Friday 25 March 2016

समाज को धार्मिक कोढ़ हो गया है। सवाल केजरीवाल के पीड़ित परिवार से मिलने का नहीं सवाल ये बनाया जा रहा है कि दादरी गए थे तो पंकज के घर क्यों नहीं गए ?

हत्या कैसे जायज ठहराई जा सकती है। कहीं भी हो ,किसी भी रूप में हो ,ये प्रकृति के न्याय के विरुद्ध है। इस अपराध में सोशल मीडिया भी हमलावर है ,वो भी बराबर का हिस्सेदार है ........  देशप्रेम को धर्म से जोड़ दो , वोट को धर्म से जोड़ दो , मरण ,परण ,जनम सबको धर्म से जो दो......... धर्म ना हुआ कोई  हथियार हो गया है। 

धर्म की दुहाई देकर कभी अख़लाक़ के हत्यारों को बचाए या घेरे जाने का प्रयास होता है तो कभी दिल्ली के डॉक्टर नारंग की हत्या को साम्प्रदायिक रंग दे सत्ता की गोटियां चलने का मामला बनाया जाता है। आका हुकुम देते हैं और चेलेचपाटे या रेवड़ कहिए व्हाट्स एप्प ,फेसबुक पर भड़काने वाले संदेश ,हरे गेरुए रंग में पोत कर पटा देने का प्रयास करती है। 

वे जानते हैं कि अधिकांश लोग बिना घटना की तह तक जाए चंद संदेशों के आधार पर भड़केंगे और उनके साथ नारे लगाने सड़क पर आ जायेंगे , नहीं भी निकले तो 10-20 को संदेश तो प्रसारित कर ही देंगे। इन संदेशों के आवेश में आकर फिर भले कितने और पंकज ,कितने और अखलाख मरें इसकी परवाह किसी को नहीं। 

दिल्ली में बच्चे के बाहर खेलने पर एक मोटर साइकिल सवार को कुछ कह देना एक व्यक्ति को इतना भारी पड़ा कि मोटर साइकिल सवार धमकी के साथ घर लौटा और साथ कुछ लाठी -डंडों से लैस गुंडों को लेकर आया और उस इंसान को इतना मारा कि उसने दम तोड़ दिया।  
दूसरे मामले में भीड़ ने एक इंसान को इसलिए मार डाला क्यूंकि किसी ने बताया कि वह गौ मांस खा रहा है। 

दोनों ही मामले में मरने वाले के खून का रंग लाल ही था। दोनों के ही परिवार मातम मना रहे हैं। दोनों में से दोषी कोई नहीं था। दोनों ही युवा थे और सुंदर भारत का सपना पाले हुए थे ,अपने घर के चिराग थे। 

कौन हक़ देता है हमको ये सवाल उठाने का कि उनका धर्म क्या है ,क्या था ? जो जिन्दा हैं उनका धर्म क्या है ,ये कि वो जन भावना को इस कदर दूषित कर दें कि बौद्धिक हैवानियत उनके जिस्म से फूट कर मवाद बन बहने लगे ? 

समाज को धार्मिक कोढ़ हो गया है। सवाल केजरीवाल के पीड़ित परिवार से मिलने का नहीं सवाल ये बनाया जा रहा है कि दादरी गए थे तो पंकज के घर क्यों नहीं गए ? किसी ने ये प्रयास नहीं किया की हर पीड़ित परिवार इस मनोदशा में नहीं होता कि ऐसे दुखद परिस्थिति में किसी बाहरी व्यक्ति को शामिल कर सके। 
केजरीवाल भले ही मुख्य्मंत्री हों पर बिना परिवार की सहमति के उस परिवार से उस समय मिलने की जिद नहीं कर सकते जब वो किसी से मिलना नहीं चाह रहा हो। 

पुलिस ने हमलवारों को पकड़ा है ,प्रशासन धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वालों से सतर्क रखने के प्रयास में है तो अब ये हम सबकी जिम्मेदारी हैं कि ऐसे लोगों को जो अपने निज स्वार्थों की रोटी लाशों पर सेकनें के आदी हो गए हैं को पहचाने और सयंम रखते हुए उन लोगों को पहचान सकें तो छद्म राष्ट्रवाद की आड़ में आये दिन धर्म की बोटियाँ उछाल हमें जानवर बना रहे हैं। 

इंसानियत बचाए रखिये , हर धर्म का यही सार है। 


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