Sunday 28 April 2019

लेकिन फिर मन कहता है नोटा नहीं , उम्मीद को चुनना !!

दम घोटू चुनाव प्रचार और  उथले - कुंठित नवोदित नेताओं की सुनामी ने लोकतंत्र के इस महापर्व को कचरे का ढेर बना डाला है |

मन नहीं करता कि घर से बाहर जाकर झाँका भी जाए कि कौन वोट मांगने आया है,कौन जाने वो किस बहाने से आपके सुख  की रेकी कर के चला जाए | बहसों से बच के निकल जाती हूँ , आएगा तो मोदी ही - या पप्पू की मम्मी या फिर केजरीवाल ......... कान में सब कुछ पड़ता है पर मन जाने क्यों सब से निर्लिप्त है | 

ये अजीब उत्साहहीनता का दौर है ,  वैसा ही जैसा हमेशा से रहता था | 

छोटे थे तो हर दल की रैली के झंडे - बिल्ले लगा कर घूम लेते थे | पापा कट्टर कांग्रेसी थे सो पंजे पर जोर रहता था लेकिन जयपुर ग्रामीण से बीजेपी सांसद गिरधारी लाल भार्गव जो सात बार जीते थे , उजला अरोड़ा जो विधायक थीं पारिवारिक सदस्य ही थे ,के साथ कमल भी कहीं साथ चलता था |  वो दौर अटल बिहारी वाजपेयी ,वीपी सिंह और इंदिरा -राजीव का था |  सबका साथ रहता था , जनसंघियों का भी खूब आनाजाना था | 

राजीव गांधी को सुना था मैंने ,इंदिरा को भी....... अरविन्द केजरीवाल के शपथ ग्रहण में रामलीला मैदान की भीड़ का हिस्सा भी थी !!

सब देख सुन लिया और जी लिया ....... उम्मीदों को बनते बिगड़ते ,जोश को उठते -बिखरते -ठहरते देख लिया | सत्ता कैसे सपनों को छलती है और उम्मीदों को कैसे वोट में बदलती है ,सब देख लिया | 

आप चुनते किसी और को हैं वो निकलता कुछ और है , आप चलते उसके साथ हैं पर वो मंजिल बदल लेता है !! अब आधे रास्ते से लौट जाने या वहां रुक कर उसके लौटने ,पीछे मुड़ कर देखने की उम्मीदें भी जाती रहती हैं | कारवाँ बढ़ता रहता है , तारीखें बदलती रहती हैं और सरकारें भी | 

नहीं बदलता है कुछ तो वो है हमारी नियति !! 

तमाम तरह के हथकंडे अपना कर मोदी भले सरकार बना लें लेकिन ये बात वो भी जानते हैं कि देश को उन्होंने धर्म -जाति -समाज -देशद्रोही -देशभक्त में बाँट दिया है | इतना बैर -इतनी कटुता .......आप देश को बाँट कर उस पर राज कर सकते हैं लेकिन उसके दिल में जगह नहीं बना सकते | कांग्रेस की नीतिगत विफलताओं और भीतरघात ने देश को कमजोर विपक्ष  दे दिया जिसका परिणाम अब मोदी के रूप में सबको भोगना  पड़ रहा है | 

किसी भाषण में ,किसी परिचर्चा में वो देश के मुखिया नहीं लगे | बीजेपी के प्रवक्ता से ज्यादा इस व्यक्ति की कोई हैसियत नहीं है | फर्जी आंकड़े और फर्जी दावों के बूते पर अगर मोदी ही आएगा तो आ जाए !! कम से कम मेरी पीढ़ी इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराई जा सकेगी | 

देश जिम्मेदार है ,लोग जिम्मेदार हैं अपने गलत निर्णय के लिए !! हम काम नहीं देख रहे ,काम के नाम पर हो रहे प्रचार से भर्मित किये जा रहे हैं कि लगे कि अथाह काम हो रहा है | 

अब ऐसे में क्या देखना है ,क्या सुनना है ,किसे चुनना है सब कुछ नोटा हो गया है | 

लेकिन फिर मन कहता है नोटा नहीं ,  उम्मीद को चुनना !! 

कल वोटिंग है ,मैं वोट दूंगी आप भी वोट जरूर देना  भले मन हो या ना हो !! चुप रहे या बैठे रहे तो हम भी कहीं गुनहगार ही ठहराए जाएंगे | 

जय लोकतंत्र -जय जनतंत्र !!!


