Saturday 27 August 2016

हम शिकायकतों के पहिये पर उम्र को धकेलते रहते हैं। जीते कब हैं ? मैं खुश हूँ कि मैंने वो किया जो दिल ने कहा.........

अरसे से कुछ नहीं लिखा ! सोचा कई बार पर रुक गयी ......... अनकहा कुछ नहीं पर अनसुना बहुत कुछ रह गया। उसे लिख दूं या उसको लिख दूं ,इसी कशमकश में उलझ गए सवाल भी और जवाब भी।

वो नीले आसमान को टिकटिकी लगा के देख रहीं थी ! मैं उनको पढ़ने की कोशिश कर रही थी। कहने लगी तुमको देखा तो लगा कि तुमसे कुछ देर बात करूँ। मैं मुस्कुरा के उनके पास बैठ गयी। परिचय पुराना कुछ नहीं था , कुछ घण्टे पहले डीन के कमरे में  मुलाकत हुई ,दोनों ही एग्जामिनर थे। वो एम पी से थीं। रिटायर हुए कुछ साल हुए ,यूनिवर्सिटी में अब भी पढ़ा रही हैं ! उम्रदराज  लेकिन ऊर्जा से भरपूर महिला की आवाज़ में कुछ ख़ास था ! मैं रुक गयी , ठीक है कुछ पल इनके साथ भी सही...........

आपके परिवार में और कौन है ?
दो बेटियां हैं ,दोनों की शादी हो गयी है !
पति ?
वो अब नहीं हैं !
ओह्ह ! मुझे लगा कि नहीं पूछना चाहिए था !
उन्होंने मुझे पढ़ लिया और बोलीं हम साथ नहीं रहते थे !
मने  डिवोर्स ?
नहीं ,पर साथ नहीं रहे !
कारण ?
कुछ नहीं ! बच्चा नहीं हुआ तो सब ट्रीटमेंट के बाद में गोद लेने के नतीजे पर पहुंची। सोचा परिवार का नहीं समाज के किसी जरूरतमंद को अब अपनी ममता दूं !
फिर ?
पति खुश नहीं थे ! जब तीसरी बार उन्होंने अनाथालय से गोद  लिए बच्चे को मेरी नाजायज औलाद बताया तो मैंने तय कर लिया कि अब चौथी बार नहीं सुनूँगी !
फिर ?
उस बार मैंने सामान लिया और घर से निकल गयी !
कहाँ गयीं ?
पापा से पूछा कि कुछ दिन आपके साथ रहूंगी ,उन्होंने कहा आ जाओ।
फिर ?
दूसरे शहर के सरकारी कॉलेज में तबादला करवा लिया। पति जानेमाने पत्रकार थे ,CM का घर आना जाना था , कह दिया कि आखिरी  मदद कीजिये और शहर से दूर भेज दें।
फिर ?
चली आयी !
तो फिर वो आपको लेने नहीं आये ?
आये ,एक दिन ! फोन किया, मैं सामान और बच्ची को लेने आया हूँ। मैंने कहा कि सामान  के साथ तुम्हारी  6 बोर की रिवॉल्वर मेरे साथ आ गयी है। ऊपर आये तो एक गोली तुम्हारे सीने में और दूसरी मेरे सीने में होगी !
फिर ?
वो लौट गए ,अगली बार पुलिस वाले का फोन आया कि आपके घर की तलाशी लेनी है। सामान है आपके पति का आपके घर !
फिर ?
मैंने कहा ,मैं थाने आती हूँ।  जा कर अधिकारी से पूछा कि FIR की कॉपी दो , नोटिस लाओ ! बोला नहीं है। भाईसाहब को मैं समझा दूंगा ! आप जाईये आगे से ऐसा नहीं होगा !
फिर ?
बेटी की शादी में नहीं आये ,इस बीच एक बेटी और गोद ली मैंने ! दोनों की शादी में वो नहीं आये !
फिर ?
एक बार एक्सीडेंट हुआ ,कोमा में चले गये ! पता चला कि सम्भालने वाला कोई नहीं तो दो महीने बॉम्बे हॉस्पिटल में इलाज कराया ,ठीक हो गए तो मैं लौट आयी
फिर ?
 जिंदगी चलती रही , पता चला वो किसी के साथ रहने लगे हैं ! वो लड़की मेरे विभाग से पी एच डी के लिए आयी ,सबने बताया कि" ये वही है "मैने कहा कोई नहीं ,उसका ध्यान रखती है ना ! मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
फिर ?
कुछ साल बाद उनको कैंसर हो गया ! मैं फिर बॉम्बे अस्पताल ले गयी। आखिरी दिन बेटी से बोले तेरी मां के साथ रहता तो ये दिन नहीं देखता शायद।
बस फिर कुछ नहीं !
अब ?
अब मैं पार्क के बच्चों के साथ रोज शाम  खेलती हूँ , उनके होमवर्क और क्लास के झगड़े सुलझाती हूँ , संडे को चॉकलेट पार्टी करते हैं
घर में अकेले ?
नहीं ! पीजी है,  नीचे की मंजिल पर लड़के हैं और मेरे साथ चार लड़कियां रहती हैं।  सब साथ खाते हैं और मस्त रहते हैं ! बच्चों के पास आती जाती रहती हूँ ! यूनिवर्सिटी में क्लास ले के आ जाती हूँ।
क्या करियेगा अब  ?
एक जमीन है , ज़िंदा रही तो उस पर नीचे दुकाने ,बीच के फ्लोर पर वृद्धाश्रम और ऊपर लड़कियों का हॉस्टल बनाना चाहती हूँ !
सब साथ  रहेंगे तो सबको एक दूसरे से सहारा रहेगा।

