Tuesday 29 November 2016

नोटबंदी "आईटम" है ! नचाइये -गम भूल जाइये !

आगे कुछ भी लिखने से पहले बता दूं कि मुझे नहीं पता की नोटबंदी से किसी को क्या फायदा होगा और किसी को क्या नुकसान , ना ही मुझे इसका अर्थशास्त्र पता है ना ही मैं नीति की ज्ञाता ! इस शोर से बस इतना समझ पायी हूं कि ये भी राष्ट्रभक्ति  का कोई  "आईटम"  है जो देश के सामने उसके दुःख दर्दों को भुलाने में एनेस्थीसिया का असर करेगा |

ऐसा होता आया है ,पिछले तमाम अनुभव बताते हैं कि जब- जब समाज जीवन के बुनियादी प्रश्नों पर सत्ता को घेरता है, तब तब सत्ता पर काबिज चन्द रसूखदार उन प्रश्नों को चट कर जाने के लिए अपनी सेना सड़कों पर उतार देते हैं।

संघर्ष के जिस दौर से ये नेता बनते हैं ,उसी संघर्ष का ऑमलेट बना देते हैं। संघर्ष का वो दौर इनको वो सब हथियार चलाना सिखा देता है, जिसे हम आप अनैतिक और अमान्य करार देते रहे हैं।

नोटबंदी भी ऐसा ही "आईटम" बन के सामने आया है , जिसे गली- गली इन्हीं कम्पनियों की बदौलत नचाया जा रहा है | इस "आईटम"  को नोट में तब्दील करने के लिए मीडिया की  टीआरपी से लेकर तमाम टेलीकम्युनिकेशन कम्पनियों के जरिये उगाही हो रही है |

आप बताएं कि इस "आईटम"  का डांस कैसा लगा ? पसन्द आया तो एक दबाएं  और दूसरा गाने पे नचाना है तो दो दबाएं , जैसे विकल्प देकर एक सर्वे करवाया गया है।

अब बताइये जब आप ने उस एप्प को बनवाया तो उसको क्या सफेद में पैसा दिया , दिया तो क्यों दिया ? फिर जब आपने उसे डाउनलोड किया तो नेट का बिल भरा , क्यों भरा ? नाच देखने के लिए ही ना ! वो पैसा सफेद का था जो काला होने चला गया और ये काला लिबास पहने वो नोटबंदी का "आईटम" आपसे भरपूर सीटी बजवायेगा |

मजदूर को दिहाड़ी नहीं मिली लेकिन "आईटम" उसके सामने है , शाम को रोटी नहीं मिली तो "आईटम"  उसके सामने है ! जिनको लगता है इस आईटम से देश सेवा कर रहे हैं , वे दरसल वे लोग हैं जो गणेश जी को दूध पिला कर उनके गली -गली घूमने में उनकी मदद कर चुके हैं। अब "आईटम" देख उस थकान को मिटायेंगे , कमीशन ले कर दिन भर लाइन में  खड़े होंगे , पौवा दाब सो जाएंगे !

देश के नाम पर धर्म ,संस्कृति के नाम पर गाय और अब भ्र्ष्टाचार के नाम पर इस "आईटम" का इस्तेमाल देखिये ,सराहिए और लपलपाइये। मौका ...मौका........ चुनाव नजदीक हैं , इसको भुना लीजिये ,इसको नचा लीजिये ताकि पब्लिक ये ना पूछे कि नौकरी नहीं मिली ,डिग्री फर्जी क्यों हैं , लोकपाल कहाँ गया , माल्या भागा  कैसे , घोटाले के मुजरिम कहाँ हैं , चन्दे का हिसाब कहां है , बेटी मेरी क्यों , सिपाही शहीद क्यों ?

इसी "आईटम"  के बीच नजीब का सवाल भी गुम गया ? मां भी एटीएम की कतार में लगी होगी और बहन बैंक गयी होगी !

आप भी भूल जाइये , नोटबंदी के आईटम का मजा लें और अपना श्रम और गाढ़ी मेहनत की कमाई को रूप बदल के लटके -झटके दिखाते देखें ! चुनाव आएं तो इस "आईटम" को वोट में बदलते देखें फिर सरकार और फिर "आईटम" बनते देंखे।

यही नोटतंत्र है- यही नोटबंदी है।

विपक्ष को ऐसा लगता है लेकिन आप इसके ईमानदार पक्ष को देखिये और भ्र्ष्टाचार मुक्त भारत की सुंदर तस्वीर के लिए अपने घर का कौना-कोना तैयार कर लीजिये ! आखिर जीत तो इस भरोसे की ही होगी। आशावादी बने रहना ही लोकतंत्र की जीत है।

Sunday 27 November 2016

जिंदगी तेरा समंदर होना मेरी आवारगी को भाने लगा है....

जिंदगी भी दिलचस्प है। पीछा छुड़ाओ तो दौड़ती आती है और उसके पीछे दौड़ो तो पीछे छोड़ जाती है। साया बन के चलती है पर साये सी ही बनी रखती है ! कभी सोचा ही नहीं ऐसे सवाल दे जाती है और कभी ऐसे जवाब दे जाती है जिन्हें मैंने कभी पूछा ही नहीं .......

वो ऐसे ही किसी सवाल सा है या जवाब है , नहीं पता पर वो जो भी है, साया बन लिपटा रहता है ... मेरे वजूद के साथ.......समंदर सा खामोश दिखने वाला उसका होना समंदर सा ही शोर करता है। एक पल में किनारों को तोड़ता चला आता है और मुझे बहा ले जाता है ..... दूसरे ही पल मैं फिर खुद को उसी किनारे पर खड़ा पाती हूँ। 

शाम जब सूरज पनाहों में आता है तो उसकी उलझने ,उसकी ख्वाहिशें परवान चढ़ने लगती हैं। चांद और उसके बीच की दूरी का हिसाब लगाने लहरें उफ़ान पे आ जाती हैं ...... पूनम से अमावस तक और फिर अमावस से पूनम तक यही खेला चलता रहता है। न चाँद समंदर का न समंदर चाँद तक की दूरी को माप पाता है। बची रहती तो जिद......... खलिश जो जाती ही नहीं !

नंगे पैर रेत में धंसाए, मैं भी चलती जाती हूँ , लहरें आती हैं और मेरे निशान समंदर के सिरहाने छोड़ आती हैं। अब मेरे आँचल की इतनी भी थाह कहां कि समंदर को उसमें ढांप लूं ...... वो मुझे आगोश में लिए जाना चाहता है और मैं , अपनी हदों से वाकिफ लहरों का आना जाना देख रही हूँ। 

वो जुल्फों से खेलता है ,कभी अपनी उंगलियां उलझाता है.... इस खेल में वो हंसता है , गुनगुनाता है और गुम जाता है ! ये उसकी आदत है, वो अपनी थाह लेने नहीं देना चाहता ..... मैं कभी चाँद बन उसके किनारे  की बालू रेत हो, उसे महसूस करती हूँ तो कभी स्याह रात में उसके साथ गुपचुप शोर किया करती हूं ! हम दोनों पागल हैं ,हम दोनों जिद्दी हैं। दोनों उलझे हैं और दोनों ही इश्क में हैं......

जिंदगी तेरा समंदर होना मेरी आवारगी को भाने लगा है...... मेरे  साथ यूँ ही सफर पर रहना , इस छोर से उस छोर तक तुम्हीं मिलना ! इस आवाज़ ने सांसों को रफ्तार दी है , अब मेरी माथे पर बिंदिया बन के दमकते रहना , मुझे गुनगुनाते रहना !