Sunday 24 February 2019

ये माटी ,पहाड़ ,नदियां ,जंगल ,खेत....... एक यायावर है मुझमें जो कभी टिकने नहीं देता !


वक़्त कहाँ रुकता है किसी के लिए और अगर रुक भी जाये तो कौन ठहरता है उस वक़्त के लिए ?
कभी वक़्त को हमारे लिए फुरसत नहीं और कभी हमें वक़्त का इंतज़ार करना नहीं आता....... हम सब ठेले जाते हैं ,कभी इसके मन से तो कभी उसके मन से !!

एक रोज़ जंगल की पगडंडी पर पत्तों की चरमर सुनते हुए मैंने जाना कि खुद के लिए वक़्त निकालना कितना जरूरी है | पहाड़ों से उड़ कर आते बादल और सीली हुई हवा ने कान में कहा कि अब आयी हो तो लौटना मत...... मैं अब उसी की सुनती हूँ | जब तक उसकी नहीं सुनी थी , उलझन में थी कि किसकी सुनूं ?

ये माटी ,पहाड़ ,नदियां ,जंगल ,खेत....... एक यायावर है मुझमें जो कभी टिकने नहीं देता ! वक़्त ने जीना सिखा दिया ,चलते रहना सिखा दिया , इंतज़ार करना सीखा दिया |

घुम्मकड़ी को जिंदगी का हिस्सा बना लीजिये , समझ जाएंगे कि जीने लिए दुनिया भर के तामझाम नहीं चाहिए | मौत भी आने से पहले आपके इंतज़ामात का जायजा लेने नहीं आएगी | कितना भी आराम जुटा लें , रिश्तों का कितना भी जमावड़ा हो आसपास...... आपको सुकून तो पल दो पल आँख बंद करके अकेले हो जाने में ही मिलेगा |

जब आनंद भीतर है तो बाहर किसे ढूंढना और किसके लिए महल -असबाब इकट्ठे करने हैं ?

भीतर के बच्चे को ज़िंदा रखिये और उसके बचपन को महसूस कीजिए | वक़्त को कैलेंडर का और कैलेंडर को जिंदगीनामा बना लेंगे तो जियेंगे कब ? लोग शिकाययत करते हैं ,उसके लिए इतना किया पर उसने ऐसा किया -वैसा किया...... ये सच है ,हम नाशुक्रे लोग हैं ! जिसने किया, वो उसका फर्ज था सोच कर आगे बढ़ जाते हैं ,ये सोच कर कि ना भी करता तो कौन सा उसको कहा था करने के लिए...... व्यथा की कथा यहीं से शुरू हो जाती है |

क्यों किया ?

इसीलिये कहती हूँ , कीजिये पर खुद को बचा ले जाईये इस कपोल कल्पित बोझ से | सब के कर्मों का भार अपने कंधों पर कैसे रखा जा सकता है |

वक़्त पर भरोसा करना और वक़्त से शिकायतें करना जरूरी नहीं है और लाज़मी भी नहीं ! अवसाद और खुशी का हर मौका पेड़ -पहाड़ -नदी -हवा...... के साथ साझा कीजिये और वक़्त की धुन को गुनगुनाइए ,यही जीवन संगीत है ,यही वक़्त है जीने का.......

जीते रहिये -चलते रहिये !!