Saturday 25 November 2017

........तो AAP पांच साल की हो गयी ! बधाई !

........तो AAP पांच साल की हो गयी ! एक ऐसा बच्चा जिसका जन्म ही लाठियों ,डंडों ,तिहाड़ के साये में , ठंड में ठिठुरती रातों में सड़क किनारे पड़े जनमानस के बीच हुआ ! उस बच्चे को सरकते ,चलते और फिर दौड़ते देखना कितना सुखद है ये वो हर व्यक्ति समझ सकता है जिसके मन में माँ -पापा , दादा दादी का साथ बसा हो ! आंदोलन से राजनैतिक दल का रूप लेते हुए सब का मन आशंकित था कि क्या सत्ता के बाहुबली इस बच्चे को जीने भी देंगे ! असमय मरते हुए कई आन्दोलनों ,कई दलों ,कई क्रांतिकारी विचारधाराओं को देखा है | AAP अपवाद के रूप में उभरी और तमाम विषमताओं , षड्यंत्रों ,कुचक्रों से झूझते हुए एक मजबूत राजनैतिक दल के रूप में उभरी है |
अरविन्द के नेतृत्व ने इसे दिशा दी है तो मनीष ने इसको अंजाम तक ले जाने की भूमिका बखूबी निभाई है | कुमार विश्वास ,संजय ,आशुतोष ,दिलीप पांडे ,प्रीती मेनन ,गोपाल राय , प्रशांत भूषण और भी ना जाने कितने ही लोगों ने इस बच्चे को चलना सिखाया ,इसके कदमों को मजबूती दी |
हजारों कार्यकर्ता जिनके पास सम्भवतः पार्टी की प्राथमिक सदस्यता भी नहीं है को मैंने  इस दल के साथ ऐसे जुड़े देखा है मानो वो इनका अपना परिवार हो !
कितनों ने अपना करियर छोड़ा ,घरबार छोड़ा , अपना शहर तक छोड़ दिया और सिर्फ जिद और जुनून में AAP के हमराह हो गए ! कभी कभी लोग पूछते हैं ,ऐसा क्या है इस अरविन्द केजरीवाल में जो लोग इसकी तुलना मोदी से करते हैं और तमाम मीडिया को भी सिर्फ दिल्ली ही दिखाई देती है ?

मेरा जवाब होता है , फकीर है वो ! जिसके पास कुछ नहीं होता उसके पास रब होता है | रब साथ ना होता तो आज और की तरह AAP को भी राजनीति निगल जाती | ईमानदार इरादे और  नेक राह  थाम कर चलने वाले ही जो कहते हैं कर दिखाते हैं |

हजार कमियों और असफलताओं के बावजूद AAP ने शिक्षा और स्वास्थ्य में जो काम किये हैं वो विपक्ष भी नजरंदाज नहीं कर सकता | बेशक परिवार के भीतर मतभेद हैं लेकिन अगर वो मतभेद भी उसे सकारात्मक दिशा दे रहे हैं तो उनका भी स्वागत करना चाहिए |

14 फरवरी को जब अरविन्द शपथ ले रहे थे ,मेरे साथ कोमल और पूजा थीं ! हम सब आंसुओं से तर थे ,हमारे पीछे लाखों की भीड़ थी जिनकी आँखों में हजार सपने और AAP के लिए दुलार था !

अंकिता ,केशव , आरती......सबसे पहली बार मिली थी लेकिन ऐसा लग रहा था मानो परिवार इकट्ठा हुआ है ! अंकित ,डॉन ,गजेंद्र ,दुर्गेश , राशु , शाश्वत ,राकेश ,नवेन्दु ,पवन,प्रियंका , ......पटेल नगर की ढेर सारी स्मृतियां मानस पर अंकित हैं | ढेर सारी तस्वीरें हैं जो इस सफर की साथ की याद दिलाती रहती हैं ! झाड़ू के साथ इस अनोखी यात्रा में शामिल होना मेरे जीवन के बेहतरीन समय में से एक है |

AAP ने जनता के भरोसे को तोडना नहीं है , उसे देश के हर बंदे को भरोसा दिलाना है कि झाड़ू हाथ में है तो क्या गम है !
बढ़ते चलिए , काम करते चलिए ! गलतियों से सबक ले ,सबको साथ ले कर चले तो जय निश्चित है !

शुभकामनाएं AAP सभी को !

Monday 2 October 2017

क्या सुशांत सिन्हा मोदी जी के हरकारे हैं या रवीश के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं ?



