Tuesday 6 October 2015

एक सीढ़ी है मेरे और उस चाँद के बीच ....... मानो एक डील है !

कितना खूबसूरत ,हैरान कर देने वाला सफ़र है ये। मैं और मेरी आवारगी अक्सर ये बातें करते हैं कि ये न होता तो वो न होता और वो न होता तो ये न होता। कौतूहलों का पिटारा सा खुला पड़ा है हर तरफ ....... चाक -चौबंद चेहरे और संशय ओढ़े अनगिनत जिस्म गुज़रते रहते हैं।  नतीजे तक पहुंचने से पहले सवालों की किताब खुल जाती है कभी सवाल पूछने से पहले जवाबों का सिलसिला बन जाता है।

एक सीढ़ी है मेरे और उस चाँद के बीच ....... मानो एक डील है ! न वो मेरी सुनता है न मैं उसकी सुनती हूँ , वो रात में कहानी सुनाता है मैं दिन में बतिया लेती हूँ ,वो रोशनाई से छलता है मैं परछाई बन साथ चलती हूँ ....... हम दोनों अलग है पर मैं न ढलूँ तो वो निकले नहीं ,मैं रोशनी न दूँ तो वो छले नहीं …… वो किस्से सब समेट ख्वाब बन मेरी नींद में उतर आता है ,मैं उजालों में छिपा उसे  समंदर को चढ़ाने का हौसला देती हूँ ....... साथ भी दूर भी पास भी और नहीं भी .......... गुन -गुन - छम -छम सा सफर है ये ……… !

ख्वाहिशों की गुज़र से गुज़र रही हूँ , पीठ पर रवायतों का बोझ है। किसी नामालूम से पते की तलाश है। अपने ही भीतर का एक संसार है जो समंदर सा बाहर भी हिलोरे खाता है ....... खारा पानी ! मुझे समंदर पसंद नहीं - कितना शोर करता है !! झूठ बोलता है , जो लिखती हूँ उसे मिटा जाता है। भिगोता और लौट जाता है ....... मैं दरिया हो जाना चाहती हूँ ……जंगल और पहाड़ों के बीच बहती सी !

जब नींद नहीं आ रही हो तो सफर कुछ और लम्बा हो जाता है और आसपास फैले सन्नाटे की चादर की सिलवटें कहानियां सुनाने लगती हैं। खिड़की से बाहर साथ चलता ये चाँद सफर के अनगिनित लम्हों का हमराज है ,ये अब भी वैसे ही मुस्कुरा रहा है जैसे तब मुस्कुराता था ! छलिया चाँद।

मैं सितारों से उजाले बुन रही हूँ , सुबह होने को है ! चाँद भी उतर जाएगा पर …… सफर में चहचहाना कब मना है !

आप भी चलते रहिये - गुनगुनाते रहिये ! क्या चाँद क्या सितारे दिन के उजालों में हथेलियां सब खाली हैं !


2 comments:

  1. सफ़र में चहचहाना कब मना है। मन रीसेट हो गया😊

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