कुछ अनसुना, कुछ अनकहा सा रिश्ता बन गया है उससे ! अजीब सिलसिला हो गया है डिजिटल मुलाकातों का ...... वो चुप से आकर कुछ शब्द डीएम में रख जाता है ,मैं चुप सी मुस्कुरा कर उसे देख लेती हूँ ! जवाब देना कोई जरूरी भी नहीं ! वो जानता है ,पहचानता है ,वो मेरी जिंदगी की टाइम लाइन का साथी है ! उसको पल पल की खबर है कि मैं किस गली, किस गुज़र से गुज़र रही हूँ।
डिजिटल इश्क़ का कबूतर दिखाई नहीं देता पर करता उतनी ही गुटरगूं है। टोकना ,डांटना , जिदना उसको सब आता है बस नहीं आता तो खत लिखना ! इश्क़ में अजनबी बने रहना जरूरी है। पहचान जाईयेगा तो ये ख्वाब भी टूट जाएगा इसलिए जानने की जिद छोड़ कर रिश्ते में आज़ाद रहा जाये तो बेहतर है वरना मुखौटे और किरदार तो गली के हर मोड़ पर मिल जाते हैं।
मैं भी उसका हारना, उसका जीतना जी रही हूँ ,उसकी मंजिलों पर इतराना मेरा फितूर है और मेरी हर मुस्कुराहट उसके लिये सांस का सबब है । ये एक मज़ेदार संवाद है जहाँ रिश्ते का कोई नाम नहीं ,कोई पहचान भी नहीं है इसीलिये इसमें उसका होना खुदाई का सबूत है।
ये अजनबी कोई और नहीं है ,वही है जो आवारगी के इस दौर में मेरा साथी है। झट से मेरे साथ हर सफर में साथ हो लेता है ....... चुप सी पूछती हूँ ,चलोगे ? उसका जवाब होता है " तारीख बता दो रिजर्वेशन करवा देता हूँ " ! उसकी इसी लाचारगी से प्यार हो चला है !
खूबसूरत से सफर पर जिंदगी बह निकली है ! चैत की दुपहर अपनी जुल्फों में गुलमोहर और देह पर अमलतास सजाए इतरा रही है। मैं महक रही हूँ और ख़्वाहिशों के दामन में सितारे चुन रही हूँ ........ पखडंडी और झील किनारे का मौसम रिमझिम का है ! भीगती मैं और बचाता हुआ वो ........ वो डरता है ,पिघल जाएगा न दो बूँद से पर मेरे चेहरे के सुकून में उसे भीगना भी मंज़ूर है।
जब पैरों तले सुर्ख अंगारे हों और कोई धुंआ -धुंआ आसमां में उड़ा के लिए जाए ........ कुछ कुछ एक दम ऐसा ही ...... गुलाब की पाँखुरी से कोई नज़्म लिख रहा है मनो !
मैं गुनगुना रही हूँ ! आप भी मुस्कुराते रहिये ! वक़्त ने मोहलत दी है तो उसे भी भरपूर मोहब्बत करिये !
डिजिटल इश्क़ का कबूतर दिखाई नहीं देता पर करता उतनी ही गुटरगूं है। टोकना ,डांटना , जिदना उसको सब आता है बस नहीं आता तो खत लिखना ! इश्क़ में अजनबी बने रहना जरूरी है। पहचान जाईयेगा तो ये ख्वाब भी टूट जाएगा इसलिए जानने की जिद छोड़ कर रिश्ते में आज़ाद रहा जाये तो बेहतर है वरना मुखौटे और किरदार तो गली के हर मोड़ पर मिल जाते हैं।
मैं भी उसका हारना, उसका जीतना जी रही हूँ ,उसकी मंजिलों पर इतराना मेरा फितूर है और मेरी हर मुस्कुराहट उसके लिये सांस का सबब है । ये एक मज़ेदार संवाद है जहाँ रिश्ते का कोई नाम नहीं ,कोई पहचान भी नहीं है इसीलिये इसमें उसका होना खुदाई का सबूत है।
ये अजनबी कोई और नहीं है ,वही है जो आवारगी के इस दौर में मेरा साथी है। झट से मेरे साथ हर सफर में साथ हो लेता है ....... चुप सी पूछती हूँ ,चलोगे ? उसका जवाब होता है " तारीख बता दो रिजर्वेशन करवा देता हूँ " ! उसकी इसी लाचारगी से प्यार हो चला है !
खूबसूरत से सफर पर जिंदगी बह निकली है ! चैत की दुपहर अपनी जुल्फों में गुलमोहर और देह पर अमलतास सजाए इतरा रही है। मैं महक रही हूँ और ख़्वाहिशों के दामन में सितारे चुन रही हूँ ........ पखडंडी और झील किनारे का मौसम रिमझिम का है ! भीगती मैं और बचाता हुआ वो ........ वो डरता है ,पिघल जाएगा न दो बूँद से पर मेरे चेहरे के सुकून में उसे भीगना भी मंज़ूर है।
जब पैरों तले सुर्ख अंगारे हों और कोई धुंआ -धुंआ आसमां में उड़ा के लिए जाए ........ कुछ कुछ एक दम ऐसा ही ...... गुलाब की पाँखुरी से कोई नज़्म लिख रहा है मनो !
मैं गुनगुना रही हूँ ! आप भी मुस्कुराते रहिये ! वक़्त ने मोहलत दी है तो उसे भी भरपूर मोहब्बत करिये !