मेरे सामने दो ख़त हैं - एक रवीश का जो उन्होंने अपने प्रधानमंत्री को एक नागरिक की हैसियत से लिखा था और दूसरा सुशांत सिन्हा का जिन्होंने रवीश के प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का जवाब दिया है |

क्या आप किसी के किसी को लिखे पत्र का जवाब दे सकते हैं ? मैं सवाल आपसे करूँ और जवाब देने कोई तीसरा आये तो उसे क्या मानूं ? ये भी सही है कि भारत के प्रधानमंत्री के पास इतना टाइम नहीं कि वो रवीश जैसे मामूली पत्रकार के मामूली से पत्र के जवाब के लिए समय निकाले ! ये मसला पत्र लिखने वाले और पत्र पाने के वाले के बीच का था !

खैर ! अगर आपने पत्र नहीं पढ़ा हो तो एक दो मसले बता देती हूँ |

रवीश ने लिखा कि उनको धर्म रक्षति रक्षित: नाम के उस व्हाट्स ग्रुप में जबरदस्ती जोड़ा जा रहा है जिसके कई एडमिन हैं और उनमें से कइयों को प्रधानमंत्री जी सहित कई अन्य माननीय फॉलो करते हैं |
इस ग्रुप द्वारा उनको मारने , खींचने , अश्लील हरकतें करने तक की अभद्र टिप्पणियां की हैं ! एक अन्य महिला पत्रकार को भी परेशान किया जा रहा है | रवीश ने इस वार्तालाप के कई स्क्रीन शॉट भी दिए हैं और उनके नाम भी बताये हैं !

इसी में वे आगे लिखते हैं कि उनको धमकी दी जा रही है कि वे नौकरी से निकाले जाएंगे ! इस पूरे पत्र में रवीश ने अन्य किसी मुद्दे का जिक्र तक नहीं किया है |

दूसरा खत जो मुझे नहीं पता कि सुशांत बाबू ने किस हैसियत से लिखा है , में लिखा है की --

पहला - आपने अपने स्वर्गीय पिता से अपने आत्मिक रिश्ते को सार्वजनिक करने की धृष्टता की !

दूसरा -आप बेवजह डर रहे हैं यानि जो धमकियां मिल रही हैं उनको रवीश को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए ! वे ऐसा कर रहे हैं तो इसलिए कि आप प्रसिद्धि चाहते हैं ! वे खुद को अहमियत ना दें उनके रहने या जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा !

तीसरा - नौकरी जाए तो जाए आपकी बीबी खूब कमाती हैं और अब तक जितना कमाया उससे आप सड़क पर नहीं आएंगे !

आपने फलां को देखकर शीशा बंद कर लिया , मेरे लिये मैनेजिंग एडिटर को चिट्ठी क्यों नहीं लिखी !

पत्र के आखिर में तथाकथित पत्रकार सुशांत जी बीमार रवीश के स्वस्थ्य होने की कामना कर रहे हैं !

मैं हैरान हूँ और विचलित भी और विश्वास से कह रही हूँ पत्र का जवाब देने वाला या उसका कोई अपना उसी धर्म रक्षति रक्षित: का सदस्य होगा जो रवीश , बरखा , राजदीप को मारो - खींचो -पटको के साथ सम्पूर्ण परम् अश्लीलता के उन्माद के नारे लगा रहा है !

आप जिस भी दल /विचारधारा का समर्थन करते हैं वो आपके व्यक्तित्व में झलकने लगती है और अंततः वह संस्था या तो आप जैसी हो जाती है या आप उसके जैसे हो जाते हैं !

यदि आप सोचते हैं कि असहमति का अंत गौरी लंकेश जैसा होना चाहिए या असहमति का बलात्कार करना चाहिए तो आप उस भी उस उन्मादी भीड़ का हिस्सा बनने जा रहे हैं या बन बन चुके हैं जिसको जीवन के मूलभूत प्रश्नों से कोई सरोकार नहीं है | आप चुप रहें और जयजयकार करके चमत्कार का इंतज़ार जब तक करें जब कि कोई आपका अपना सवाल करने के जुर्म में अपनी नौकरी नहीं खो देता या चौराहे पर मारा नहीं जाता |

यदि आप ऐसा नहीं सोचते हैं और मानते हैं कि पत्रकार का काम आंकड़ों की बाजीगरी का सच सामने लाना है ताकि आपका पैसा आपके काम आये , ताकि आप ये जान सकें कि आपने जिनको चुना था वो क्या सही क्या गलत कर रहे हैं तो समझिये कि टीवी में परोसी जाने वाली भायँ - भायँ केवल मरीचिका है , बचना चाहते हैं और अपना तर्क बचाये रखना चाहते हैं तो टीवी देखना बंद कर दीजिये | धार्मिक उन्माद से बचिए और समझिये कि एक पूरी इंडस्ट्री है जो ये फरेब लिखती है ,आपको जोड़ती है और आंकड़ों के मायाजाल से भरमा के पेट्रोल की बढ़ती कीमतों , फिसलती नौकरियों के सवाल से दूर कर रही है |

बाकि तो आप जो चाहे जो सोचें , जो चाहे करें कौन रोक सकता है !

