Sunday 2 August 2015

भटक जाना ही लौट जाना है

बरसों से एक ख्वाब पीछा करता है -- कहीं खो जाऊं ऐसे कि फिर न मिलूं !! किसी को कभी फिर दुबारा नहीं मिलूँ.......सपने भी ऐसी ही देखती हूँ ,कहीं खो जाती हूँ ऐसे कि फिर रास्ता भी नहीं ढूंढती !! अचानक नींद टूटती है फिर से वही सब ,वहीं सब ……।
मनोविज्ञान की किताब उठाई लगा कि शायद यूँ भागना पलायनवादी मानसिकता की ओर जाने का इशारा है , फिर लगा की मुसीबत को खुद गले लगाना जिसकी फितरत हो वो भागेगा क्यों ? कभी लगा कि डर है , सच का सामना नहीं हो पा रहा !! हो सकता है ,सच हो ....... पर सच है क्या इसको कौन तय करेगा ?? अजब सवाल -अजब जवाब .......

अब सब जवाब -सवाल ढूंढने बंद कर दिए हैं  , झोला उठा कुछ पल अपने लिए निकाल लेना ही समाधान है !! सफर से प्यार हो गया है …… जब अकेले सफर में होते हैं तो अपने साथ होते हैं वरना झमेले साथ होते हैं। 

किसी झील किनारे घंटों अकेले बैठ कर सूरज को डूबते देखिये ,देखिये कितने लम्हे खामोश झील में उतर के आपके पास खिंचे चले आते हैं ……… भटक जाना ही लौट जाना है , हर बार अब इसी नतीजे पर आकर ख्वाब अटक  जाता है !

सब बदल रहा है बस अपनी आवारगी से प्यार कम नहीं होता !

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