Saturday 25 December 2021

वो जादुई क्रिसमस ,वो मीठी ईद ,वो लोहड़ी के किस्से.... आपको भी याद हैं क्या ?

आज क्रिसमस है ! बचपन का वो सालाना जलसा , जिसने बताया कि संसार जादूई है ,रंगीन है और इसी संसार में एक पेड़ ऐसा है जिस पर ढ़ेर सारे उपहार ,टॉफियां  ,बल्ब ,रंगीन पन्नियों से जड़े सितारे टंगे हैं | इस पेड़ के पीछे से एक लाल कोट ,लाल टोपी लगाये करिश्माई चश्मा पहने एक टोपी वाला बाबा आता है और नींद में मुस्कुरा रहे बच्चों के सिरहाने वो सब रख जाता है जिसका वो साल भर से इंतज़ार कर रहे होते हैं | 

उस वक़्त हमें बस ये पता था कि रात चर्च में घंटियां बजेंगी , प्रार्थना होगी और अगले दिन स्कूल में दोस्त टॉफियां बांटेंगे ,खेलेंगे , हम सब एक दूसरे को बताएंगे कि उसके सांता ने उसको क्या दिया | सांता श्यामल के घर भी जाता था , शगुफ्ता के भी और सैमुअल के भी ! वो ऐसा कैसे करता था ? क्या इन सब के पापाओं के सांता से कनेक्शन थे ? 
उस उम्र में ,उस काल में हमें न ईसाई होने का बहुत मतलब पता था न ये पता था कि मुसलमान कहाँ से आये ,उन्होंने क्या किया ,क्या नहीं किया !! हमें बस पता था कि ईद आएगी तो सलमा के घर जाएंगे ,उसके अब्बू और बड़ी फूफी से ईदी मिलेगी | आसिफ अगले कुछ दिन ढ़ेर सारा इत्र लगा कर आएगा और टीचर की डांट खायेगा.... खान अंकल शाम को बड़ा सा टिफिन लाते जिसमें कभी सिवईयां होतीं ,ज़र्दा पुलाव कभी मटन भरा होता था |  उस दिन उनके घर जलसा होता था | माँ मेरे लिए शरारा सिलवाती थीं , उस शरारे कुर्ते और दुप्पटे का हल्का निम्बुआ रंग ,उसके गोटे की जगरमगर हर ईद पर ताजी हो जाती है ....खैर !!

दिसम्बर खत्म होते ही लोहड़ी की तैयारी शुरू हो जाती थी | 

इस बार किसके घर के आगे ,किसकी छत पर रात भर डीजे लगेगा और कौन गुड़ ,रेवड़ी लाएगा , सबकी लिस्ट बनती | किसके पापा को पोपकोर्न के लिए कहना है और पड़ोस के निगार भाई की टाल से लकड़ियां कौन लाएगा ,सब की व्यवस्था अग्रवाल अंकल करते |  मुझे याद है सबसे अच्छा म्यूज़िक सिस्टम शर्मा अंकल के यहाँ से आता था | बेदी आंटी की पकौड़ियाँ रात भर छनतीं | सबने रात भर नाच-गाना करना होता था और पतंगों में तंग बाँधने होते थे | चरखी भरने का काम आसिफ अच्छा करता था , वो पेच भी बढ़िया खींचता था | 

मधु और मैं भाईयों से इतर अपनी चरखी और पतंग जमाते | मनप्रीत को कहना पड़ता था , दुप्पटा पिन करके छत पर आना , वो उसी में पतंगे उलझा कर फाड़ देती थी.... नुकसान हो जाता था | 

संक्रांति कौनसे धर्म के लोग मनाते थे ,हमें तब नहीं पता था क्यूंकि बाज़ार में तो अहमदी का मांजा और कादिर भाई के यहाँ से पतंग लाते थे |  एक से एक रंगबिरंगी पतंगें ....., तब किसी ने नहीं कहा कि वो तालिबानी हैं , या किसी ने आसिफ के पतंग उड़ाने से उसके धर्म के खतरे में आ जाने की बात भी नहीं बतायी | 

हम सब बचपन की ऐसी ही अनगिनित रंगीन कहानियों में बहुत खुश थे |

दिवाली आती तो नाज़िम भैया घर को झकाझक पेण्ट कर जाते | पड़ोस के सरदार अंकल की इलेक्ट्रिक की दुकान से लड़ियां लाते , रंगीन बल्ब लाते और घर को ,मोहल्ले को रोशनी से लकदक पाते | सुबह -सुबह शरबती काकी माटी के कलस और दिये लातीं और मां शब्बो की रुई भरने की दुकान से बाती लगाने की रुई मंगवातीं | कपूर आंटी मठरी मस्त बनाती थीं |

