Tuesday 13 October 2015

प्रशंसक किसी के न बनिए वरना कुछ समय के लिए सही छाती जरूर कूटेंगे !

घोर गंवई से लेकर तथाकथित संभ्रांतों तक के बीच से गुज़र आयी हूँ।  जिंदगी का फलसफा सुलझने की जगह उलझता ही जा रहा है।  बचपन पिताजी के खादी के संस्कारों और साहित्य के आदर्शों के बीच बीता ,बड़े हुए तो राजस्थान यूनिवर्सिटी के गलियारों में कुछ बेहतरीन  प्रोफेसरों से पाला पड़ गया …… वहां से निकले तो असल जिंदगी के थपेड़े इतने लगे कि आज तक कोई नतीजे पर नहीं पहुंच पायी कि सच आखिर था क्या? क्या है ? वो लोग कौनसी दुनिया की बातें करते थे ? वो कौनसी दुनिया में रहते थे ?

इस दुनिया में तो सब बकलोली है। कहे कि कन्फूजन इतना समंदर गहरा हो जितना। पिछले कुछ दिनों के तमामतर अनुभवों ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि जितना कुछ सीखा -पढ़ा है वो सब नये युग के ज्ञान के आगे व्यर्थ है। जो दिख रहा है वो हो नहीं रहा, जो हो रहा है वो दिख नहीं रहा , होने का भरम है।  

सत्ता की जादूगरी देखी ,नेताओं की दलाली देखी ,नैतिकता की कालाबाज़ारी देखी। वर्षों से छायी राजनैतिक उदासीनता को एक नई हवा ने खत्म किया था , लगा कि फिर से नया जीवन मिला है। दूध का उबाल सा चढ़ता है मन , कौतूहल वाला बचपन अभी भी भीतर बसा है। नया आंदोलन ,नया सफर ,नए चेहरे ,आदर्शों -नैतिकताओं और संकल्पों के सिलसिले। 

ये दौर भी एक प्रेम कहानी सा है जिसका अंत भी वही होना है जो अमूमन हर प्रेम कहानी का होता है …… तू तेरे खुश- मैं मेरे खुश  ! इस पूरी यात्रा में कितने ही चेहरे -मोहरे मिले। पटकथा लिखने वाले देखे ,अभिनय करने वाले देखे। 

मैं खुश हूँ कि मुझे एक नेता जी मिले …… उन नेता जी के कारण कुछ दरबारी मिले और उन दरबारियों के कारण नगरकोट के पटेल जी का यथार्थ देखने को मिला। 
भला हुआ जो एक हवा ने इस आँचल को उड़ा दिया , सब नंगे हैं।  सब छिपा रहे हैं ,सब दिखा रहे हैं। ये "होने " का भरम सबको ले डूबेगा , वही डुबोता आया है।  पर डूब भी गए तो भी क्या ? इतने पहले भी डूबे हैं। 

ये सत्ता की पाल है।  मांझी पे भरोसा कर नाव पर सवार होते हैं ,ये दरिया की रफ़्तार और मांझी की किस्मत -कौशल है जो पार लगाये या बीच धारे में डुबो दे ! 

मैं डूबी तो भी तर जाऊँगी मैं पार हुई तो भी तर जाऊँगी वो इसलिए क्यूंकि जो देखा बहुत देखा ,अच्छा हुआ जो जल्द खत्म हुआ और किनारे लगी तो मेरी दुनिया मेरे मांझी को दुआएं देगी। 

सो , जो हो सो हो और जो ना हो तो न हो ....... मैं मेरी आवारगी के साथ जहाँ रहूँ वहां खुश ही रहूंगी ....... झील ,जंगल ,नदी -पहाड़ ,दरिया और पंछी........ हर झूठ के बाद बस वही सच मजबूत हो जाता है ! मेरी आवारगी अब इन खूबसूरत पखडंडियों पर बढ़ चली है... नकाबपोश दुनिया के बीच की ये दुनिया मेरे ख्वाबों की दुनिया है ! चली जा रही हूँ उसी की ओर .... 

आप भी चलते रहिये -- हाँ , प्रशंसक किसी के न बनिए वरना कुछ समय के लिए सही छाती जरूर कूटेंगे !

1 comment:

  1. कई दिनों से आपके ब्लॉग पढ़ रहा हु प्रतिक्रिया देने से बचता रहा. अक्सर ऐसा होता है की करीब से देखने वाले को बुराइया जल्दी दिखाई पड़ जाती है. और उसके बाद दो ही रास्ते होते है या तो खामोश रहे या आवाज उठाये. विडम्बना है की आज आपकी आवाज का विरोध करने वालो में कई ऐसे होंगे जो भविष्य में कभी सच्चाई से रूबरू होंगे.

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