Tuesday 11 August 2015

वो तुमको परखने की जिद छोड़ न सके...........


दोस्त , देख रही हूं ,समझ रही हूँ ………परेशान हो ! किससे परेशान हो खुद से या उस निर्णय से जो खुद तुम्हारा था……. सच जानते हुए किसी ऐसे रिश्ते की नींव रखने को उतावले  हो चले हो जो तुम्हारे लिए बना ही नहीं है । अब सच ये है कि नुकसान दोनों को हो गया ……तुम अपनी ईमानदारी को उसकी कसौटी पर घिसते रहने लायक धैर्य न रख  सके, वो तुमको परखने की जिद छोड़ न सके। 

वक़्त जो जीवन के कुछ लक्ष्य हासिल करने के लिए रखा था वो भी बेजा प्रयोगों में चला गया ……कहा था न , खुद को खत्म करके न तुम खुद के लिए कुछ बन पाओगे न उसके लिए ,जिसके लिए तुम खुद को बदल रहे हो। 

सालों पहले किसी दोस्त ने मुझे भी यही कहा था कि पौध को बदला जा सकता है , वृक्ष को अपनी जगह से उखाड़ देने के प्रयास में वृक्ष का सूखना तय है !! जड़ें गहरी हों तो उखाड़ने की जिद मूर्खता है……जिसके परिणाम में सिर्फ निराशा ही हाथ लगनी है। 

अवसर किसी की प्रतीक्षा नहीं करते , मन के उतार -चढाव चलते रहेंगे लेकिन जब तक मंज़िल को हासिल कर लेने की मंज़िल हासिल नहीं कर लेते तब तक भटकन को विराम दे दो ................... 

बिगड़ा अब भी कुछ नहीं , अपने आप में लौट आओ और वही बने रहो जो तुम हो। मैं हर रास्ते पर कभी उस छाँव सी बनकर तुमसे मिलती रहूंगी जो तुम्हें विश्राम दे , कभी वो रास्ता बन कर तुम्हारे साथ रहूंगी जो तुम्हें भटकने न दे ……………… उठो ,हाथ दो अपना ! रास्ते की पुकार सुनो ……… 

तुम्हारी 

मन की डील 







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