Wednesday 2 September 2015

सवालों का जंगल मन में बसा है। समंदर से खारे जवाब ..........दरिया सी प्यास है .........

कुछ दिन चिल्ल्पों में गुज़ार दो तो  दिमाग का फ्यूज उड़ जाता है ……… भाग जाने का मन करने लगता है !! सब कुछ कितना बेमानी सा है ! एक दौर होता है जब आसपास सब सुख साधन चाहिए होते हैं .......नया टीवी ,नई कार ,नया मोबाइल सब रोमांचित करते हैं लेकिन एक सीमा के बाद इनकी औकात भी किराने सी हो जाती है ………

सब बोझल हो जाता है ,मन फिर इस सबसे परे किसी आकाश में उड़ने लगता है ……

वो पहाड़ की चोटी याद आती  है जिसके एक और फॉयसागर और दूसरी और पुष्कर दिखाई देता  है ……पहाड़ी पखडंडी ,बकरियों के झुण्ड , झूलती शाखाएं और तने का सहारा याद आता है ……पहाड़ों से मुझे ऑब्सेशन है …… वो मुझे ऐसी जादुई दुनिया में ले जाते हैं जिसका आकर्षण खत्म होने को ही नहीं आता है !! न सागर भाता है ना जंगल …………पहाड़ साथ न हों तो दुनिया पहाड़ सी लगने लगती है !! 

सवालों का जंगल मन में पसरा  है। समंदर से खारे जवाब ..........दरिया सी प्यास है .........

अजब आवारगी का आलम है ,सफर पर हूँ पर ठहर सी गयी हूँ ! बीता सब कुछ  बीता पर भीतर कितना कुछ रीत गया ……क्या दावा करूँ कि सब देखा पर कितना कुछ है जो अनदेखा है , अनदेखे का रोमांच जिलाये रखता है पर जो घट जाता है उसका भाव भी बीता जाता है ....

मैं फिर से लौट आती हूँ तुममें……… उस स्नेह के स्पर्श में जिसमें पहाड़ सा आकर्षण है , पहाड़ों सा ठहराव और पहाड़ों सी ताजगी है !!

सुनो … बाल खुले छोड़ दो .... हाथ दो और साथ बाहें फैला कर मेरे साथ खड़ी हो जाओ………गहरी साँस लो और मुझे जी लो ……… !  

वो कुछ पल आज तक जी रही हूँ ……… और इसीलिये जी भी रही हूँ !

उस पहाड़ी का वो शिखर मेरी आवारगी का साथी है !! मैं कहीं भी जाऊं ,तुम में लौट आना ही मेरी नियति है .......... मुझे इससे बेहतर कुछ मिला भी नहीं ! न मिले ....... तुम हो ना !

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