Sunday 24 February 2019

ये माटी ,पहाड़ ,नदियां ,जंगल ,खेत....... एक यायावर है मुझमें जो कभी टिकने नहीं देता !


वक़्त कहाँ रुकता है किसी के लिए और अगर रुक भी जाये तो कौन ठहरता है उस वक़्त के लिए ?
कभी वक़्त को हमारे लिए फुरसत नहीं और कभी हमें वक़्त का इंतज़ार करना नहीं आता....... हम सब ठेले जाते हैं ,कभी इसके मन से तो कभी उसके मन से !!

एक रोज़ जंगल की पगडंडी पर पत्तों की चरमर सुनते हुए मैंने जाना कि खुद के लिए वक़्त निकालना कितना जरूरी है | पहाड़ों से उड़ कर आते बादल और सीली हुई हवा ने कान में कहा कि अब आयी हो तो लौटना मत...... मैं अब उसी की सुनती हूँ | जब तक उसकी नहीं सुनी थी , उलझन में थी कि किसकी सुनूं ?

ये माटी ,पहाड़ ,नदियां ,जंगल ,खेत....... एक यायावर है मुझमें जो कभी टिकने नहीं देता ! वक़्त ने जीना सिखा दिया ,चलते रहना सिखा दिया , इंतज़ार करना सीखा दिया |

घुम्मकड़ी को जिंदगी का हिस्सा बना लीजिये , समझ जाएंगे कि जीने लिए दुनिया भर के तामझाम नहीं चाहिए | मौत भी आने से पहले आपके इंतज़ामात का जायजा लेने नहीं आएगी | कितना भी आराम जुटा लें , रिश्तों का कितना भी जमावड़ा हो आसपास...... आपको सुकून तो पल दो पल आँख बंद करके अकेले हो जाने में ही मिलेगा |

जब आनंद भीतर है तो बाहर किसे ढूंढना और किसके लिए महल -असबाब इकट्ठे करने हैं ?

भीतर के बच्चे को ज़िंदा रखिये और उसके बचपन को महसूस कीजिए | वक़्त को कैलेंडर का और कैलेंडर को जिंदगीनामा बना लेंगे तो जियेंगे कब ? लोग शिकाययत करते हैं ,उसके लिए इतना किया पर उसने ऐसा किया -वैसा किया...... ये सच है ,हम नाशुक्रे लोग हैं ! जिसने किया, वो उसका फर्ज था सोच कर आगे बढ़ जाते हैं ,ये सोच कर कि ना भी करता तो कौन सा उसको कहा था करने के लिए...... व्यथा की कथा यहीं से शुरू हो जाती है |

क्यों किया ?

इसीलिये कहती हूँ , कीजिये पर खुद को बचा ले जाईये इस कपोल कल्पित बोझ से | सब के कर्मों का भार अपने कंधों पर कैसे रखा जा सकता है |

वक़्त पर भरोसा करना और वक़्त से शिकायतें करना जरूरी नहीं है और लाज़मी भी नहीं ! अवसाद और खुशी का हर मौका पेड़ -पहाड़ -नदी -हवा...... के साथ साझा कीजिये और वक़्त की धुन को गुनगुनाइए ,यही जीवन संगीत है ,यही वक़्त है जीने का.......

जीते रहिये -चलते रहिये !!

Sunday 20 January 2019

मैं चाँद पर हूँ , हूँ तो हूँ !! कम से कम सुबह होने तक तो हूँ ना .......

एक रोज़ आसमां पर टहलते हुए चाँद के करीब पहुँच गयी........ गुजरते हुए आंचल में सितारे अटक गये थे ,अटके रहने दिए !! कुछ उठा के जूड़े में भी अटका लिए...... !! चाँद मुझे देखते ही खिल गया , कहा आओ..... कब से इंतज़ार था तुम्हारा !!

मैं हंस पड़ी ,ये सोच कर कि ये भी निरा झूठा है ,मेरा इंतज़ार इसे क्यों था भला ? सारी दुनिया इसकी तरफ देख के आहें भर रही है , जाने कितने ख्वाब ,जाने कितनी ख्वाहिशें इसके इर्द गिर्द घूमती हैं........मेरा इंतज़ार ?

