Saturday 5 September 2015

ये ख़्वाब उस झील किनारे किसी प्रेत सा लटका है ………पर रूह से अब आज़ाद हुआ जाता है !!

कुछ लम्हे  जिंदगी में  चाँद से उतर के आते हैं और हादसों की शक्ल में उम्र भर न भरने वाला घाव देकर जाते हैं।……ये वो पल होते हैं जिनमें जिंदगी भर के तमाम तजुर्बे  और फ़लसफ़े बेमानी हो जाते हैं !! सब सीखा -पढ़ा बेकार सब सुना अनसुना हो जाता है …………

यकीं दिला कर ताउम्र बे - यकीं कर देना किसी के लिए आसां हो सकता है ,किसी के लिए किसी के आंसू उपहास का सामान हो सकते हैं , किसी के लिए किसी का समर्पण बाज़ार में हर दुकान पर बिकने वाला कोई सस्ता सामान भी हो सकता है !!

जिंदगी भी हिसाब बराबर करती है --- मेरे गुनाह की सजा मुझे स्वीकार है और इसी जन्म में स्वीकार है !! गुनाहों का कर्ज लेकर अगले जन्म में फिर एक बार उसको चुकाने के लिए सामना हो ,नहीं चाहती ! गुनाह ये कि किसी चाँद की रोशनाई पर भरोसा कर चाँद के लिए सीढ़ी चुन ली !!

चाँद से उतर आयी हूँ ....... अब जमीन पर हूँ तो दिखा  कि वो स्याह काली रात के बाद के धुंध में लिपटी सुबह भी काली ही थी जब एक और अँधेरे का सफ़र तय करना था…………

पहाड़ के चक्कर खाती कार और उसमें बज रहे गानों की रुमानियत अब रुदाली के गीतों सी महसूस हो रही है !! सीन बदलता है और फिर एक सफ़र ....... फिर कोई शाम ,कोई रात कोई अंधेरी सी सुबह .......

चीत्कार मे बदल जाती हैं खूबसूरत स्मृतियाँ………… घाव इतने रिसते हैं कि धोने के लिए जिंदगी भर आंसू भी कम पड़ेंगे !!

कुछ सफर अंधेरों के होते हैं ,अंधेरों के साथ होते हैं ,अंधेरों पर खत्म होते हैं !  ऐसे सफ़र के फ़साने अक्सर तो सोने नहीं देते सो जाओ तो डरा के उठाए रहते हैं……… कितनी रातें दीवारों पर परछाईयाँ गिनते बीतती है और कितनी सुबह कितनी रातों को खो कर चली आती !!

दर्द का सिलसिला सैलाब बन बहता रहता है ………तकिये पर पड़ी आंसुओं की धार के निशां उस ख्वाब की गवाही देते हैं जिसमें मेरा जमीर ही मेरा क़ातिल हुआ जाता है …………

ये दर्द का ज़लज़ला है जो मेरे जिस्म से मेरी रूह को लिए जाता है .............

ये ख़्वाब उस झील किनारे किसी प्रेत सा लटका है ………पर रूह से अब आज़ाद हुआ जाता है !!

चलो अब अलविदा कहते हैं , ये सफर यहीं खत्म करते हैं !

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