Thursday 6 August 2015

उसी झील किनारे किसी ढलती शाम सांसों का मेला भरेगा !! चले आना ....

किसी वक्त के आने की कुछ आहट कुछ दस्तक जरूर होती है , अनसुना कर दिया है ! हाथ की लकीरें -पोथी सब धरे रह जाने है.......... खुला नीला आसमान , झील किनारे की पखडंडी और धुआं -धुआं सा कोई मंज़र सामने हो.......!! लौट आने की कोई वजह नहीं, सामने कोई  चाह बाकी नहीं।

खामोशी पसरी है। सिरहाने सांसों की डोर सिमटी सहेज रखी है……  और कुछ नहीं चंद किताबें चंद बातें चंद लम्हे आसपास हैं। कॉफी का प्याला सूख गया ,अब नहीं पीती.......

जिद बाकी है , जद इतनी ही थी ! बहीखाते सब पूरे होना मुश्किल है कोशिश थी कि सब चुक जाए पर सहारों का बकाया कितना बकाया है पता नहीं ……शेष जो है सब तुम्हारा है। तुम्हारा नाम -ठिकाना वजूद में शामिल है --- उस स्कूल में पढ़ी कहानी सा कोई ख़त पढ़ के चले आना ………  उसी झील किनारे किसी ढलती शाम सांसों का मेला भरेगा !! चले आना ....उस कहानी को सच होते देख लेना !!


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