आवारगी
ताल ,पहाड़ ,जंगल, सफ़र, एक कोई शाम …… कहानी बस इतनी सी है .......
Saturday 25 December 2021
वो जादुई क्रिसमस ,वो मीठी ईद ,वो लोहड़ी के किस्से.... आपको भी याद हैं क्या ?
Thursday 16 December 2021
सच को सब मालूम है पर सच की सुनेगा कौन ? सच की गवाही कौन देगा ? सच के चेहरे की लकीरों को कौन पढ़ेगा ?
Wednesday 15 December 2021
एक दिन ऐसे ही सब कहा - सुना धरा रह जाएगा। ........
Tuesday 30 November 2021
पापा बगीचे के वो हरे भरे दरख्त थे जिसकी हर डाल पर बचपन पसरा था ....
आज फिर नींद नहीं आयी | अब नींद का नहीं आना ,आकर लौट जाना या आते हुए भी न आने सा महसूस होना सामान्य सी बात हो गई है | मैं अवसाद में नहीं हूँ ,ये यकीन दिलाते रहना और सहज बने रहने के लिए जूझते रहना ,आदत में शुमार हो गया है | नींद से दोस्ती हमेशा से बहुत अच्छी नहीं रही लेकिन साल 2021 ,अप्रेल-मई-जून के महीनों के कोरोना युद्ध ने उसे और बेमना कर दिया |
सच कहूं तो इस सब को लिखने से भागती रही मैं.. नहीं लिखना चाहती थी ,नहीं चाहती थी कि कोई और उस दर्द का सहभागी बने ,नहीं चाहती थी कि वो काली रातें ,स्याह दिन फिर -फिर आँखों के सामने से गुजरें लेकिन छः महीने बीत जाने पर भी वो टीस रह -रह कर उठती है ,जख्म फिर हरे हो जाते हैं | नींद फिर आँखों से दूर हो जाती है | इस कमरे से उस कमरे में , कभी भीतर -कभी बाहर भागते हुए सुबह हो जाती है | रात डराती है , डर से गुजर जाने पर भी डर लगना अजीब है | ये शायद डर नहीं है ,ये मलाल है कि पापा को उनके हिस्से की ऑक्सीजन ,उनके हिस्से की साँसे मैं उनको हजार कोशिशों के बाद भी न दे सकी |
उनके जाने के बहाने हो सकते हैं लेकिन उनके न होने के बहानों से दिल राजी नहीं होता | सब तर्क -वितर्क ,ज्ञान का हर पन्ना वो खिलौना लगता है जिसे देख कर भी उठाने का मन नहीं करता |
पापा को उम्मीद नहीं थी कि वो पॉजिटिव आ सकते हैं ,डर जरूर था उनके मन में | जिसका मन सिर्फ उसके बगीचे में लगता हो वो आईसोलेशन में कैसे रहते ? फिर भी उन्होंने कोशिश की , वो फिर भी बिना सहारे मुकाबला करते रहे | खुद चल कर पहला सीटी स्कैन करवाया , खुद चलकर अप्रेल की 23 तारीख को आईसीयू के बिस्तर तक पहुंचे | दिन में उनको वहाँ छोड़ा , रात तक वे घबरा गए | पास के मरीज से फोन करवाया ,सामने बैड पर कोई आखिर साँसे ले रहा था | उनको मोबाईल पसंद नहीं था ,चलाना सीखा नहीं | माँ के बिना रह नहीं सकते थे , बगीचा भी साथ नहीं था | डाक्टर वार्ड में रहने से मना कर रहा था | हम भाई -बहन उन्हें समझा -बुझा के लौट आए | सुबह फिर जिद कर ली ,घर लौटने की | कैसे लौटा लाती ? पापा भर्ती हुए उसके तीसरे दिन छोटे भाई की सांस भारी होने लगी | वो घर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर था ,पापा अस्पताल में | मैं 103 बुखार में, डॉक्टर को रेमेडेसीवर समेत जो चढ़ना था ,चढ़ता .. हाथ में कैनूला लगा रहता .. सुबह पापा के पास भागती , पापा बिटिया को बुलाया दो कि जिद किये रहते थे ! उनको बिठाना ,स्पंज करना ,मालिश करना , खिलाना..
वार्ड में किसी को पानी पिलाना ,किसी आंटी को बाथरूम तक ले जाना ,किसी को खिलाना .. सब किया ,सबको उम्मीद रहती थी कि बिटिया आएगी .. पापा के पास वाले बैड पर एक भाई जिसे तीन दिन तक संभाला ,सामने हाथ जोड़ कर चला गया , कोई अपने घरवालों को पुकारते चले गए .. प्यार भरे स्पर्शों को प्लास्टिक के बैग में सिमटते देखा मैंने ..
