Monday 10 August 2015

मुझे न केंद्र बनना है न परिधि और न ही पेंडुलम ..........

गाहे बेगाहे जिंदगी  में कुछ रिश्ते केंद्र और कुछ परिधि बन जाते हैं और इन सब के बीच हम पेंडुलम से झूलते इधर -उधर बीत जाते हैं…………ये रिश्ते अनिवार्य प्रश्नों वाला लम्बा प्रश्न पत्र है जिसमें चयन का कोई विकल्प हमारे लिए नहीं होता। सबमें उलझना जरूरी है वरना नैतिक योग्यता के इम्तिहान में फेल करार दिया जाना तय है……………

मन विद्रोही है……नहीं मानता !! आप मुझे हर नैतिक मानदंड पर अयोग्य घोषित करने के लिए स्वतंत्र हैं। पास होकर भी क्या हासिल होना है .......... मुझे न केंद्र बनना है न परिधि और न ही पेंडुलम !!!

आसपास का हर नैतिक योग्यता धारी शख्स आपको स्कैनर के नीचे से निकालना चाहता है ,मने मैं कोई ओएमआर हूँ --- कितने गोले काले और कितने सफ़ेद हैं , इसका हिसाब आप क्यों रखना चाहते हैं। 

जब तक मेरी निजता आपकी स्वतंत्रता और आपकी निजता का लंघन नहीं करती , जीने दीजिये न ………हर बार नैतिक शिक्षा की किताब मेरे सामने खोल देने से मेरे पंखों की उड़ान कम नहीं हो जाएगी !!

केंद्र बनें ,परिधि बने या पेंडुलम बन के जिए.......आपकी इच्छा ! मेरे लिए रिश्तों में भी आवारगी होनी चाहिये - जहाँ कहीं लौट आने और टिक जाने की बाध्यता न हो...... साथ भर हो ,भरपूर साथ हो , बेपनाह साथ हो ,रवानी हो पर कोई नाम न हो...................  

कुछ हो न हो , दम निकले तो मेरी आवरगी मेरे साथ हो ………!!

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