Sunday 24 September 2017

उम्मीदें रखें पर उनकी कैद स्वीकार ना करें

एक आस , एक उम्मीद हर किसी को रहती है , सबसे भी और खुद से भी | इसी उम्मीद ने रिश्ते बना दिए और तोड़ भी दिए , इसी उम्मीद ने  साँसों को थामे रखा और साँसों की डोर तोड़ भी दी | उम्र गुजर जाती है ,खुद को दिलासा दिए रहने में कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा , न वो वक्त कभी आता है ना सांसे उस वक्त के और इंतज़ार की मोहलत देती हैं | 

अजब बेरोजगारी है इस उम्मीद की जो खत्म ही नहीं होती | रात आती है तो हजार सवाल लिए , क्या होगा -कैसे होगा -ना हुआ तो क्या होगा .......और भी ना जाने कितने बेसिर पैर के सवालों का जखीरा खुल जाता है ! सामने उम्मीद फिर अदालत लगा के बैठ जाती है , दावों -वादों और कहानियों की गवाही होती है ! रात बीतने लगती है ,गवाह सब ऊंघते हुए सो जाते हैं | दिन उग आता है , अपनी शाखाओं पर हजार उम्मीदों के फूल लिए........ मन बावरा फिर चल पड़ता है ,चुनता है धूप और पिरोता है छाहं |  निकल पड़ता है किसी खरीददार के इंतज़ार में कि कोई उसकी मेहनत का , उसके प्रेम का सही मूल्यांकन तो कर सके |  
अंततः उम्मीद को गिरवी रख फिर एक बार हकीकत को घर लाया जाता है | माना कि पेट उम्मीदों से नहीं भरता , ना तन उम्मीद से ढका जा सकता है, तो भी,  वो ना हो तो ना मन भरता है,  न तन मानता है | 

इस उम्मीद का तिलिस्म तोडना मुश्किल है लेकिन इस उम्मीद को जीना रगों में ऑक्सीजन के बहने जैसा है इसलिए उम्मीद कायम रखिये और वही कीजिये जो सबको सुख दे और आपको आत्म संतुष्टी ! आप किसी की उम्मीदों को शतप्रतिशत  पूरा नहीं कर सके , ना वे आपकी उम्मीदों पर हर बार खरे उतरेंगे इसलिए शिकायतों के फेर में ना पड़ें , ना खुद से खुद की शिकायत करें ना दूसरों से उम्मीदें पालें !

उम्मीदें रखें पर उनकी कैद स्वीकार ना करें क्यूंकि जिन्दगी के आपने उसूल हैं , आप उसके पार नहीं जा सकते !