Saturday 12 December 2015

वो एक रिश्ता है , डूबने लगती हूँ तो हाथ बढ़ा देता है .........

जिंदगी के कैनवास पर जितनी भी बार नज़र डालो हर तस्वीर कुछ पहचानी सी लगती है मनो कल की ही बात हो , कभी बोलती से लगती है कभी सिर्फ खामोशी से मुझे देखती है।  इन तस्वीरों में एक उसका चेहरा भी है जो हर तस्वीर के पीछे से मुझे खामोशी से देख रहा है। बरसों का खामोश साथ है , कितने रंग चढ़े और फीके भी पड़ गए पर उसकी चमक कभी गयी ही नहीं।

वो एक रिश्ता है , डूबने लगती हूँ तो हाथ बढ़ा देता है और जब तैरने का जी चाहता है खामोशी से मुझे लहरों के साथ खेलते देख मुस्कुरा भर देता है। उसके किनारे पर बैठ मुझे देखते रहना बड़ा सुकून देता है। ये यकीन हो जाता है कि शाम ढ़ले वहीं किनारे उसी से मुलाक़ात होगी।

अल्हड़पने के वो दिन उसने बखूबी संजो लिए हैं।  न मिलने न बिछड़ने के दर्द से परे के ये खामोश रूमानी से लम्हे, इश्क़ का वो दरिया बन गए जिसे उस नीली छतरी वाले ने खुद मेरे लिए रचा है।  वक्त का ये दरिया अब और खूबसूरत दिखाई देता है। किसी शाम जब आँखों से कुछ लम्हे झरने लगते है तो दरिया का ये किनारा ही कुछ कंकर हथेली में थमा जाता है और मैं घंटों उसी खेल में गुम फिर से आसमान छूने के लिए उड़  जाती हूँ। अपने पंखों पर इतराती, लजाती देख वो मुस्कुरा भर देता है। 

इस रिश्ते का कोई नाम न होना ही इसे संजोये हुए है। नाम वाले रिश्तों के साथ अपेक्षाओं और आक्षेपों के सिलसिले होते हैं ,बड़े अजीब होते हैं ,होते हैं पर किसी और के होते हैं। मेरे भी हैं ,सबके होते हैं पर मैं उनमें कहीं नहीं हूँ।

सांसों से लिखे नाम वक्त की सियाही भी धुंधला नहीं पाती। उसके साथ के वो पल इतने अज़ीज इस कदर अपने कि वजूद कब पिघल गया और एक नए सांचे में ढल गया पता ही नहीं चला। मैं लम्हा लम्हा जीती रही वो लम्हा लम्हा संजोता रहा और बरस बीत गए। न उम्मीदों की गुलामी न नाम की जिदें .......... न रवायतों की जंजीरें। आवाज़ देने से पहले आवाज़ सुन लूं और बिना देखे भी जिसके  जख़्म पढ़ लूं उस रिश्ते के साथ जिंदगी बसर हो तो मंज़िलों की परवाह कौन करे !

मेरी आवारगी को खुदा ने रहमतें बख्शी हैं। बेशुमार मोहब्बत पायी है मैंने जिंदगी से ,इतनी कि शिकायतें अब कोई बाकी नहीं हैं। सवाल हज़ारों हैं ,रोज़ बुलबले से उठते -बैठते हैं।  मैं उन आँखों के समंदर को पढ़ लेती हूँ तो हर सवाल का जवाब मिल जाता है।

दर्द के जंगल के पार वो  राहतों का दरिया है  ,वो आकाश जिसने मुझे अपने भीतर ऐसा सहेजा कि मैं हर उड़ान के बाद भी उस जद को पार नहीं कर पाती जिसके पार वो नहीं है। 

मेरी आवारगी तुझसे मेरा ये रिश्ता मेरा प्यार है ...... चल ले चल, जहाँ चाहे ... अब कोई अरमान भी बाकी नहीं सिवा इसके कि तेरा साथ हो और हाथ में तेरा हाथ हो ....... आ अब उड़ चलें !







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