Friday 22 April 2016

हैशटैग क्रांति से मुद्दों को पासबुक फॉर्म में ले आना भी उपलब्धि है।

हैशटैग क्रांति के वीर सेनानियों को मेरा नमन है। हे क्रांति दूतों तुम इतनी ऊर्जा कहाँ से लाते हो ? ये ठीक है कि तुम ट्विटर मशीन से चार -छह शब्दों को मिसाइल के तौर पर इस्तेमाल करके विरोधी के किले पर  ताबड़तोड़ वार कर उसे हतप्रभ कर देते हो लेकिन इतनी मोटी चमड़ी की सत्ता पर इसका असर अब नहीं होता है। कुछ और सोचो मित्रों !

दिनभर ट्रेंड बदलता रहता है पर समस्याएं और मुद्दे तो महीनों और वर्षों बाद भी वही रहते हैं। बदलता क्या है ? सोशल मीडिया के अतिदोहन ने उसे भड़ास मंच बना दिया है। चर्चा के लिए अब कोई मंच शेष नहीं है। या तो आप महिमा मंडन कीजिये या अपनी मुंडी का  भंजन करवा लीजिए। बच के निकल जाना चाहते हैं तो अपने पीछे गैर जिम्मेदार देशद्रोही का टैग लगवा लीजिए। 

कहीं कोई सूरत नहीं ,कोई विकल्प भी नहीं ! हैशटैग भी मंडन -विखंडन की फैक्ट्री है। सामजिक मुद्दों की आड़ में कहीं सत्ता की रोटी सिक रही है तो कहीं निर्दोष बापूजी की आड़ में भावनाओं का दोहन हो रहा है। सच में अगर कोई द्रवित हो रहा होता तो और इतने लोग अगर उस मुद्दे को लेकर गम्भीर होते तो कोई जनांदोलन बन चुका होता पर ऐसा नहीं हो रहा है।  

पंजाब के नशे पर चिंता है ,मराठवाड़ा के पानी का रोना है , मोदी जी की डिग्री की चिंता है ,केजरीवाल का सम -विषम है , इस बीच शाहरुख और ना जाने किसी किस का हैशटैगीकरण होना है। करिये खूब करिये लेकिन नतीजे की भी तो परवाह कीजिए ! उसका असर होने तक मैदान में तो रहिये। अपॉइंटमेंट की तरह हैशटैग चलाते रहिएगा तो उसकी भी कद्र निर्दोष बापूजी सरीखी हो जाएगी। 

तमाम सत्ता दलों की तरह हैशटैग उद्योग में भी रवीश के शब्दों में "इज़ इक्वल टू " का सिद्दांत खूब चल रहा है। बताओ मोदी जी ,बताओ सुषमा जी ,बताओ अलाना , बताओ फलाना जी करके सवाल दागते रहिये और दूसरी और से गलियों की जमात में सक्रियता पैदा करते रहिये। सवाल डिग्री को लेकर होगा जवाब में अफजल और शीला -मुन्नी ले आईयेगा ! बेजा - बेहूदे तर्क वितर्क कर, सोशल मीडिया का दोहन कर हम भीतर भी बंजर जमीन तैयार कर रहे हैं। 

इस सब में एक अच्छी बात हुई है वो ये कि हम समस्याओं और मुद्दों को पासबुक फॉर्म में ले आये हैं। इससे हम किसी भी ग्रुप बकलोली में आसानी से हारते नहीं हैं। ज्ञानचंद ,रायचंद प्रसन्न हैं कि कर्मचंद काम कर रहा है और कर्मचंद भी खुश है कि दोनों बेरोजगार भाई काम पर लगे हैं। 

जिस मीडिया की नज़र में आने के लिए ये हैशटैग चलाए जाते हैं उसकी अपनी तो कोई सुनवाई होती नहीं फिर इस हैशटैग वार की चपेट में आने वालों की कौन सुनता है ? जिसने शाहरुख की फिल्म देखनी है वो ट्रेंड देखकर जाना या नहीं जाना तय नहीं करेगा न हैशटैग देखकर मोदी अपनी डिग्री किसी को दिखा देंगे। केजरीवाल हैशटैग से पानी मराठवाड़ा नहीं पहुंचा सकते और न ही मोदी को दिल्ली के कामकाज में टांग अड़ाना बंद करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। 

सत्ता और समाज की मोटी चमड़ी पर स्पंदन के लिए हैशटैग की खुरच नहीं तीखे सामजिक आंदोलन और विमर्श की जरूरत है। टच से मुद्दे फिसलते रहें और कर्म से आज़ाद रहें ,वे यही चाहते हैं और हम वही कर रहे हैं। 

चलिए खुश रहिये ,करते रहिये ,कहते रहिये ! होना न होना सब सत्ता के हाथ है हमसब तो निमित्त मात्र हैं जिनका इस्तेमाल कोई भी करने के लिए स्वतंत्र है। ताली ही बजानी है इधर बजायें या उधर, बात एक ही है। 

सोशल मीडिया के क्रांति दूतों को प्रणाम ! भरम कायम रहे !




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