रवीश हो जाना........

दो -तीन बरस पहले तक टीवी देखती थी तो न्यूज़ चैनल पसंदीदा हुआ करते थे ,बहस भी देखती थी ! एक दिन चैनल बदलते -बदलते NDTV पर मेरठ में बैट बनाने वालों पर रवीश की रिपोर्ट देखने लगी। अच्छा लगा ,कोई तो है जो इतनी सादगी से इतनी गहराई में जाकर एक मामूली सी दिखने वाली चीज़ से असाधारण परिचय करवा रहा है। लगा कि बन्दे में दम है , उसके बाद यू ट्यूब पर एक एक कर रवीश की रिपोर्ट के सारे एपिसोड देख डाले.......तब तक ट्विटर से नाता नहीं था ,ना फेसबुक से दोस्ती ! उसके बाद अन्ना का आना हुआ ,केजरीवाल पर दिल आने लगा और चुनावों का मौसम आ गया ……… रवीश रैली कवर करते और हर एक से पूछते ट्विटर -फेसबुक पर तो नहीं हो ! उधर थरूर के ट्विटर प्रेम परिणति के चर्चे भी खूब हो रहे थे ……लगा कि ऐसा क्या है इस ट्विटर में जो रवीश इस बात को रोज करते हैं ……उस दिन का दिन और आज का दिन मैं और ट्विटर साथ हो लिए।

पहले रवीश की रिपोर्ट फिर धीरे -धीरे प्राइम टाइम …… फिर ट्विटर पर रवीश मिल गए। राजनीति से लेकर रोमांस तक का जीवन का हर पहलू जिसमें समाया हुआ था वो केवल रवीश में ही पाया।  घर वाले भी जान गए कि 9 बज गए हैं अब एक घंटा इससे कोई बात नहीं होगी ……ट्विटर पर रविश से किसी संवाद पर पीला सितारा टंग जाता तो उस सितारे को फेसबुक पेज पर यूँ टांगने लगी मनो राष्ट्रपति अवार्ड मिला हो.…फेसबुक दोस्त भी समझ गए कि रवीश की एक नई फैन धरती पर आ गयी  है।

रवीश आश्रम के जाम में फंसते रहे मैं उनकी लप्रेक और उनके FM पर बजने वाले गानों का लुत्फ़ उठाती रही। प्राइम टाइम देखने लगी तो बाकी चैनल नीरस और उनपर होने वाले बहस युद्ध हलकान करने लगे।

रवीश हर बार कहते टीवी कम देखिए --- सो नतीजा ये हुआ कि सब बंद हो गया सिवा प्राइम टाइम के।

जनवरी 15 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में रवीश की लप्रेक का रिलीज़ और उनसे हुई नाटकीय मुलाकत ने उनसे गजब का अपनापन पैदा कर दिया।  फ़रवरी में रामलीला मैदान पर दूसरी मुलाकत हुई ,दूर से प्रणाम भर हुआ पर लगा की परिचय का धागा बंध गया है।  ट्विटर से रवीश गायब होते तो लगता कि ट्विटर नीरस है। 140 का जादू है रवीश के ट्वीट्स में ! सीखने के लिए इतना कुछ कि एक उम्र भी शायद कम हो।

रवीश की सराहना और आलोचना दोनों पढ़ी।  गरियाने वाले भी भरपूर हैं तो चाहने वालों की भी कमी नहीं.......और कौनसा ऐसा एंकर होगा जिसके लिए चाहतों और आहतों का इस कदर मेला लगा मिले।

आप कह सकते हैं कि मैं प्रशंसक की हैसियत से रवीश की कमियों को नज़रअंदाज़ कर रही हूँ , हो सकता है… पर कमियां किस में नहीं ? व्यक्ति की अपनी निजी राय और पसंद -नापसंद उसका  मौलिक अधिकार है ,गाहे -बेगाहे अगर उसकी झलक उसके सार्वजनिक जीवन में भी दिख जाए तो इतना बवाल भी क्या काटना कि राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाए।

तर्क को तर्क की कसौटी पर कसने की जगह ढेलने -धकेलने वालों की जमात बढ़ती जा रही है पर इससे सच बदलने वाला नहीं है। तीखे सवालों से आज रूबरू न हो सके तो अच्छे दिनों के इंतज़ार में हर जवाब चाँद से लीजियेगा !

रवीश जीवन से भरपूर एक किताब कि मानिंद हैं और  मेरे लिए रवीश बस रवीश है………हर बहस से परे ! 

3 comments:

  1. Ravish ka fan mat bano Ravish ke sath khade rahne ki jaroorat hai kandhe se kandha milakar qke unpe bahot khatra hai netao ka

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