बहुरूपिये देखे हैं क्या ?? स्वांग धरने वाले ……मुखौटे लगा के या चौखटे को पोत के दूसरा चौखटा लगा लेने वाले ....... जरूर देखें होंगे ! दिन भर आजू बाजू सब तरफ मिल जाएंगे।
एक नेता जी हैं …… सुने थे बहुत बड़े समाजसेवी हैं ,आदर्शों के पैरोकार हैं और परहित में डंडा-लाठी सब खा सकने को तैयार हैं ………अच्छा लगा , जी भर के आदर किया …सम्मान इतना की सोच लिए कि दुनिया में इतनी महानता किसी और में होना बहुत मुश्किल होता होगा।
सादगी और शब्दजाल का खेला जिंदगी को झंड बना देता है , ये बात जब समझ आती है जब आप स्वांग का असल अर्थ समझ जाएँ।
नेता जी की भारी भरकम फ़ौज ,फ़ौज में ढेरमढेर सिपहैया , सिपहैयों के सिपहसालार........पहले हम सोचे ये नेता जी का परिवार है , स्वांग समझे तो समझ आया कि ई तो असल दरबार था....... सब नौटंकी के किरदार।
लाईन लगी थी
" साहिब लाइन टूटी है , बस चलवा दो , सड़क बनवा दो , डाक्टर नहीं आता......... "
कितने आदमी हो ,कितना काम करते हो ,कब करते हो ,फलाने को दे दो - ढिकने को बुलवा लो " नेता जी मुस्कान चिपकाए समाधान परोस रहे थे ....... हमने सोचा क्या गज़ब अलादीन का जिन्न है इनकी जेब में…… चुटकी बजी नहीं कि काम हुआ नहीं।
नेता जी का व्यक्तिव इतना सौम्य इतना धीर-गंभीर कि मनो उनके मन का चोर ख़ुदकुशी करके मरा हो। न भीतर का बाहर आ सके न बाहर का भीतर जा सके। मुलम्मा नौटंकी की जान होती है , जब ये समझे तब जाना कि चोर तो डकैत बना बैठा है।
सिपहिया सब आगे -पीछे नाचत रहे। रेवड़ी बंटी तो नेताजी के दाहिने हाथ को और जलेबी बंटी तो नेताजी के बांये हाथ को……
हम भी खुश थे अपनापा पहली बार देखे सो सोचे कि भगवान जी गढ़ के भेजे हैं ये दरबार जनता की सेवा में।
एक रोज मोहल्ले की एक औरत मर गयी ,नेता जी को खबर की। नेता जी के सिपहिया माइक ढूढ़ लाये , फोटू तो केमरा उतार ही ले है सो नेता जी जमीन पर बैठ गए। ……सिपहिया फोटू ट्वीटे नहीं कि सब सेना लगी स्यापा करने ....... नेता जी बोले " मरने वाली मां थी ,बहन थी ,बेटी थी ……मेरा अपना चला गया !" नेता जी का दुःख देख कलेजा मुहं को आगया !
नेता जी लौट गए -- अगले दिन किसी ने खबर की कि कोई लड़की के साथ बुरा काम किया है। नेता जी कन्फूज़ थे ,पहले क्लीयर करना जरूरी था कहीं नाम उनका तो नहीं था ? कहीं दरबार में से तो किसी का नहीं था ? कहीं किसी राजदार का तो नहीं था ? ..... सिपहिया दौड़े लड़की मुई ज़िंदा थी !
" नहीं !! ये सब झूठ है ,मामला आपस का है , हम केवल सामजिक मसले पर बात करते हैं। लड़की जब तक जिन्दा है हम कुछ नहीं कर सकते। "
दरबारी खुश थे ,नेता जी खुद भी बच जाते हैं और हमको भी बचाये है …नेता जी जिंदाबाद। दिशाएं गूँज उठीं।
हम भी ताली बजाते इसके पहले कोई एक किताब हाथ में धर गया ....... आँख नेता जी की संवेदनशीलता से गीली थी। कुछ पढ़ते इसके पहले ही कोई हाथ में चार फोटू और एक सीडी पकड़ा गया ..........
हम धम से जमीन पर कभी फोटू देखते कभी नेता जी को देखते……… प्रमाण करम पे धरा है ले जाओ !
उस दिन का दिन और आज का दिन जब भी नेता जी को देखते हैं स्वांग के सारे किरदार आँख से गुज़र जाते हैं !
आज की बात नेता जी के स्वांग पर कल दरबार के स्वांग पर………
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