और आप  खुश हैं ...................?

मैं खुश हूँ प्रेरणा ! मुझे लगा कि मैं अगर वो निर्णय नहीं करती तो जिनके भी लिए जो कुछ कर पायी ,नहीं कर पाती और मेरा तो वही होना था जो सब के साथ होता है।

मैं खामोश हो गयी ......

"हम शिकायकतों के पहिये पर उम्र को धकेलते रहते हैं। जीते कब हैं ? मैं खुश हूँ कि वो किया जो दिल ने कहा "

मैं उनको सुनती रही  !!

"पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैंने तुमसे आज इतनी बातें कैसे साझा कर लीं ? हमारा तुम्हारा तो कोई परिचय भी नहीं है ! मैंने अरसे से कभी किसी से अपनी जिंदगी के इस सच को किसी को नहीं कहा फिर तुमसे कैसे कह बैठी ?"

इस बात का जवाब मैं भी क्या देती ! उनका हाथ थाम उनके हाथ में कॉफी का प्याला थमा दिया और मुस्कुरा भर दी !

जिंदगी मुझे किताब पकड़ा देती है ! हौसलों की किताब है ,अनुभवों के फलसफे हैं। हम सबके भीतर कितने जलजले हैं और हम बाहर से कितने खामोश दिखाई देते हैं मानो कुछ हुआ ही न हो , कुछ होना ही नहीं हो !

जिंदगी की गाड़ी ढुलकते किस स्टेशन जा रुकेगी पता नहीं ! आप भी बतियाइए , दिल की कहिये ,दिल की सुनिये क्या पता किस मोड़ वक्त से सामना हो जाए !

अनमोल पल होते हैं जब कोई अजनबी आपका हाथ थाम जिंदगी की कोई अनकही पहेली सुलझाने बैठ जाए !
उस पल मुस्कुराइए कि आप ज़िंदा है !

Wednesday 3 August 2016

मेरी गया यात्रा ....... पितरों का पंगा और महाबोधि दर्शन

गया, बिहार में हूं।मेरा ये पहला अनुभव नहीं है किसी धर्म नगरी में न, ये पहला मोहभंग है धर्म के व्यापारी स्वरूप से ! आस्था के बाजारीकरण को उसके निकृष्टतम रूप में देखना हो तो कुछ समय यहां जरूर गुजारें ।
गया प्लेटफार्म पर उतरते ही पंडो के एजेंट आपके कुल-गोत्र, दादा चाचा पार बाबा तार बाबा सबकी कुंडली खोल आपको अपना बनाने की जुगाड़ में लग जाते हैं। बच निकले तो आपका भाग्य वरना लौटने लायक पैसा भी पितरों की गलियों से होता हुआ "संस्कृति के चौकीदारों की जेब में चला जायेगा। सावन का महीना है सो यहां रेलवे स्टेशन पर भी कांवड़िये पसरे थे। सावन में लहरिया सुना और पहना था पर कांवरियों की नयी भगवा यूनिफार्म आस्था के बाजारीकरण की नयी परिभाषायें गढ़ रही है । गया पितरों की नगरी है, शास्त्रों के अनुसार विष्णु यहां द्रव रूप में फरगु में अवतार लिये हैं।
फरगु नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर में पितरों की "मुक्ति" के अनुष्ठान होते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर लिखा है " अहिन्दु प्रवेश निषेध" ..... कमाल है न जिस विष्णु के चरण में तमाम सृष्टि का वास है उसके ही "एजेंट निवास" में सलेक्टिव लोग ही प्रवेश के हकदार हैं ?
अंदर धुसते ही आप पर फिर से "पितरों के एजेंटों" का हमला होगा। आप "किडनैप " कर लिए जायेंगे और थाली में धोती , माटी के कलस और भिंडी, आटा लिए नजर आयेंगे।पंडित आपको सौ पुश्तों के नाम पूछ आपमें इतनी हीन भावना भर देगा कि उठने पर आपको अपने नाम की भी तस्दीक करनी पड़ेगी ।
जो दादा जी बिना कहे दौड़ आते थे उनकी तृप्ति के लिए इतना जतन ? क्या मृत्यु के बाद भी ध्यानाकर्षण की चाह शेष रह जाती है?
तीन -चार घंटे के बवाल के बाद जब होश आये तो कुछ खा पी लें और महाबोधि दर्शन के लिए निकल लें .....
महाबोधि का अनुभव बोध गया से जल्द ही साझा करूँगी ! प्रणाम!

