Friday 7 August 2015

जब सवाल चौराहे बन जाते हैं तो मैं फिर तुममें लौट आता हूँ ......

जिंदगी को किसी नए मोड़ पे खड़े देखना , जिंदगी के लिए किसी बवाल से कम नहीं होता। एक दिशा के अभ्यस्त पांव अपरिचत रास्ते पर जब निकल पड़ते हैं तो आपके साथ केवल आपका ईश्वर होता है और कोई नहीं।

अजनबी चेहरे ,अधूरी बातें ,अधूरे सच , अनगिनित मरिचिकाएं पल पल इम्तिहान लेने को तैयार मिलते है। ये वो पल होते हैं जब सब आपके साथ होते हैं पर "मैं " अकेला होता हूँ। भीड़ में अकेले होने का अहसास भीड़ से निकल जाने या भीड़ में गुम हो जाने के लिए उकसाता रहता है। 

मेरा लक्ष्य ये नहीं था , मैं रास्ता भटक गया हूँ या ये रास्ता उसी मंजिल की ओर जा रहा है जहाँ मुझे पहुंचना था …… सवालों से घिरा मैं फिर भी चल रहा हूँ !  सुनो ,तुम साथ हो न मेरे ?? हमेशा …!! जवाब सुनकर मैं भी मुस्कुरा देता हूँ !! सच उस को  भी पता है सच मुझको  भी पता है। 

यहाँ से भाग जाने का मन करता है पर जाने के लिए इस सबके परे कोई जगह कहाँ है ? होगी पर अभी नहीं पता , सब छोड़ दूंगा और निकल जाऊँगा किसी दिशा में .......बेजा संकल्प बुलबुलों से उठते -बैठते रहते हैं। 

इन सबके बीच तुम भी कहीं हो .......जो मेरा पीछा करती हो।  अकेला छोड़ क्यों नहीं देती मुझको ? वो मुस्कुरा देती है ……पर ये सच है कि उसका होना मुझे साहस देता है  , वही एक शख्स है जो मेरे हर सच से वाकिफ है। उसके साथ होने का अहसास मेरा भरोसा है जो मुझे भीड़ से अलग कर देता है और अकेला भी नहीं होने देता। 

मैं नए सफर पर हूँ --- तमाम उलझनों के साथ ,सवालों और अनमने से रिश्तों के साथ ! अपने को ढूंढने निकला था, क्या  खुद को खो दिया मैंने ? क्या पा लिया मैंने ? 

जब सवाल चौराहे बन जाते हैं  तो मैं फिर तुममें लौट आता हूँ ........ताकि कल फिर उसी उम्मीद से मंज़िल की ओर बढ़ चलूँ जहां सफ़ेद रोशनी मेरा इंतज़ार कर रही है................... 

1 comment:

  1. मैं तो कभी अकेला नही होता। मैं शब्द तात्पर्य से जुड़ने से ही बता सकता है । कि ,मैं अहं हूँ , मैं तटस्थ हूँ , मैं समर्थ हूँ । इत्यादि इत्यादि । ये सब बूझने को मन की सूझ लगती है। बाक़ी आजकल भंगार मे मन की बात है। चाहिये ? पक्का नही चाहिये आप को भी और आप सब को भी।

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