Sunday 6 December 2015

जितने चेहरे चाहे लगा लीजिये ,हर चेहरे का सच वही होता है जो आप हैं.........

एक अरसा हो गया अब यहाँ  , शायद डेढ़ साल ___ ट्विटर की मायावी दुनिया एक आईने  की तरह मेरे सामने है, मन जैसी कभी सीधी सपाट कभी एक दम जंतरम् -मंतरम्।

140 की सीमा में किसी के चरित्र और उसकी जिंदगी का खाका खींच लेने की धृष्टता आपने भी की होगी ,मैंने भी की है। कई बार महसूस हुआ कि किसी नतीजे पर पहुंच गयी ,दूसरे ही पल लगा कि शायद गलत हूँ। कुछ बेहतरीन हैंडल थे जिनके पीछे की सोच बेहद सुकून भरी थी ,कुछ आलोचनाओं के पुलिंदे ,कुछ शिकायतों के  सिलसिले ........ हम उन्ही का पीछा करते हैं जिन्हें  या तो पसंद करते हैं या सख्त नापसंद। जिन्हें पसंद करते हैं उन्हें पढ़ते हैं , प्रतिक्रिया देते हैं ,संवाद  करते हैं और जिन्हें पसंद नहीं करते उनका पीछा इसलिए करते हैं कि उन्हें लगातार ये जता सकें कि हमें आप में दिलचस्पी नहीं है या किसी दिन पीछा करना बंद कर देंगे , खामोश कर देंगे और विजयी भाव से खुद को भर लेंगे।  

 इन हैंडलों के भीतर एक अजीब सा सच और एक अजीब सा झूठ छिपा है। सच वो जो किसी प्रतिक्रिया के रूप में अनजाने ही सामने आ जाता है और झूठ वो जो दिन -रात शब्दों की  माया से गढ़ा जाता है। पिछले कुछ दिनों में कुछ ऐसे ही मायाजाल से उलझ रही हूँ....... व्यक्ति अपने सच से भागने लिए झूठ के जंगल उगाता  है। दिन रात बे सिर -पैर की बातें और उस दुनिया के किस्से कहानी सुना रहा है जिसमें वो है नहीं ,मायावी संसार गढ़ लिया है इर्दगिर्द  !

अप्राप्य के प्रति कौन आकर्षित नहीं होता लेकिन उसको अभिव्यक्त करने के लिए जिन शब्दों ,तस्वीरों का चयन किया जाता है उसे सम्भवतः आपके भीतर का जमीर भी इजाज़त न देता होगा। आप कैसे इतना गिर सकते हैं ? कैसे आप अपनी क्षमताओं के साथ इतनी निर्लज्जता के साथ बलात्कार कर सकते हैं और खुद ही उसको सम्मान भी देते हैं। खुद का महिमामंडन खुद के बनाये कल्पना लोक में ?

धीमा विष है जिसे पिया जा रहा है ...... जितने चेहरे चाहें लगा लीजिये ,हर चेहरे का सच वही होता है जो आप हैं । कितना भागेंगे ,कब तक भागेंगे ? जितना भागेंगे  ये उतनी गति से आपको दौडायेगा और एक दिन आपको ही थका देगा। 

इतने बेनामी हैंडल बना कर व्यक्त्तिव के उस हिस्से का पोषण करते हैं जिसे वक्त रहते खत्म किया जाना चाहिए लेकिन इस स्वनिर्मित संसार में होता उल्टा है। 

झूठ से सच की जंग कैसे जीतेंगे ,पता नहीं। जो भी हो मैं भी सीख रही हूँ ,देख रही हूँ ,समझ रही हूँ कि इंसान कोई एक भाषा न बोलता है ना समझता है। सहजता की इतनी कमी क्यों है , क्यों सब इतना बिखरा सा है ?

ट्वीटर का ये सफर अजब स्टेशनों से गुज़र रहा है ,अजब मुसाफिर -गजब के किस्से। 

मैं और मेरी आवारगी हमेशा की तरह इस बार भी इन सबके बीच से होकर , हर बार वहीं पहुँच जाते है जहाँ उसे जाना होता है ........  कहीं दूर - गुम जाने के लिए तैयार , झूठ की दुनिया में सच की बेजा तलाश है ! एक उम्मीद है , सो जाते -जाते ही जाएगी ! मैं हमेशा सफर में ही हूँ। 

आप भी चलते रहिये .......

No comments:

Post a Comment