Sunday 20 January 2019

मैं चाँद पर हूँ , हूँ तो हूँ !! कम से कम सुबह होने तक तो हूँ ना .......

एक रोज़ आसमां पर टहलते हुए चाँद के करीब पहुँच गयी........ गुजरते हुए आंचल में सितारे अटक गये थे ,अटके रहने दिए !! कुछ उठा के जूड़े में भी अटका लिए...... !! चाँद मुझे देखते ही खिल गया , कहा आओ..... कब से इंतज़ार था तुम्हारा !!

मैं हंस पड़ी ,ये सोच कर कि ये भी निरा झूठा है ,मेरा इंतज़ार इसे क्यों था भला ? सारी दुनिया इसकी तरफ देख के आहें भर रही है , जाने कितने ख्वाब ,जाने कितनी ख्वाहिशें इसके इर्द गिर्द घूमती हैं........मेरा इंतज़ार ?

उसको अनसुना कर दिया मैंने ! मैं बस उसको छूना चाहती थी ,ये देखना चाहती थी कि वो वास्तव में उन कल्पनाओं के जैसा है भी या नहीं जिसके लिए दुनिया छोड़ने की जिद की ??

अजीब होती हैं ना ख्वाहिशें भी ! रात सितारे हथेली पर धर जाती है और दिन माथे पर सूरज रखकर चला जाता है | हम कहाँ होते हैं इन सब के बीच ? कोई भी कहाँ है ? सबके पास अपनी अपनी दुनिया है , कहने भर को सब इसी दुनिया में हैं !!

हर कोई अपने आप में एक टापू है , उस तक पहुंच भी जाओ तो सब से कट जाना होता है और वहां से निकलो तो उसको छोड़ देना होता है | कोई विकल्प नहीं कि सब संग हो , सब साथ हों....... बस एक ही सुकून है , ख्वाब !!

मैं चाँद पर हूँ , तो हूँ !! कम से कम सुबह होने तक तो हूँ ना .......उससे हजार सवाल करूंगी , उसकी नजर से दुनिया भी देखूंगी !

मैंने कहा , मुझे ले चलो अपने साथ .......वहां बादलों से पार !! दुनिया देखनी है मुझे ?

वहीं से तो आयी हो ? वो हैरान था !

हाँ , पर वहां से कुछ समझ नहीं आयी , अजीब था सब !! भीड़ लगती थी पर सब अकेले ही मिले ......!

तो , तुमको क्या लगता है यहाँ से सब एक साथ दिखेंगे ?

हाँ ,दिखेंगे ! दूर से सब के करीब होना धोखा होता है ना !! फिर तुम भी तो उनके लिए वैसे ही मरीचिका हो.. तुम्हारी कसमें खाते हैं , तुमको देख कर कितने व्रत उपवास होते हैं , किसी के बचपन का सहारा और किसी की जवानी का .......पर तुम भी तो कहाँ हो ?

हूँ तो !! देखो छू कर देखो मुझे ....... मुझमें भी धडकन है , मुझमें भी बचपन है और जीवन का हर रंग है !! चलो ले चलता हूँ तुमको वहां जहाँ से तुम अपनी इच्छा पूरी कर सको !!

हम बादलों के पार चल पड़े ! चांदनी की दरिया पार कर कोई जगह थी , उसने कहा मेरी बाहं कस कर थामना और फिर नीचे देखना !!

मैं हैरान थी ,हथेलियाँ उसकी बाहं को और कस रही थीं ......मेरी दुनिया तो बिलकुल अलग है , एक दम बूँद बराबर , लोग भी कहीं नहीं , बस रोशनी ही रोशनी तो कहीं समन्दर कहीं पहाड़.......!! ये वैसी नहीं है, जैसी मैं सोचती थी !!

तुम डर रही हो ? चाँद ने पूछा !!

हां !! ये कैसे हो गया ? जो उम्र भर जिया वो झूठ कैसे और ये सच कैसा है ?

वो हंस दिया , कहने लगा "सुनो , मैं भी तो मिट्टी हूँ ! ना चांदनी मेरी है ना मर्जी से मेरी सूरत तुमको दिखा पाता हूँ...... असमान में टंगा हूँ ,ना जमीन मेरी है न आसमान मेरा है पर मुझे तुमसे प्यार है........इसलिए कि तुम मेरी दुनिया हो और मुझसे मिलने यहाँ तक चली आईं........अब जाओ ,लौट जाओ ! देखती रहना मुझे ,हर रात तुमको नई नज्म सुनाऊंगा ,तुम्हारे लिए कुछ कहानियां और गीत भी लाऊंगा......

और सुनो , दुनिया वही है जिसमें तुम खुश रह सको और खुशी का कारवां भीतर से बहता है !! उसे महसूस करना और खुश रहना...... मुस्कुराना कि चाँद भी तुम्हारा है और दुनिया भी !!

नींद तब तक खुल गयी थी ,सूरज माथे पर चढ़ आया था पर एक चाँद भी कहीं दूर क्षितिज पर था , जो देख कर मुस्कुरा रहा था कि मैं सलामत से अपनी दुनिया में लौट आयी हूँ उसके प्यार को हजार सितारों के साथ जीत के आयी हूँ ...........