Thursday 6 August 2015

सांसों का शोर सुनना - जवाब मिल जाएगा ...........

सच को नकारने में उम्र बीत जाती है ,सच स्वीकार करने में सांसे चुक जाती हैं.………… हमेशा डिनायल के मोड में रहने वाला मन मेरे ही मन की कहता है। तर्क कहता है "नहीं" मन कहता है 'हाँ ' …… और जवाब मुझे हाँ में ही चाहिए ....... मन तानाशाह है। तर्क मन के दरबार का गुलाम जिसका इस्तेमाल मन के निर्णय को वैधानिक जामा पहनाने के लिए सभी करते है मैं कौन अपवाद हूँ !

जानते हुए कि अपेक्षाओं - आकांक्षाओं की जद कहाँ है , सीमाओं के लघंन के लिए मन विद्रोह करता रहता है....उस जीत के लिए विद्रोह जिसके अंत में तर्क की हार तय है और उस हार से भयभीत है जिसमें मन की जीत तय है………।

सच तुम भी जानते हो - मैं भी जानती हूँ।  तुम्हारे इर्द गिर्द  मेरी मौजूदगी हर उस क्षण में भी है  जिन क्षणों के एक मात्र गवाह तुम खुद होते हो  ……… तुमको साझा करने के लिए अब किसी और के पास कुछ शेष नहीं है। हर साझेदारी पर मेरे हस्ताक्षर हैं……इसलिए मन को कहो कि तर्क की सुने।

जानती हूँ , तर्क मन की नहीं सुनेगा और मन तुम्हें तर्क  करने नहीं देगा ............ जब जवाब न मिले ,सवाल सब उलझ जाएँ तो कुछ पल ख़ुद में लौट आना……जहाँ न मन -हो न तर्क हो !!

सांसों का शोर सुनना - जवाब मिल जाएगा।

साँझ ढ़ले उससे पहले लौट आना............. 

No comments:

Post a Comment