Tuesday 15 September 2015

जितना दूर हो रही हूँ शोहरत की बाजीगरी उतना उलझा रही है .......

जिंदगी हैरान करती रहती है , कितना कुछ अचानक कितना कुछ वैसा घट जाता है जो कभी सोचा भी न होता है ……

ABP न्यूज़ का बेस्ट ब्लॉगर अवार्ड मिलना भी ऐसा ही कुछ अप्रत्याशित सा है  ………… हैरान इतनी कि खुद अपने ब्लॉग को दुबारा पढ़ने का जतन किया कि ऐसा क्या लिख दिया जो ईनाम का हकदार था !

नहीं समझ आया ....... बस वो लिख देती हूँ जो मेरा दिल कहता है ……… जिंदगी के इस मोड़ पर सही -गलत का निर्णय करना बेमानी है ! अब जो चाहे तय करे पर मेरे लिए अब इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है। 

बोलने से पहले सोचना ही हो तो चुप्पी बेहतर है।  ज्यादा सोच -विचार से ईमानदारी चली जाती है …… स्वार्थ के मुलम्मे चढ़े शब्द बोल अब किसे रिझाऊं …………हमाम में सब नंगे हैं। 

लोग सलाह देते हैं दोस्तों को परख लिया करो ……मैं कहती हूँ बिना दोस्ती किये परखूँ कैसे और जिसे दोस्त मान लिया उसे परखना कैसा ? जो हो सो नसीब मेरा………… छल मिला तो भी अपना - निश्छल मिला तो भी अपना सा लगा।

 मैं दरिया हूँ ,ये कब सोचूँ कि बहूँ कि ना बहूं ……………इतना सोचूंगी तो मेरी रवानी नाले में बदल जाएगी। .......... मैं तो फिर सफर में हूँ ,दूर सागर में जा मिलना है।  लम्बा सफर है कहाँ तक ,किस घाट -किस बाँध की जद में आऊं …………। 

"मैं आगे निकल आयी हूँ………… और तुमसे भी दूर निकल आयी हूँ  .......... हाँ , तुमसे भी " 

पहाड़ -जंगल -झील.………सबसे पार जाना चाहती हूँ …… उड़ जाना चाहती हूँ ,हर सिलसिले से दूर ,हर किस्से -हर कहानी से दूर ……सांस के झमेलों से दूर.......... 

जितना दूर हो रही हूँ शोहरत की बाजीगरी उतना उलझा रही है....... ये जिंदगी का आख़िरी दांव है शायद ,मुझे बहकाने का , मुझे फंसाने का ............. मैं इसे भी जी रही हूँ पर मैं इसमें कहीं नहीं हूँ ! ये खेल नियति रच रही है मेरे लिए ……………कब तक फंसा सकती है , ये खेल भी देख रही हूँ !

मुझे बस झील का एक वो एक कोना चाहिए  जिसके किनारे खड़े दरख्त का सहारा लिए मैं पहाड़ों से उतरती परछाइयाँ जी सकूँ………नियति मुझे सागर के किनारे ला खड़ा करती है , वो सागर जो न प्यास बुझाता है न मेरे परवाज़ की जद में है ! मैं इस सागर का क्या करूँ……… ?

जब सफर पर निकल थी तब भी सोच के नहीं निकली थी कि कहाँ पहुँचूंगी , बस इतना पता था कि सफर को जीना है………… 

भरपूर प्यार दिया इस आवारगी ने ,इतना कि मेरा आँचल भी इसे समेटने को कम है। जो मिला सब स्वीकार है …… बस उलझना स्वीकार नहीं है। 

मुझसे मत उलझिए ,बहते रहिये , जीते रहिये ,चलते रहिये………मिलें न मिलें किनारों सी मेरी जद बने रहिये !

खुश रहिये  !


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