Monday 1 August 2016

आओ कुछ पल उंगलियां उलझा के बैठें ....

एक ख़त लिखना चाहती हूं जिंदगी के नाम .... कभी कभी खुद को खुद के सामने बिठा कुछ सवाल कुछ जवाब लेने का मन होता है तो कभी जिंदगी को ठेंगा दिखा खिलखिलाकर भाग जाने का मन होता है .... मैं अलग और जिंदगी अलग हैं क्या ? अगर नहीं तो फिर इतनी दूरी कैसे है ? जो पास है तो खामोश क्यों?


ये सवाल भी वैसा ही है जैसा तुम सोचते हो कि कोई तुमसे बिना कुछ चाहे इश्क कैसे कर सकता है? जैसे तुम ये यकीन नहीं कर पाते कि देह के पार  भी कोई संबंध हो सकते हैं, रिश्तों की संभावनाएं हो सकती हैं। इतने मासूम से सवाल हैं तुम्हारे कि जी करता है कि इनकी पोटली बना आसमान में उड़ा दूं ....सच कहूं तो उड़ा ही दिए हैं। न उड़ाती तो जिंदगी का सबब ही खो देती।
देखो वो तस्वीर के उस पार की कश्ती देख रहे हो...
उसमें खास कुछ नहीं है सिवा इसके कि उसमें उन लम्हों का भार है जिनके वजन से झील का पानी किनारों को धकियाता रहता है , ये जिंदगी है, वो कश्ती जीने की जिद है।
मुझे अच्छा लगता है और बुरा क्यों नहीं लगता ? मैं किसी वक्त भी उस वक्त से अलग नहीं हो पाती .....कोई जिंदगी से अलग होकर जिंदगी को सोचता है क्या ?


खुद पर इतना कम भरोसा क्यों ? क्यों इतने सवाल ? कहीं कोई एक झूठ हजार सच पर भारी तो नहीं  ?


ये हमारी जिंदगी है, ऐसे ही उलझाकर रखती है  ! सोचती है कि हर रोज़ कोई नया सवाल रख देगी तो मैं किसी रात ख्वाब छोड़ उसे हल करने लगूंगी पर ऐसा भी होता है क्या कोई ..... मुझे तुमसे मोहब्बत है मेरी जिंदगी ! तू सवाल किये जा मैं जवाब सजा के बैठी हूं।
ये सबसे खुशनुमा मंजर है ....अब मैं और मेरा इश्क जिंदगी की उस कश्ती पर सवार हैं जो हज़ार दियों वाली झील के सीने पर सिर टिकाये है ....  ले चल मेरे मांझी ले चल पार .. सवालों के पार - जवाबों के परे ! दूर पहाड़ों पर ,जंगल और दरिया किनारे .....
कब खत्म होगी ये दौड़ , इतना दौड़ के क्या हासिल हुआ ?
आओ कुछ पल उंगलियां उलझा के बैठें .... दरिया को सुने और जंगल को जी लें ,जब इसी के सुपुर्द होना है तो क्यों न इसी के हो के रह जायें.....
मेरी खूबसूरत जिंदगी मुझे तुझसे बेपनाह मोहब्बत है, तेरे इश्क में मर भी गयी तो फिर से तुझे पा लूंगी !