Wednesday 12 August 2015

मुझे पता है जो सच है उसका लिखना मना है पर जो लिखा है उसका सच हो जाना कहाँ मना है .......

एकाएक जब मौसम बदल जाये ,आसमान तुम्हारे ख्यालों से भर बरसने को हो जाये , हवाओं से तुम्हारी हथेलियों की सौंधी सी गंध आने लगे तो समझ लेती हूँ कि सावन आ गया है …………इस  बरसात को बाँहों में न भरा तो सावन को क्या खाक जिया ................

खिड़की के बाहर छम -छम गिरती हर बूंद  पर तुम्हारा नाम लिखा है ……रोमांटिक होती जा रही हूँ ना " हाँ ,तो क्या ?? अच्छी लगती है, तुम्हारे चेहरे पर मुझ पर जीत की ख़ुशी !!! हार जाने का मज़ा भी बरसात में ही आता है ना ……प्रकृति से कौन जीत पाया है , मुझे तुमसे हार जाने में सुख मिलने लगा है ……… जीतने के लिए बचा भी क्या है इसीलिये आँगन में निकल जाती हूँ , खुली हथेलियों में बरसते आकाश को भर लेने के लिए..........गीली जमीन और तर पेड़ों से बरसती -बहती बूंदों को समेट लेने का जी करता है !!! 

बरस और बरस ,खनक के बरस ,झमक के बरस ---- इस कदर बरस कि बस ये बरस बस मेरा आखिरी बरस हो ........... मेरी ख्वाहिशों से तर मेरी सांसों में तरबतर बरसात की हर बूँद मेरी देह से तुम्हारा एहसास जाने तक न फिसले……… जम के बरसो मेघा , इतना की दिल में धमक जागे और रूह का तार -तार आसमान से जा मिले ………शज़र सब महक जाएंगे !! झील में गिरती बरसात और वो पहाड़ी से सटी पखडंडी भी धुआं -धुआं होगी …रूह आज़ाद हो तो सब करीब आ जायेगा ! 

हंसो मत ! ख़्वाब देख रही हूँ ………  मुझे पता है जो सच है उसका लिखना मना है पर जो लिखा है उसका सच हो जाना कहाँ मना है ....... अब मुस्कुरा दो , और कुछ नहीं कहूँगी !!

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