ईज़ा केक बनाती थी और यीशू की तस्वीर के सामने जाकर हम सब फूलझड़ी जरूर जलाते थे | उसका भाई था टीटू | टीटू को लड़ियाँ जलाने का शौक था | एक दिवाली उसका हाथ जला तो , रिज़वान के डॉक्टर पापा सबसे पहले उसके इलाज के लिए उसे ले दौड़े |  उस दिवाली मोहल्ले में सबके घर मायूसी थी कि टीटू घर आ जाए तो चैन से लक्ष्मी पूजन हो |  वो ठीक हो गया ,तब भी किसी ने नहीं बताया कि दिवाली पर एक ईसाई पटाखे नहीं जलायेगा और अगर वो जल गया है तो उसका इलाज मुस्लिम डॉक्टर उसके धर्म परिवर्तन के इरादे से कर रहा है |

जाने दीजिये , दीगर बात ये है कि टीटू आज भी ईसाई है , रिज़वान भी अब डॉक्टर है और उसकी बहन ने बेदी अंकल के डॉक्टर बेटे से प्रेम विवाह कर लिया है | हम सब ने उसकी शादी में मस्त बिरियानी छक के खाई थी |  

मैंने मुशायरों को सुना , अमज़द अली का सरोद  सुना ,पंडित भीमसेन को गाते , बिस्मिल्लाह खान को शहनाई पर कान्हा के गीत बजाते सुना है | 

अब जब ये सब झगड़े देखसुन रही हूँ तो समझ नहीं आ रहा कि ये नफरतों के बीज अचानक इस खूबसूरत ज़मीन पर कैसे उगने लगे हैं | नफरती नागफनियों के बीच से खंजर लिए आप मोहब्बत और खुलूस के उन जलसों से आने वाली नस्लों को महरूम करने जा रहे हैं जिनका इश्क़ जौन एलिया की शायरी के भरोसे परवान चढ़ा है , बिना मज़हब देखे जिनके हौसलों को अम्बेडकर की रहनुमाई वाले संविधान ने हिफाज़त बख़्शी है | 

अब जब न बाबर रहा ,न अकबर ज़िंदा है , न सिकंदर आ रहा है ,न कोई अंग्रेज न पुर्तगाली.... तो मसला ये है कि अब ये सब हमारे बीच ,हमारे ही दोस्तों ,चाचा -फूफा , जीजा ,पड़ोसी के अवतार में किसी गुंडे नेता की अगुआई में हमारे घर -आंगन में लफंगई का नंगा नाच कर रहे हैं |  ये ये नहीं बता रहे कि प्यार कैसे बढ़ायें ,ये ये बता रहे हैं कि किसकी इज़्ज़त को,किसी की जिंदगी को कैसे तार -तार करें | इन्हें सत्ताखोरों ने खींच कर आपके बीच ला खड़ा किया है ताकि किसी रोज़ अगर आपके गुस्से का शिकार हों तो वो हों , वो फिर भी धर्म के जरिये सत्ता की मलाई चाटने के लिए ज़िंदा रहा जाएं | 

पर बहुत देर हो चुकी हैं शायद...... 

आपको क्या लगता है ,आपके बच्चों और आपके अपनों के दिलों से ये जहर कितना दूर है ? टीवी -व्हाट्सप्प की मनहूसियत और धर्म के नाम पर परोसे जा रहे नशे के इस कारोबार से खुद को बचाईये | हिन्दू वाकई खतरे में है , उसकी सादगी -उसकी उदारता ,उसका बड़पन्न सब खतरे में हैं | उसकी महान विरासत के साथ दूसरे मज़हब की नक्काशियां जुडी रहनी चाहिए , उसके गुंबदों में अज़ान भी हो और दुर्गा के स्त्रोत भी हों ! वो जोड़े , तोड़ने के लिए धर्म नहीं बना है | अपने चमन को नफ़रत के इस सुनियोजित , सुसंगठित हमले से बचाईये| 

इतिहास पढ़ना है तो किताबें उठाइये , किसी पांचवीं फेल के व्हाट्सप्प संदेश के आधार पर हिन्दू को न तो खतरे में मानिये न भड़भड़ा के उसे उठाइये | हर हिन्दू -मुसलमान -सिख -ईसाई की नींद पूरी होने दें , उसे पौष्टिक भोजन दें ताकि वह लड़ाई झगड़े से निकल कर अपनी पढ़ाई -लिखाई पर ध्यान दे सके | कुछ नहीं रखा इस सब में , खतरे में धर्म नहीं आपकी औलादों के भविष्य हैं | 

आप सभी को क्रिसमस की शुभकामनाएं , सांता के झोले से हमेशा की तरह आपके अपनों के लिए ,आपके लिए प्यार और दुआ निकले |
आमीन !!