दोपहर फिर घर लौटना भाई के लिए सिलेंडरों का इंतजाम करना फिर वापिस पापा के पास लौटना.. रात फिर से घर के आईसी यू में खुद को भर्ती करना , बाल्टी भर दवाओं के डिब्बे .. एक पलंग पर भाई ,एक पर मैं !! रातभर भाई खांसी से सो नहीं पाता था | माँ को कह सुन के सुला देती थी | वे भी सहमी सी हिम्मत दिखाती रहीं | भतीजा सिलेंडर के इंतजाम के लिए रात भर लाईनों में लगा रहता.. सुबह हो जाती !!
एक रोज अस्पताल के वार्ड के बाहर चर्चा सुनी कि जो ऑक्सीजन लाइन आईसी यू में या रही है उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है | सुनते ही अंदर भागी तो समझ आया कि अपने पेशेंट के लिए घरवाले सिलेंडरों का इंतजाम कर रहे हैं |
जिंदगी में पहली बार खुद को इतना निराश ,इतना हताश पाया | सिलेंडर कहाँ से लाऊँ ? दोस्तों -शुभचिंतकों की मदद से 21 सिलेंडर इकट्ठे किये 15 दिनों में , भाई और पापा दोनों को उसकी जरूरत थी .. सिलेंडर भरवाना हर रात संजीवनी लाने से कम न था | इस बीच पापा को ब्रेन स्ट्रोक आ गया | एक हिस्सा काम नहीं कर रहा था ,नजर आना बंद हो गया | आवाज भी जाने लगी | वे पेन मांगते लिखते तो घर में सबका हालचाल पूछते | कहते कि घर ले चले .. एक रोज उन्होंने लिखा " बिटिया खूब खुश रहना ,मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है | सबका ध्यान रखना | "
मैं नहीं जानती ,कैसे खुद को संभाला .. 7 तारीख को पापा को घर ले आयी कि अब जो हो सो हो कम से कम माँ के आँखों के सामने ,अपने -घर -बगीचे से रुखसत हों !! पापा मास्क खींच देते थे ,सो हाथ बांधना पड़ता था | आखिरी दिन उन्होनें मुझसे हाथ खोलने जिद की ,मैंने मना किया .. उनका देखना ऐसा था जैसे कह रहे हों कब तक बाँधेगी..
शाम को देह के बंध से वो मुक्त हो गए ! कोई रो भी न सका .. भाई के सामने से उनकी देह अंतिम यात्रा पर थी वो कंधा न दे सका |
इधर पापा का जाना हुआ उधर भाई की साँसे जवाब देने लगीं | शाम 5 बजे खुद ही गाड़ी में सिलेंडर समेत भाई -भतीजे के साथ शहर के पाँच अस्पतालों के दरवाजे खटखटाए .. रात 11 बजे जाकर जगह मिली !
भाई जीत गया | 15 दिन बाद घर लौटा फिर महीने भर बाद पापा के फूल मां गंगा की गोद में रख आया | पापा दो महीने अपने ही बगीचे के ,अपने ही सँवारे आसापाला के आलिंगन में रहे |
इस सब के बीच मैं कब ठीक हो गई ,पता नहीं चला ! कब मुझे कोरोना हुआ ,कैसे कब गया, नहीं पता |
मैं चाहती थी कि मुझे ये सब याद न रहे , स्लेट -पट्टी पर लिखे की तरह इसे भी सूखा दूँ .. नहीं सूख रहा है | एक -एक कर कितने ही चेहरे ,कितनी बातें , कितने मलाल दिमाग को सुन्न किये जाते हैं |
आज फिर सुबह हो गयी ! एक दिसंबर 2021 .. अब जब फिर तीसरी लहर की आशंका उठने लगी है ,दिल फिर से घबराने लगा है ! कहते हैं ,ब्रह्म मुहूर्त में ईश्वर जल्दी सुनते हैं .. मैंने आज सब लिख दिया है ,मैं चाहती हूँ ईश्वर इसे पढ़ें ,हमसे जो भी गलत हुआ हुआ हो उसे क्षमा करें .. कुछ न दें बस अपनों को आसपास रहने दें ,उनकी साँसों पर उनका हक रहने दें !
