Sunday 2 August 2015

तुमसे सूखी- दबी घास सा रिश्ता है मेरा ………

अब तक लिखा बहुत कुछ , साझा बहुत कम किया !! आज जब सब दोस्ती के जश्न में डूबे है तो लगा कुछ उनकी याद साझा की जाये जो कभी साथ दोस्त बन कर कुछ कदम साथ चले.......  वो चले ,कितना चले ,क्यों चले ,कब चले ,कहाँ चले .............सारे प्रश्न बेमानी हैं। बेमानी यूँ कि अब भी सब साथ हैं और अब कोई भी साथ नहीं है। हर रिश्ते की एक उम्र होती है ,कुछ बहीखाते होते हैं इसलिए शिकवे -शिकायतों का दौर उम्र की दहलीज तक खींचते रहने का कोई औचित्य भी नहीं है।

स्कूल -कालेज के कुछ साथी  आज भी मिलते हैं - साथ वक्त गुज़ारते हैं ,अच्छा लगता है !! वक्त थम सा जाता है। कुछ दोस्त आवारा फितरत ने बना लिए ,वक्त और साथ वहां भी गुज़रा -- जितना गुज़रा भला गुज़रा ! ये मिलने -मिलाने का सिलसिला भी अजीब है , ऐसे रिश्तों के बीज बोये जाते हैं जिनको काटते समय किसी एक के हाथ में थरथराहट और दूसरे के चेहरे पर मुस्कुराहट जरूर होती है ………

प्रेम बोते हैं और हृदयहीनता पर संबंध विच्छेद करते हैं………… ऐसे रिश्ते -ऐसी दोस्ती ?? फितरत है जश्न मनाने के लिए बहाने चाहिए। इसी बहाने कुछ नए रिश्तों की खेती हो जाती है जिसे साल -छह महीने में काट लेना होता है ! 

इन सबके बीच कुछ रिश्ते सूखी -दबी घास बन जाते हैं जो हर बरस एक बरसात का इंतज़ार करते हैं , हरे हो जाते हैं फिर सूख जाते हैं फिर इंतज़ार करते हैं ………बरसात के बरसने का ....... !

बहरहाल उत्सव मनाईये ! दोस्ती एक खूबसूरत जाम है ,पी लीजिये फिर भर लीजिये……यहाँ हर साकी मधुशाला है ! 


1 comment:

  1. इन सबके बीच कुछ रिश्ते सूखी -दबी घास बन जाते हैं जो हर बरस एक बरसात का इंतज़ार करते हैं , हरे हो जाते हैं फिर सूख जाते हैं फिर इंतज़ार करते हैं ………बरसात के बरसने का ....... !
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