Thursday 16 December 2021

सच को सब मालूम है पर सच की सुनेगा कौन ? सच की गवाही कौन देगा ? सच के चेहरे की लकीरों को कौन पढ़ेगा ?

आदमी हजार बार मरता है और  जो कहता है कि जी रहा है, तो झूठ कहता है. उसका ये कौनसा जनम  है ,वो खुद नहीं जानता ! मुखौटे लेकर सच की दुहाई देते लोगों के बीच , झूठ की फसल को सींचते लोग , दिन ब दिन बदलते , बहलाते ,खुद को फुसलाते लोग......... जिन्दा हैं क्या ? 

तुमको अच्छा लगता होगा , चमके -उजले -दमकते चेहरों से उतरते रंगों का दरिया , बातों में जमीर घोल कर पीने -पिलाने का चलन , अच्छा है ! सब अच्छा है ! सबको अच्छा कहते रहना भी अच्छा है | 

अच्छा तो है ही ये सब, पर जब मर ही जाना है एक दिन सबने तो फिर किसके लिए इतने स्वांग रचने हैं ?  सबको सबका सच पता है ! कितना हासिल हो जाएगा ,कितना संग ले जायेगा कोई....  

बेवज़ह अब कुछ नहीं होता , वजह सरकारी होती हैं , कुछ भी ढूंढने से ज्यादा , क्या वजह बतायी जाए ,यही ध्यान रखना जरूरी है  ! नकली मुस्कुराहट चस्पा कर लोग कोई अपना सा ढूंढ रहे हैं ,अपना कह देने भर को मर रहे हैं ? क्या मंज़र है , लाशों के इस ढेर में सबको किसी से प्यार करना है ,सबको खुद से मुलाकत करनी है ? 

कितनी लाचारगी ,कितनी बेचारगी है...... सच जानते हुए भी इस स्वांग का हिस्सा सबको बनना है  | 

इस खेल में हंसना ,रोना ,गाना -बजाना सब होगा |  बस जिस रोज़ सच विदा होगा , असल खेल उसी दिन होगा !!

आंसुओं से आईने को पिघलते देखा है क्या आपने ? 

ये उस दिन देखना ........देखना कि झूठ की भी रस्मअदायदगी होती है , उसकी भी सवारी निकलती है | लोग तख्त पर बिठाते हैं , जयकारे होते हैं , शहर में मुनादी होती है कि झूठ अब गद्दी पर बिठाया जायेगा ,झूठ अब शासन संभालेगा | 

सच को सब मालूम है पर सच की सुनेगा कौन ? सच की गवाही कौन देगा ? सच के  चेहरे की लकीरों को पढ़ेगा कौन  ? 

इस तरह हजार झूठ के बीच जीते हुए मर जाने की कल्पना कीजिये और फिर हर जन्म में फिर इन्हीं के बीच ,इन्हीं आवाज़ों के बीच खुद को देखिए ...... क्या लगता है , फिर लौटना चाहेंगे ? फिर से उसी शहद से पगी खंजर सी जुबान से खुद को आज़ाद कर सकेंगे ? 

सीने में कुछ धंसता है ये सब देख के , बहुत गहरा सा........ किरचे सा झूठ है पर जन्मों का घाव है !

हर कोई कोशिश कर रहा है  , झूठ के महल को सपनों सा सच देखूं , कोई परिकथा सा खेल जानूं ,उसे अमराई की गोद में खेलती धूप -छाहँ देखूं...... 

मैं भी हैरान हूँ कि सच को सच देखूं या  झूठ के तिलिस्म को अपना ठिकाना मानूँ ? 

एक कलम लेकर उसे तोड़ दो .... बात खत्म हो जायेगी ! 

अपने हिस्से का सच वहीं तक रह जाएगा , उसके सच उसके साथ रह जायेंगे.........

वक़्त फैसला करेगा कि कलम लाना सच था या कलम तोड़ देने से सच को झूठ लिख सकने की संभावना को खत्म कर देना ही सच था ? 

