Sunday 27 November 2016

जिंदगी तेरा समंदर होना मेरी आवारगी को भाने लगा है....

जिंदगी भी दिलचस्प है। पीछा छुड़ाओ तो दौड़ती आती है और उसके पीछे दौड़ो तो पीछे छोड़ जाती है। साया बन के चलती है पर साये सी ही बनी रखती है ! कभी सोचा ही नहीं ऐसे सवाल दे जाती है और कभी ऐसे जवाब दे जाती है जिन्हें मैंने कभी पूछा ही नहीं .......

वो ऐसे ही किसी सवाल सा है या जवाब है , नहीं पता पर वो जो भी है, साया बन लिपटा रहता है ... मेरे वजूद के साथ.......समंदर सा खामोश दिखने वाला उसका होना समंदर सा ही शोर करता है। एक पल में किनारों को तोड़ता चला आता है और मुझे बहा ले जाता है ..... दूसरे ही पल मैं फिर खुद को उसी किनारे पर खड़ा पाती हूँ। 

शाम जब सूरज पनाहों में आता है तो उसकी उलझने ,उसकी ख्वाहिशें परवान चढ़ने लगती हैं। चांद और उसके बीच की दूरी का हिसाब लगाने लहरें उफ़ान पे आ जाती हैं ...... पूनम से अमावस तक और फिर अमावस से पूनम तक यही खेला चलता रहता है। न चाँद समंदर का न समंदर चाँद तक की दूरी को माप पाता है। बची रहती तो जिद......... खलिश जो जाती ही नहीं !

नंगे पैर रेत में धंसाए, मैं भी चलती जाती हूँ , लहरें आती हैं और मेरे निशान समंदर के सिरहाने छोड़ आती हैं। अब मेरे आँचल की इतनी भी थाह कहां कि समंदर को उसमें ढांप लूं ...... वो मुझे आगोश में लिए जाना चाहता है और मैं , अपनी हदों से वाकिफ लहरों का आना जाना देख रही हूँ। 

वो जुल्फों से खेलता है ,कभी अपनी उंगलियां उलझाता है.... इस खेल में वो हंसता है , गुनगुनाता है और गुम जाता है ! ये उसकी आदत है, वो अपनी थाह लेने नहीं देना चाहता ..... मैं कभी चाँद बन उसके किनारे  की बालू रेत हो, उसे महसूस करती हूँ तो कभी स्याह रात में उसके साथ गुपचुप शोर किया करती हूं ! हम दोनों पागल हैं ,हम दोनों जिद्दी हैं। दोनों उलझे हैं और दोनों ही इश्क में हैं......

जिंदगी तेरा समंदर होना मेरी आवारगी को भाने लगा है...... मेरे  साथ यूँ ही सफर पर रहना , इस छोर से उस छोर तक तुम्हीं मिलना ! इस आवाज़ ने सांसों को रफ्तार दी है , अब मेरी माथे पर बिंदिया बन के दमकते रहना , मुझे गुनगुनाते रहना !

3 comments:


  1. नंगे पैर रेत में धंसाए, मैं भी चलती जाती हूँ , लहरें आती हैं और मेरे निशान समंदर के सिरहाने छोड़ आती हैं। 👌👌👌👌👌👍👍👍👍

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  2. मुझे आपका कविता बहुत ही पसन्द है मेरा दिल बाग बाग हो गया

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