Thursday 22 October 2015

आप सत्ता में हैं ,जवाब दें या षड्यंत्रों में उलझाये रखें आपकी मर्जी !

आजकल रातें कुछ जगी सी और दिन उनींदा सा गुज़र रहा है। कुछ है जो पीछा कर रहा है ,कुछ है जो पीछा छोड़ नहीं रहा है …मन उचाट सा है। खुद से दो -चार हो जाने का मन करता है तो कभी तमाम हथियार डाल घुटनों पर आ जाता है। समझाइश की भी सीमा होती है , कितना लड़िएगा खुद से और उस व्यवस्था से भी जिसमें सांस लेना आपकी नियति है।

मैं कुछ नहीं हूँ। एक पात्र ,एक सूत्रधार किसी कहानी की....... उस कहानी के सच ने मुझे राजनैतिक षड्यंत्रों के बीच ला पटका है। हर रोज नए ताने  बाने के साथ मुझ तक कोई फुसफुसाहट पहुंचाई जाती है मानो कि मैं उन सब पर भरोसा कर बैठूंगी। ये किस्से अब असर नहीं करते ,अब कोई सच असर नहीं कर रहा। 

ब्लॉग की एक मामूली सी पोस्ट ने समाज और राजनीति का जो चेहरा सामने ला के रखा है उसने भरम के कई जाले उतारे हैं। जो लोग संवेदनशीलता का स्वांग रचते हैं वे किस सीमा तक असंवेदनशील हैं ,अंदाजा भर लगाना मुश्किल है। मैंने वो लिखा जो मैंने जिया और उस सच का सामना किया जिसके लिए मैं खुद भी तैयार नहीं थी....... 

ये एक ऐसी लड़ाई बन गयी है जहाँ अब मेरा अपना जमीर ही दांव पर लग गया है। वे लोग जो सामजिक सरोकारों के बूते राजनैतिक ताकत बन के उभरे हैं वही सामाजिक यथार्थ के प्रमाण मांग रहे हैं ?
वही लोग चारों ओर पसरे सामजिक सच को निजी मसला बता कर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं। जी करता है आसमान से प्रश्न पूछूँ कि मेरी पैदाइश और मेरा इस दुनिया में होना ही मेरा निजी मसला है तो फिर ये समाज मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देता ?

मेरा परिवार ,मेरा आचरण मेरे इर्दगिर्द की दुनिया में कहने के लिए सब निजी है पर ताकाझांकी की कोई भी सम्भावना समाज बाकि भी नहीं रखता। …… फिर सब सवाल निजी कैसे हुए ??

घर की चारदीवारी में कोई अपनी पत्नी को मारे या कोई पत्नी अपने पति के साथ बलात्कार करे तो उसे पारस्परिक मामला माना जाना चाहिए। दहेज दो परिवारों के बीच का मसला है , बेटी चाहिए या नहीं ये भी निजी मसला है तो इन सब मसलों पर किसी भी राजनैतिक दल को चुप्पी साधे  रखनी चाहिए। 

औरत की अस्मिता और बीफ के बवाल में कोई अंतर नहीं है। दोनों वोट और नोट की आंच पर खूब सेंके जाते रहे हैं। प्रश्न के बदले प्रश्न करना अब हमारी आदत है क्यूंकि उत्तर अब कोख से पैदा नहीं हो रहे हैं।  ये समाज अब केवल प्रश्न जन रहा है। उत्तर जानने  के लिए जन्म भर इंतज़ार कीजिए। 

मैं भी इंतज़ार में हूँ ....... आप सत्ता में हैं ,जवाब दें या षड्यंत्रों में उलझाये रखें आपकी मर्जी ! फर्क पड़ने की भी सीमा होती है। भावुकता और निज बनके जो सत्ता तक पहुंचे हैं वे वोट की राजनीति करने लगेंगे तो उन जड़ों को पोषण मिलना बंद हो जाएगा जिसके आधार पर ये पेड़ उगा है। 

हम सब सीख रहे हैं। आप भी सीख लीजिये ,नहीं सीखना चाहते तो भी कोई बात नहीं ,प्रकृति बख्शेगी किसी को नहीं। 
किसी मोड पर हम फिर मिलेंगे ,दुआ -सलाम फिर होगी।  मैं तब भी आपकी खैरियत ही चाहूंगी , रही नींद की सो कब तक न आयेगी। मन बेचैन जरूर है पर आपसे नाराज भी नहीं है ,किसी से भी नहीं !

1 comment:

  1. सवाल की चोट भी ज़रूरी है,करते रहिये असर भी हो कर रहेगा।👌

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