दोनों के पत्रों के लिंक आपको दे रही हूँ केवल ब्लॉग के संदर्भ के लिए !

रवीश का पत्र जो प्रधानमंत्री जी के लिए था -
https://www.facebook.com/RavishKaPage/posts/706573349540815


सुशांत सिन्हा का प्रत्युत्तर -
http://www.sushantsinha.news/%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B6-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE/


Sunday 24 September 2017

उम्मीदें रखें पर उनकी कैद स्वीकार ना करें

एक आस , एक उम्मीद हर किसी को रहती है , सबसे भी और खुद से भी | इसी उम्मीद ने रिश्ते बना दिए और तोड़ भी दिए , इसी उम्मीद ने  साँसों को थामे रखा और साँसों की डोर तोड़ भी दी | उम्र गुजर जाती है ,खुद को दिलासा दिए रहने में कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा , न वो वक्त कभी आता है ना सांसे उस वक्त के और इंतज़ार की मोहलत देती हैं | 

अजब बेरोजगारी है इस उम्मीद की जो खत्म ही नहीं होती | रात आती है तो हजार सवाल लिए , क्या होगा -कैसे होगा -ना हुआ तो क्या होगा .......और भी ना जाने कितने बेसिर पैर के सवालों का जखीरा खुल जाता है ! सामने उम्मीद फिर अदालत लगा के बैठ जाती है , दावों -वादों और कहानियों की गवाही होती है ! रात बीतने लगती है ,गवाह सब ऊंघते हुए सो जाते हैं | दिन उग आता है , अपनी शाखाओं पर हजार उम्मीदों के फूल लिए........ मन बावरा फिर चल पड़ता है ,चुनता है धूप और पिरोता है छाहं |  निकल पड़ता है किसी खरीददार के इंतज़ार में कि कोई उसकी मेहनत का , उसके प्रेम का सही मूल्यांकन तो कर सके |  
अंततः उम्मीद को गिरवी रख फिर एक बार हकीकत को घर लाया जाता है | माना कि पेट उम्मीदों से नहीं भरता , ना तन उम्मीद से ढका जा सकता है, तो भी,  वो ना हो तो ना मन भरता है,  न तन मानता है | 

इस उम्मीद का तिलिस्म तोडना मुश्किल है लेकिन इस उम्मीद को जीना रगों में ऑक्सीजन के बहने जैसा है इसलिए उम्मीद कायम रखिये और वही कीजिये जो सबको सुख दे और आपको आत्म संतुष्टी ! आप किसी की उम्मीदों को शतप्रतिशत  पूरा नहीं कर सके , ना वे आपकी उम्मीदों पर हर बार खरे उतरेंगे इसलिए शिकायतों के फेर में ना पड़ें , ना खुद से खुद की शिकायत करें ना दूसरों से उम्मीदें पालें !

उम्मीदें रखें पर उनकी कैद स्वीकार ना करें क्यूंकि जिन्दगी के आपने उसूल हैं , आप उसके पार नहीं जा सकते !

Tuesday 30 May 2017

आज़ाद कीजिये खुद को नई पुरानी तल्खियों से ........

खुद को कैद रखना आज़ाद कर देने से ज़्यादा आसान होता है ! कभी लम्हों की कैद में ,कभी  सांसों की कैद में......हमे हमेशा सलाखें ही चाहिए होती हैं ,शायद इसीलिए कि हम भी उसी में खुद को सुरक्षित महसूस करने लगते हैं और कभी इसलिए कि वो हमारी जरूरत हो जाती हैं और कभी इसलिए कि उसी में एक दुनिया उग आती है ,वो दुनिया जिसमें हम हैं पर नहीं हैं !

बहुत लोग मिले , हर किसी के पास अपना कैदखाना है , कोई अपनी खुशी से कैद है और कोई दूसरों की ख़ुशी के लिए उसमें कैद है ! रूह भी कैद है और सांसे तो खैर हैं ही ! हाड का पिंजर भी अपने भीतर कितनी जिंदगियां समेटे है |

जिसके पास घड़ी दो घड़ी बैठ जाओ , उनके भीतर से शिकायतों का दरिया बहने लगता है ! हर किसी को महसूस होता है कि उसे छला जा रहा है , सबको सबसे शिकायतें हैं ! अंतहीन सिलसिला है ! ऐसे बहुत कम लोग मिले जो कहते हैं कि उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं हैं , कुछ कह भी देते हैं तो अगले ही पल ऐसे सवालों की झड़ी लगा देते हैं जो जिंदगी की "क्यों " पर ही खत्म होती है !

