सिवा इसके कि तेरा साथ हो और हाथ में तेरा हाथ हो ....... आ अब उड़ चलें !







Sunday 6 December 2015

जितने चेहरे चाहे लगा लीजिये ,हर चेहरे का सच वही होता है जो आप हैं.........

एक अरसा हो गया अब यहाँ  , शायद डेढ़ साल ___ ट्विटर की मायावी दुनिया एक आईने  की तरह मेरे सामने है, मन जैसी कभी सीधी सपाट कभी एक दम जंतरम् -मंतरम्।

140 की सीमा में किसी के चरित्र और उसकी जिंदगी का खाका खींच लेने की धृष्टता आपने भी की होगी ,मैंने भी की है। कई बार महसूस हुआ कि किसी नतीजे पर पहुंच गयी ,दूसरे ही पल लगा कि शायद गलत हूँ। कुछ बेहतरीन हैंडल थे जिनके पीछे की सोच बेहद सुकून भरी थी ,कुछ आलोचनाओं के पुलिंदे ,कुछ शिकायतों के  सिलसिले ........ हम उन्ही का पीछा करते हैं जिन्हें  या तो पसंद करते हैं या सख्त नापसंद। जिन्हें पसंद करते हैं उन्हें पढ़ते हैं , प्रतिक्रिया देते हैं ,संवाद  करते हैं और जिन्हें पसंद नहीं करते उनका पीछा इसलिए करते हैं कि उन्हें लगातार ये जता सकें कि हमें आप में दिलचस्पी नहीं है या किसी दिन पीछा करना बंद कर देंगे , खामोश कर देंगे और विजयी भाव से खुद को भर लेंगे।  

 इन हैंडलों के भीतर एक अजीब सा सच और एक अजीब सा झूठ छिपा है। सच वो जो किसी प्रतिक्रिया के रूप में अनजाने ही सामने आ जाता है और झूठ वो जो दिन -रात शब्दों की  माया से गढ़ा जाता है। पिछले कुछ दिनों में कुछ ऐसे ही मायाजाल से उलझ रही हूँ....... व्यक्ति अपने सच से भागने लिए झूठ के जंगल उगाता  है। दिन रात बे सिर -पैर की बातें और उस दुनिया के किस्से कहानी सुना रहा है जिसमें वो है नहीं ,मायावी संसार गढ़ लिया है इर्दगिर्द  !

अप्राप्य के प्रति कौन आकर्षित नहीं होता लेकिन उसको अभिव्यक्त करने के लिए जिन शब्दों ,तस्वीरों का चयन किया जाता है उसे सम्भवतः आपके भीतर का जमीर भी इजाज़त न देता होगा। आप कैसे इतना गिर सकते हैं ? कैसे आप अपनी क्षमताओं के साथ इतनी निर्लज्जता के साथ बलात्कार कर सकते हैं और खुद ही उसको सम्मान भी देते हैं। खुद का महिमामंडन खुद के बनाये कल्पना लोक में ?

धीमा विष है जिसे पिया जा रहा है ...... जितने चेहरे चाहें लगा लीजिये ,हर चेहरे का सच वही होता है जो आप हैं । कितना भागेंगे ,कब तक भागेंगे ? जितना भागेंगे  ये उतनी गति से आपको दौडायेगा और एक दिन आपको ही थका देगा। 

इतने बेनामी हैंडल बना कर व्यक्त्तिव के उस हिस्से का पोषण करते हैं जिसे वक्त रहते खत्म किया जाना चाहिए लेकिन इस स्वनिर्मित संसार में होता उल्टा है। 

झूठ से सच की जंग कैसे जीतेंगे ,पता नहीं। जो भी हो मैं भी सीख रही हूँ ,देख रही हूँ ,समझ रही हूँ कि इंसान कोई एक भाषा न बोलता है ना समझता है। सहजता की इतनी कमी क्यों है , क्यों सब इतना बिखरा सा है ?

ट्वीटर का ये सफर अजब स्टेशनों से गुज़र रहा है ,अजब मुसाफिर -गजब के किस्से। 

मैं और मेरी आवारगी हमेशा की तरह इस बार भी इन सबके बीच से होकर , हर बार वहीं पहुँच जाते है जहाँ उसे जाना होता है ........  कहीं दूर - गुम जाने के लिए तैयार , झूठ की दुनिया में सच की बेजा तलाश है ! एक उम्मीद है , सो जाते -जाते ही जाएगी ! मैं हमेशा सफर में ही हूँ। 

आप भी चलते रहिये .......