उसको अनसुना कर दिया मैंने ! मैं बस उसको छूना चाहती थी ,ये देखना चाहती थी कि वो वास्तव में उन कल्पनाओं के जैसा है भी या नहीं जिसके लिए दुनिया छोड़ने की जिद की ??

अजीब होती हैं ना ख्वाहिशें भी ! रात सितारे हथेली पर धर जाती है और दिन माथे पर सूरज रखकर चला जाता है | हम कहाँ होते हैं इन सब के बीच ? कोई भी कहाँ है ? सबके पास अपनी अपनी दुनिया है , कहने भर को सब इसी दुनिया में हैं !!

हर कोई अपने आप में एक टापू है , उस तक पहुंच भी जाओ तो सब से कट जाना होता है और वहां से निकलो तो उसको छोड़ देना होता है | कोई विकल्प नहीं कि सब संग हो , सब साथ हों....... बस एक ही सुकून है , ख्वाब !!

मैं चाँद पर हूँ , तो हूँ !! कम से कम सुबह होने तक तो हूँ ना .......उससे हजार सवाल करूंगी , उसकी नजर से दुनिया भी देखूंगी !

मैंने कहा , मुझे ले चलो अपने साथ .......वहां बादलों से पार !! दुनिया देखनी है मुझे ?

वहीं से तो आयी हो ? वो हैरान था !

हाँ , पर वहां से कुछ समझ नहीं आयी , अजीब था सब !! भीड़ लगती थी पर सब अकेले ही मिले ......!

तो , तुमको क्या लगता है यहाँ से सब एक साथ दिखेंगे ?

हाँ ,दिखेंगे ! दूर से सब के करीब होना धोखा होता है ना !! फिर तुम भी तो उनके लिए वैसे ही मरीचिका हो.. तुम्हारी कसमें खाते हैं , तुमको देख कर कितने व्रत उपवास होते हैं , किसी के बचपन का सहारा और किसी की जवानी का .......पर तुम भी तो कहाँ हो ?

हूँ तो !! देखो छू कर देखो मुझे ....... मुझमें भी धडकन है , मुझमें भी बचपन है और जीवन का हर रंग है !! चलो ले चलता हूँ तुमको वहां जहाँ से तुम अपनी इच्छा पूरी कर सको !!

हम बादलों के पार चल पड़े ! चांदनी की दरिया पार कर कोई जगह थी , उसने कहा मेरी बाहं कस कर थामना और फिर नीचे देखना !!

मैं हैरान थी ,हथेलियाँ उसकी बाहं को और कस रही थीं ......मेरी दुनिया तो बिलकुल अलग है , एक दम बूँद बराबर , लोग भी कहीं नहीं , बस रोशनी ही रोशनी तो कहीं समन्दर कहीं पहाड़.......!! ये वैसी नहीं है, जैसी मैं सोचती थी !!

तुम डर रही हो ? चाँद ने पूछा !!

हां !! ये कैसे हो गया ? जो उम्र भर जिया वो झूठ कैसे और ये सच कैसा है ?

वो हंस दिया , कहने लगा "सुनो , मैं भी तो मिट्टी हूँ ! ना चांदनी मेरी है ना मर्जी से मेरी सूरत तुमको दिखा पाता हूँ...... असमान में टंगा हूँ ,ना जमीन मेरी है न आसमान मेरा है पर मुझे तुमसे प्यार है........इसलिए कि तुम मेरी दुनिया हो और मुझसे मिलने यहाँ तक चली आईं........अब जाओ ,लौट जाओ ! देखती रहना मुझे ,हर रात तुमको नई नज्म सुनाऊंगा ,तुम्हारे लिए कुछ कहानियां और गीत भी लाऊंगा......

और सुनो , दुनिया वही है जिसमें तुम खुश रह सको और खुशी का कारवां भीतर से बहता है !! उसे महसूस करना और खुश रहना...... मुस्कुराना कि चाँद भी तुम्हारा है और दुनिया भी !!

नींद तब तक खुल गयी थी ,सूरज माथे पर चढ़ आया था पर एक चाँद भी कहीं दूर क्षितिज पर था , जो देख कर मुस्कुरा रहा था कि मैं सलामत से अपनी दुनिया में लौट आयी हूँ उसके प्यार को हजार सितारों के साथ जीत के आयी हूँ ...........