मेरा कैलाश मानसरोवर जाना......

जीवन में सब कुछ प्रारब्ध तय करता है ,मान लेने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इसमें भी दो राय नहीं है कि बिना संकल्प के प्रारब्ध भी अपना काम बखूबी नहीं कर पाता है | बहस कर सकते हैं कि इसके लिए साहस भी प्रारब्ध ही देता है या खुद के प्रयासों से ये सम्भव होता है , पर जो भी है ,कुछ है जो हमको चलाता है। कुछ है जिसे हम चला रहे हैं !

अल्मोड़ा में दो माह के प्रवास ने पहाड़ों से ऐसा प्रेम पैदा कर दिया कि उनका आकर्षण कभी खत्म नहीं हुआ ! ईश्वर में आस्था हमेशा रही लेकिन किसी नाम रूप में उसकी उपस्थिति को मानने से मन ने हमेशा इंकार कर दिया | आरती का दीपक लिए गाते समय भी सोचती रहती हूं कि ऐसा थोड़े ही होता है , मंदिरों में जाती हूँ लेकिन प्रपंच से बच निकलने का भरसक प्रयास करती हूँ फिर भी सब का कहना है कि मुझे कैलाश मानसरोवर जाने का मौका मिलना भोले की मुझ पर कृपा मानी जाए | 

मैं उस परम् सत्ता के आदेश को विनम्रता से स्वीकार करती हूँ और खुश हूँ कि उसने मुझे अचानक एक रोज ये उपजाया कि मैं गूगल करते करते कैलाश मानसरोवर यात्रा की साइट पर पहुंच गयी | पढ़ते -पढ़ते लगा कि इस बार जाया जाए |  परिजन तो हमेशा ही सुरक्षा को लेकर शंकित रहते हैं पर इस बार वो पहली बाधा भी मेरी इस घोषणा के साथ पार हो गयी कि " मैं कैलाश जा रही हूँ " ....... ! सबने कुछ कहा पर मैंने कुछ नहीं सुना फिर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा | 
जाने का तय भी उत्तराखंड के रास्ते से किया जो लिपुलेख दर्रे से हो कर जाता है | 22 दिन का रास्ता ,लम्बी चढ़ाई ,रात -दिन की ट्रेकिंग........ और क्या चाहिए था !

फिर से साइट खोल देखा तो ध्यान आया कि पासपोर्ट तक नहीं है। पहला काम वही है ,बनवाया और आवेदन दाखिल कर दिया ! एक -दो महीने तक इंतज़ार किया और जब ड्रा निकला तो महसूस हुआ कि ईश्वर सच में मुझे प्यार करते हैं | 

मेल आया ,कई बार देखा और फिर दसियों बार जाने क्या क्या पढ़ा |  कन्फर्मेशन राशि जमा करवाई और इस बार जाने की तारीख की घोषणा हुई ! एक बार फिर सबने कहा क्या सूझी है तुमको , कुछ ने कहा इससे तो अमरनाथ हो आतीं और कुछ ने कहा कर सकोगी ? 

तमाम शंकाओं का मेरे पास एक ही जवाब कि अब जब जाना है तो जाना है | जंगल -पहाड़ ,नदी नाले और भी ना जाने कितना कुछ पार करने को मिलेगा इस यात्रा से | 
11 वें बैच में हूँ और 18 जुलाई को दिल्ली के गुजराती समाज में रिपोर्ट करना है , वहां पहली बाधा मेडिकल की होगी जिसे दो दिन में पार करने के बाद ही ग्रुप वीज़ा मिलेगा | 

यात्रा का पहला दिन
पहला पड़ाव हल्द्वानी था !

दूसरा अल्मोड़ा जहाँ रात को रुके और सुबह 5 बजे धारचूला के लिए निकल पडे !
ये गोलू देवता का मंदिर है ! अल्मोड़ा से कुछ आगे......


पिथौरागढ़  की ओर ----


 पिथौरागढ़ से आगे जौलजीवी की ओर !


धारचूला से नारायण आश्रम जहाँ कैलाश द्वार है ,इसी दरवाजे से होकर यात्री जाते हैं !
 नारायण आश्रम में नारायण स्वामी का आश्रम है , सत्संग स्थल है ! बढ़िया हलवा और गर्म चाय मिली थी यहाँ प्रसाद में !


नारायण आश्रम से सिरका की ओर , यात्रा का दूसरा दिन !




धारचूला से सिरखा , जो  7 -8 किलोमीटर का ट्रैक है  



 सिरखा से गाला (14 किलोमीटर )


गाला से बुधि 25 किलोमीटर



























इस यात्रा से जुड़े अब सारे संस्मरण और अनुभव इसी पेज पर देती रहूंगी...... अगली पोस्ट यात्रा से जुडी तैयारियों की होगी ,आप पढ़ते रहिएगा !

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