Tuesday 30 May 2017

आज़ाद कीजिये खुद को नई पुरानी तल्खियों से ........

खुद को कैद रखना आज़ाद कर देने से ज़्यादा आसान होता है ! कभी लम्हों की कैद में ,कभी  सांसों की कैद में......हमे हमेशा सलाखें ही चाहिए होती हैं ,शायद इसीलिए कि हम भी उसी में खुद को सुरक्षित महसूस करने लगते हैं और कभी इसलिए कि वो हमारी जरूरत हो जाती हैं और कभी इसलिए कि उसी में एक दुनिया उग आती है ,वो दुनिया जिसमें हम हैं पर नहीं हैं !

बहुत लोग मिले , हर किसी के पास अपना कैदखाना है , कोई अपनी खुशी से कैद है और कोई दूसरों की ख़ुशी के लिए उसमें कैद है ! रूह भी कैद है और सांसे तो खैर हैं ही ! हाड का पिंजर भी अपने भीतर कितनी जिंदगियां समेटे है |

जिसके पास घड़ी दो घड़ी बैठ जाओ , उनके भीतर से शिकायतों का दरिया बहने लगता है ! हर किसी को महसूस होता है कि उसे छला जा रहा है , सबको सबसे शिकायतें हैं ! अंतहीन सिलसिला है ! ऐसे बहुत कम लोग मिले जो कहते हैं कि उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं हैं , कुछ कह भी देते हैं तो अगले ही पल ऐसे सवालों की झड़ी लगा देते हैं जो जिंदगी की "क्यों " पर ही खत्म होती है !

मेरे पास किसी सवाल का कोई जवाब नहीं सिर्फ अपने अनुभव हैं ! उसी से कहती हूँ कि जिंदगी जितने भी सवाल करती है उन सब सवालों के जवाब हमारे ही कर्म हैं ,कुछ इस जन्म के कुछ पिछले जन्मों के ! दोष किसी का नहीं ! जो किया वो पाया तो शिकायत क्या कीजे !

जीना चाहते हैं और खुश रहना चाहते हैं तो शिकायतों की पोटली को इश्क के दरिया में बहा आइये ! आज़ाद कीजिये खुद को नई पुरानी  तल्खियों से और नए कलेवर में अपनी उम्र को एक बार फिर आईने के सामने संवरते देखिये !

 मन एक खूबसूरत किताब है जिसमें उन सुनहरे लम्हों की अनगिनत कहानियां हैं जो जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाती हैं ...... तो फिर क्यों उन लोगों ,घटनाओं और समय की कैद का स्ववरण किया जाये जो जीवन को ही नष्ट कर रही हैं !

जिंदगी का हाथ थामिये और और चल पड़ें  नए रास्तों और अनजान चेहरों के बीच ,शायद वहां आप खुद को खोज  पाएं !