Monday 3 August 2015

जी हाँ !!! चोट पैकेज में मिलती है ........

उम्र का तजुर्बे से लेनदेन जब तक पूरा नहीं माना जा सकता जब तक कि तजुर्बा न हो जाए। पुराने किसी तजुर्बे का नए तजुर्बे से कोई लेना देना नहीं होता फिर भी अक्ल की कसौटी पर उसे जब तक घिसते हैं जब तक कि नतीजा सिफर नहीं निकल आता।  हर कोई उम्र के हर पायदान पर अक्ल का ऐसा ही तराजू लेकर खड़ा हो जाता है जिसका पलड़ा  हमेशा उसी और झुका होता है जो उसकी इंस्टा नीड्स को पूरी करता है।

मूर्खता की पराकाष्ठा  जब हो जाती है जब आप अपना ज्ञान मुफ्त में बाँटने जाते हैं और लौटते हैं तो साथ में एक के साथ एक वाला फ्री का ज्ञान लेकर ……धक्के खाते रहना हम सबकी फितरत है ,किसी के धक्के से किसी को सबक नहीं मिलता ,हर एक को अपनी  ड्राइविंग पर हद दर्जे तक ओवरकॉन्फिडेंस है।  

अपनी योग्यता को फ़लसफ़ों से निहारने में मशगूल हम अपने इर्दगिर्द अपेक्षाओं और अप्राप्य सत्य का चक्रव्यूह रच लेते हैं। सच को झूठ में बदलने की कहानी गढ़ लेते हैं ,खुद को खुद ही उस सच से दूर किये रहते हैं जो अभिमन्यु की मानिंद उस चक्रव्यूह को किसी भी क्षण ध्वस्त कर आत्महत्या करने के लिए तत्तपर रहता है। 

तजुर्बा कहीं काम नहीं आता। घिरना हम सब की नियति है और हर अनुभव के बाद उस ज्ञान को बाँटने और सलाह देना हमारी मूर्खता की पराकाष्ठा है। नियति हम सब को धक्के खाने के समान अवसर देती है .............

धक्के खाइये फिर खड़े हो जाइए अगले धक्के के लिये..........चोट कोई स्थायी नहीं होती ,हर धक्के के साथ आपको साहस का नया पैकेज मिलता है नई चोट लगने तक उसे एन्जॉय कीजिए……चलते रहिये। 

1 comment:

  1. डट के खङे हैं। आप यूँही हौसलाअफजाई करते रहिये :)

    ReplyDelete