सच तो ये है कि सच कुछ होता नहीं ,झूठ कुछ है नहीं | सबको गुड्डे -गुड्डी ब्याहने हैं और बिदा कर देने हैं | 

आप भी खेलते रहिये , हमने भी खेल लिया !!

जय राम जी की ! 

Wednesday 15 December 2021

एक दिन ऐसे ही सब कहा - सुना धरा रह जाएगा। ........

मन किसी बिगड़ैल बच्चे सा है , जिद करता है कभी रूठता कभी मानता कभी मनाने बैठ जाता है !! बात बात पर पसरने की उसकी आदत जाती नहीं है |  संसार की अपनी गति है ,अपनी सी आदते हैं और मन की अपनी .. किसी पल लठैत बन कर उसके सिर पर सवार हो जाओ तो उस घड़ी दो घड़ी गर्दन लटका काट बैठ जाता है जैसे ही अक्ल ने मुहं फेरा वो फिर से कहीं और निकल जाता है.... दिन भर इस गली उस गली भटकेगा फिर कहेगा कि पाँव दर्द कर रहे हैं , जब समझाया तब मानेगा नहीं | ऐसा कैसे चलेगा ?
एक रोज़ चोट खा बैठा , इतना खून बहा कि कोई दवा काम न आयी न अस्पताल खाली मिले ......... अच्छा ही हुआ , अपने आप घाव भरा ,अपने आप लड़ने की सीख ले ली |

नहीं सीखा उसने, तो वो था सम्भलना ..... 

सम्भलने के लिए साथ भी कोई दे तो कितना दे ?
चलना उसे खुद है , चलानी भी उसे अपनी ही है...ड़र लगता है पर उसे रोक नहीं सकती ,उसे बाँध के रखना भी मुनासिब नही ना ?

फिर मन को ये आज़ादी भी मैंने ही दी है ,मन को उड़ान का हौसला भी मैंने दिया फिर मैं ही उसे लेकर असमंजस में आती भी हूँ !! 
ये भरोसा है कि वो सही राह चलेगा फिर अगले ही पल लगता है, ये मेरा अति आत्मविश्वास है .. भटकते देखा है उसे मैंने कई बार !
 
ये शंका भी जायज़ है ,हर बार उसको लौटा लाना थका देता है ,वो हर बार उसी ऊर्जा से दौड़ पड़ता है  ! तारों की छाहँ में उसे नींद नहीं आती , दिन में उसे चैन नहीं  ? 

ये खेल बढ़ता ही जा रहा है | क्या मैं उसके थक जाने का इंतज़ार कर रही हूँ ? क्या मैं उसे मर जाने देना चाहती हूँ ? क्या मुझे उसका साथ पसंद नहीं ..... ऐसे तमाम सवालों के अनगिनित जवाब है और उन जवाबों से उपजे अनगिनित सवाल। जब सवाल भी अपने हों और जवाब भी अपने तो क्या और किसे क्या-क्या सुनाना है.......

एक दिन ऐसे ही सब कहा - सुना धरा रह जाएगा , सब तरफ का शोर थम जाएगा | उस दिन न मन होगा न मन का होगा  .... तब सब वही होगा जो तमाम उम्र होना चाहिए था , शांत और दृष्टा भाव......... उस नीरवता में जोर से हंसना चाहूंगी अपनी मूर्खताओं पर ,अपने पछ्तावों पर ,अपनी ध्रष्टताओं पर ,खुद को झिझोड़ के जगा देने का वक़्त चाहिए | 
तो .....अब उस सफर का रुख करना चाहिए जो भीतर ले जाए , अब उस मोड़ को छोड़ देना चाहिए जो फिर फिर बुलाता ,लुभाता और बरगलाता है, भटक जाने को........ अब नहीं जाना , अब लौटना मुमकिन नहीं है ये मन को समझना होगा वरना वापसी होगी नहीं , मंजिल मिलेगी नहीं ,रास्ते साथ देंगे नहीं ... कब तक ,कहाँ तक ले जाये ये रेत का सागर कौन जाने .... मन की मरीचिका का हासिल कुछ नहीं। फिर खुद को भरमाना भी क्या ? अबुझी प्यास से मरना तो नियति नहीं मेरी ?

 !!
सफर मन से मन का ही हो | बाहर निकल कर जाएंगे तो धूल ,धक्के ,शोर और बदहवासी की सिवा कुछ हासिल नहीं , जो हासिल हुआ भी तो तन मैला , मन खाली ही जायेगा !

सो मन से बतिआइये , उसे खुद में लौटा लाईये !