पति से प्रेम सिद्ध करने के लिए भाई को राखी ही तो नहीं बांधी ..........

सामने की बर्थ पर जो कुछ चल रहा था उससे समझ आ रहा था कि ये बुजुर्ग महिला उस व्यक्ति की माँ हैं जो कहीं अकेले सफर पर निकली हैं ! बेटे का साथ इतना ही था …… सामान सब जमा दिया , टिकिट दो बार सम्भलवा दिया ,पानी की बोतल ला के दे दी , पहुंच के फोन कर देना ....... ! ट्रेन  रवाना हो गयी , माँ को ख़्याल आया कुछ छूट गया…… फोन मिलाया कि सुनने वाली मशीन शायद बिस्तर पर ही रह गयी है ,झाड़ू में ना चली जाए -जरा संभाल लेना !

हमारे बीच मुस्कुराहटों का आदान -प्रदान जारी था। बात इसलिए नहीं की क्यूंकि ये समझ आ गया था कि मशीन के बिना इनको सुनने में तकलीफ होगी और मेरे तेज बोलने से साथ सफर करने वालों को।

अखबार पढ़ के रखा तो कुछ झिझकते हुए उन्होंने पूछा कि क्या वो देख सकती हैं ,मैंने सहजता से उनकी और कुछ हैरानी से अखबार बढ़ा दिया ,ये सोचते हुए कि ये इसमें क्या पढ़ना चाह रही होंगी।  खबरों से खुद के मोहभंग के चलते आजकल अखबार पढ़ते और न्यूज़ सुनने वाले को हैरानी से देखने की लत लगी है………सब कचरा है !

वे शायद आधे घंटे तक हर पन्ने को उल्ट-पलट कर देखती रहीं  फिर अखबार बंद कर बर्थ पर आँख बंद कर लेट गयीं ! सच है , थकना स्वभाविक है ……अब खबरें थकाने वाली ही होती हैं ,बोझिल और उबाऊ ! मैं उनके चेहरे को पढ़ती रही। …… झुर्रीदार चेहरे पर उम्र ने कहानी लिख दी थी। वे बीच -बीच में उठती और एक नज़र अपने सामान पर डाल रही थीं , नज़र मिली  तो मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि आप सो लें..........

ट्रेन  का ये मज़ा बस में नहीं आता और ट्रेन  में भी रिश्तों की गर्मी केवल स्लीपर और जनरल बोगी में ही होती है AC में सब ठंडा रहता है .......  मुझे स्लीपर ही पसंद आता है।

जयपुर आने वाला था ,मुझे लगा कि उनको शायद जयपुर ही उतरना होगा, सो जगाया ! मैं गलत थी उनको अभी और 4 घंटे का सफर करना था …… अजमेर तक का !

"आप अजमेर रहती हैं , मैंने पूछ ही लिया
नहीं ,भाई के पास जा रही हूँ …… 35 साल बाद जा रही हूँ…… !
35 साल बाद भाई के पास ? मैं हैरान थी
भाई बाहर रहते हैं ? दूसरा प्रश्न भी कर डाला।
नहीं ,अजमेर में ही रहते हैं !
फिर ?

अब मेरे पति गुज़र गए हैं और पिछले साल में मैं तीन महीने कोमा से गुज़र आयी हूँ ,तो मन कह रहा था कि एक राखी तो अपने हाथ से भाई को बाँध के आ जाऊं , सो जा रही हूँ।
बच्चों ने बहुत मना किया कि क्या करोगी इस उम्र में इतना लम्बा सफर नहीं कर पाओगी ,मैंने भी कह दिया कि मर जाने के अलावा और क्या होगा इसलिये जा रही हूँ !

रेलवे में थे पति , स्वभाव गुस्से वाला था ! पीहर से नाराज़गी थी ,सो गृहस्थी में शांति बनी रहे इसलिए चुप से 50 साल से ज्यादा ही गुजार दिए पर अब वो नहीं है और मरने में दिन भी कितने बचे हैं …… राखी तो बाँध लूँ !

मैं निःशब्द थी ! अपलक उनको देख रही थी..........कहने को था भी क्या ? शब्द सब जम गए थे।

जयपुर स्टेशन पर ट्रेन पहुंच चुकी थी ! प्रणाम कर नीचे तो उतर  गयी पर मन के किसी कोने में वो दो ऑंखें आज भी अटकी हैं जो कह रही थीं कि पति से प्रेम सिद्ध करने के लिए भाई को राखी ही तो नहीं बांधी , भाई से प्रेम तो तब भी कम न हुआ !

मन में प्रश्न आ रहा था कि ये पति के जिन्दा रहते भी सोचती होंगीं कि पति के मरने के बाद कोई राखी तो बाँध पाऊँगी या बिना बांधे ही जाना होगा !! मृत्यु का इंतज़ार !!

उफ्फ्फ..........  रिश्तों का ये कैसा सच है ! कैसे सब अपने -अपने अहंम की चादर ताने सोते हैं कि जीवनसाथी नाम भर का साथी रह जाता है। एकदूसरे की खुशियों से अनजान -एक दूसरे के दुःख से अनजान किसी तीसरे से नाराज़गी की सजा अपने उस साथी को दे देते हैं जो अपना नाम तक दहलीज के उस पार छोड़ आता है !


भरम है रिश्ते.................   रिश्तों का सब मायाजाल ! फंसे रहिये -उलझे रहिये -ढोते -निभाते -मुस्कुराते - ईमानदार लम्हों को चुराते -बसाते रहिये ! ढलती शामों में मुस्कुराने के लिए संजों के रखिये !

हम सब सफर पर हैं …… एक ही किश्ती में सवार ,वक्त सबका आएगा ,सीखते रहिये -समझते रहिये ! रिश्तों की गिरह खोल दीजिये क्या पता आपका ही कौन अपना आपकी मृत्यु की प्रतीक्षा में हो !








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