मेरे पास किसी सवाल का कोई जवाब नहीं सिर्फ अपने अनुभव हैं ! उसी से कहती हूँ कि जिंदगी जितने भी सवाल करती है उन सब सवालों के जवाब हमारे ही कर्म हैं ,कुछ इस जन्म के कुछ पिछले जन्मों के ! दोष किसी का नहीं ! जो किया वो पाया तो शिकायत क्या कीजे !

जीना चाहते हैं और खुश रहना चाहते हैं तो शिकायतों की पोटली को इश्क के दरिया में बहा आइये ! आज़ाद कीजिये खुद को नई पुरानी  तल्खियों से और नए कलेवर में अपनी उम्र को एक बार फिर आईने के सामने संवरते देखिये !

 मन एक खूबसूरत किताब है जिसमें उन सुनहरे लम्हों की अनगिनत कहानियां हैं जो जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाती हैं ...... तो फिर क्यों उन लोगों ,घटनाओं और समय की कैद का स्ववरण किया जाये जो जीवन को ही नष्ट कर रही हैं !

जिंदगी का हाथ थामिये और और चल पड़ें  नए रास्तों और अनजान चेहरों के बीच ,शायद वहां आप खुद को खोज  पाएं !


Sunday 26 March 2017

रोमियो का खत ,प्राउड इंडियन जी के नाम !

प्रिय प्राउड इंडियन जी ,

मेरा नाम रोमियो है।  मेरा जन्म उस शेक्सपियर की कथा में हुआ था जो भारत से हजारों  मील दूर जब रची गयी, जब आप पैदा भी नहीं हुए थे। 

मेरा गुनाह सिर्फ इतना था कि मैंने उसको प्रेम किया जिसके परिवार एक दूसरे से नफरत करते थे पर इतनी सदियों के बाद , अब मेरा गुनाह ये हो गया कि मैंने प्रेम किया था। दो परिवार आपस में नफरत करें तो भी कीमत प्रेम को चुकानी पड़ती है , दो मुल्क आपस में नफरत करें तो भी कीमत प्रेम को ही चुकानी पड़ती है। अब धर्म और जाति तो मैं जानता नहीं क्योंकि उस उम्र में प्रेम में पड़ा जिस उम्र में नफरत के बीज उगने शुरू हो जाते हैं। 
मैं उस मौसम की पैदावार नहीं था , यही मेरा गुनाह था !

मैं आपके इस खूबसूरत देश कभी आया नहीं तो इस मुल्क के  छिछोरों की पहचान कैसे बन गया ? मैंने कभी किसी को छेड़ा नहीं फिर भी मैं भारतीय मनचलों का ब्रांड एम्बेसेडर बन गया ?  इस दुनिया में क्या प्रेम करना और छेड़ना एक समान ही है ?

मैंने जूलियट से प्रेम किया और उसी से शादी भी की। मैं उसको छोड़ के भागा नहीं और उसके साथ जीवन भर रहने की चाह लिए उसके साथ मर भी गया पर जाने दीजिये, जब आपके नेता ही आपके आदर्श हैं तो इसे आप नहीं समझेंगे !

मेरी पीड़ा बस इतनी सी है कि चार सदी गुजरने के बाद भी दुनिया नफरतों के भँवर में उलझी है और प्रेम करने वाले कल भी मारे जा रहे थे और आज भी मारे जा रहे हैं। आप सियासत करने वाले हैं आपको प्रेम और छिछोरेपन में अंतर करना कठिन लगता होगा , ये मैं समझता हूँ

मैं भारत के उन सभी युवाओं से अपील करता हूँ कि मैं रोमियो हूं , प्रेम करने वाला रोमियो ! मनचला -लड़कियों पर फब्ती करने और स्नूपिंग वाला रोमियो नहीं ! मुझे समझें और मेरे नाम को उस प्रेम के साथ ही जोड़ें जो हर जाति -धर्म और हर दीवार से परे सिर्फ प्रेम करना जानता था। मैनें जूलियट के साथ मरते दम तक अपना प्रेम निभाया ,यही मेरी संस्कृति और यही मेरा धर्म था। 

माननीय प्राउड इंडियन जी भारत आपका देश है , उसे चाहें जैसा बनाएं , जिसे चाहें उठायें , जिसे चाहें घसीटें ,पर मुझे बख्श दें। मैं मेरी जूलियट के साथ उस स्वर्ग में हूँ  जहां सिर्फ प्यार बरसता है। डंडों ,लातो और जेल की सलाखों का यहाँ कोई भय नहीं इसलिए मेरे नाम का दुरूपयोग ना करें। 
आपको आपकी नफरत मुबारक , मुझे मेरे प्रेम  की दुनिया में रहने दीजिये  !

 नमस्कार !

निवेदनकर्ता   
" रोमियो "