Thursday 16 December 2021

सच को सब मालूम है पर सच की सुनेगा कौन ? सच की गवाही कौन देगा ? सच के चेहरे की लकीरों को कौन पढ़ेगा ?

आदमी हजार बार मरता है और  जो कहता है कि जी रहा है, तो झूठ कहता है. उसका ये कौनसा जनम  है ,वो खुद नहीं जानता ! मुखौटे लेकर सच की दुहाई देते लोगों के बीच , झूठ की फसल को सींचते लोग , दिन ब दिन बदलते , बहलाते ,खुद को फुसलाते लोग......... जिन्दा हैं क्या ? 

तुमको अच्छा लगता होगा , चमके -उजले -दमकते चेहरों से उतरते रंगों का दरिया , बातों में जमीर घोल कर पीने -पिलाने का चलन , अच्छा है ! सब अच्छा है ! सबको अच्छा कहते रहना भी अच्छा है | 

अच्छा तो है ही ये सब, पर जब मर ही जाना है एक दिन सबने तो फिर किसके लिए इतने स्वांग रचने हैं ?  सबको सबका सच पता है ! कितना हासिल हो जाएगा ,कितना संग ले जायेगा कोई....  

बेवज़ह अब कुछ नहीं होता , वजह सरकारी होती हैं , कुछ भी ढूंढने से ज्यादा , क्या वजह बतायी जाए ,यही ध्यान रखना जरूरी है  ! नकली मुस्कुराहट चस्पा कर लोग कोई अपना सा ढूंढ रहे हैं ,अपना कह देने भर को मर रहे हैं ? क्या मंज़र है , लाशों के इस ढेर में सबको किसी से प्यार करना है ,सबको खुद से मुलाकत करनी है ? 

कितनी लाचारगी ,कितनी बेचारगी है...... सच जानते हुए भी इस स्वांग का हिस्सा सबको बनना है  | 

इस खेल में हंसना ,रोना ,गाना -बजाना सब होगा |  बस जिस रोज़ सच विदा होगा , असल खेल उसी दिन होगा !!

आंसुओं से आईने को पिघलते देखा है क्या आपने ? 

ये उस दिन देखना ........देखना कि झूठ की भी रस्मअदायदगी होती है , उसकी भी सवारी निकलती है | लोग तख्त पर बिठाते हैं , जयकारे होते हैं , शहर में मुनादी होती है कि झूठ अब गद्दी पर बिठाया जायेगा ,झूठ अब शासन संभालेगा | 

सच को सब मालूम है पर सच की सुनेगा कौन ? सच की गवाही कौन देगा ? सच के  चेहरे की लकीरों को पढ़ेगा कौन  ? 

इस तरह हजार झूठ के बीच जीते हुए मर जाने की कल्पना कीजिये और फिर हर जन्म में फिर इन्हीं के बीच ,इन्हीं आवाज़ों के बीच खुद को देखिए ...... क्या लगता है , फिर लौटना चाहेंगे ? फिर से उसी शहद से पगी खंजर सी जुबान से खुद को आज़ाद कर सकेंगे ? 

सीने में कुछ धंसता है ये सब देख के , बहुत गहरा सा........ किरचे सा झूठ है पर जन्मों का घाव है !

हर कोई कोशिश कर रहा है  , झूठ के महल को सपनों सा सच देखूं , कोई परिकथा सा खेल जानूं ,उसे अमराई की गोद में खेलती धूप -छाहँ देखूं...... 

मैं भी हैरान हूँ कि सच को सच देखूं या  झूठ के तिलिस्म को अपना ठिकाना मानूँ ? 

एक कलम लेकर उसे तोड़ दो .... बात खत्म हो जायेगी ! 

अपने हिस्से का सच वहीं तक रह जाएगा , उसके सच उसके साथ रह जायेंगे.........

वक़्त फैसला करेगा कि कलम लाना सच था या कलम तोड़ देने से सच को झूठ लिख सकने की संभावना को खत्म कर देना ही सच था ? 

सच तो ये है कि सच कुछ होता नहीं ,झूठ कुछ है नहीं | सबको गुड्डे -गुड्डी ब्याहने हैं और बिदा कर देने हैं | 

आप भी खेलते रहिये , हमने भी खेल लिया !!

जय राम जी की ! 

3 comments:

  1. सच के चेहरे की लकीरें कौन padh सकता है!!🙌👌

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