आप सब भी अपना ध्यान रखना ,अपनों के साथ रहना .. पापा बगीचे के वो हरे भरे दरख्त थे जिसकी हर डाल पर बचपन पसरा था ! माँ देहरी हैं , बस वही हैं जो हिम्मत बँधायें हैं कि एक दिन सब अच्छा होगा .. आप भी दुआ करें कि सब के साथ ,सबके पास सब अच्छा रहे !
चलते हैं ,फिर मिलेंगे ! निराश फिर भी मत होना ,जीवन है सब चलता रहेगा ..
Monday 16 August 2021
मैं न कर सकी पर आप जो विद्रोह कर सकते हैं, जरूर कीजिएगा | इश्क की सतरंगी दुनिया में लौट आने की उम्मीद मत छोड़िएगा ....
बहुत बार मुझे ऐसा लगता था
अगर विद्रोह करने पर मजबूर कर दी जाऊँ
तो मैं बहुत जोर से चीख सकती हूँ
दीवार को भड़भड़ा के गिरा सकती हूँ
आसमान को पीछे धकेल सकती हूँ
और
अततः उन सब चीजों को बदल सकती हूँ जो मुझे असहज कर
रही हैं |
पर ये सब निहायत बचकाना सिद्ध हुआ
विद्रोह की हर स्थिति में
मैं बच निकली
कभी ये कहते हुए कि मेरे ही लड़ने से क्या होगा
कभी ये मान कि मुझसे पहले भी कई चले गए
जो सोचते थे
आसमान में सुराख कर देंगे |
हाई स्कूल में आयी , तीसरी भाषा के रूप में उर्दू
पढ़ने का ऐलान कर दिया |
घर वालों ने विरोध नहीं किया लेकिन जब उर्दू की
क्लास में जाकर बैठी
टीचर के साथ साथ क्लास की बाकी लड़कियों ने भी समझा
दिया कि ये उनके लिए भी अजीब है |
मैंने संस्कृत पढ़ी ,बेमन से |
मन उर्दू की किताब में था
ये विद्रोह भी वहीं दब गया |
मेरी सबसे पक्की सहेली फिरोजा दसवीं में ही
पाकिस्तान के किसी लड़के से ब्याह दी गयी|
फिरोजा चली गयी | पक्की सहेलियों का विद्रोह कच्चा साबित
हो गया |
ईद की सिवईयों का स्वाद लेते , शरारा –कुर्ते और
चुन्नी को संभालते
गज़लों वाली रातों और मुशायरों के साये में बचपन बीत
गया |
उस दौर को रोक लेने की जिद भी बहुत की
पर विद्रोह तब भी नहीं कर सकी |
वो दौर आया जब दिल बल्ले पर धड़कने लगा !
पाकिस्तान की टीम जयपुर आयी थी
सनक की इंतिहा ये कि इमरान के ऑटोग्राफ के लिए
कॉरीडोर पार कर उसे सीढ़ियों पर ही घेर लिया |
तब वो सिर्फ इमरान था | इमरान खान नहीं !!!
हॉस्टल की दीवार पर चस्पा दसियों पोस्टर वाला हीरो
!!
एक दिन कर्फ्यू लग गया | सब हिन्दू –मुसलमान हो गए
|
भीतर का इंसान , विद्रोह के स्वर में चिल्लाया
बंद करो ये खेल !!
सुनो सब एक से नहीं हैं
आवाज मेरी बस मैंने ही सुनी
पर विद्रोह मैं तब भी नहीं कर सकी |
लोगों ने कहा तुम मासूम हो, तुम सच नहीं जानती |
न जानने,
न बता पाने,
न सुने जाने का आक्रोश समझते हैं ना ?
मैं तब भी कुछ बदल नहीं सकी |
मैं उन सबको तब भी कुछ समझा न सकी |
विद्रोह तब भी नहीं कर सकी |
फिर एक रोज इंदिरा का खून बहा....
गोधरा हुआ , गुजरात हुआ.........दिल खूब रोया !
वो संभलता कि राजीव गए ,सफ़दर झुंड में घेर के मारे गए
फिर ये दर्द आदत में शुमार हो गया..
फिर क्या आईसीस और क्या RSS
विद्रोह तो मैं तब भी नहीं कर सकी |
सच तो ये है
मैंने ही इश्क में तर
खूबसूरत नज़्म सी दुनिया की तमन्ना की थी
ये और बात है कि
लहू में तरबतर दुनिया मुझे हासिल हुई |
ये जान समझ लिया है मैंने
विद्रोह मैं अब भी नहीं कर सकी |
अब कुछ नहीं सूझता मुझे
बस एक खामोश उम्मीद बाकी है
कोई दिन ऐसा आएगा जब सब एक दूसरे को देख बाहें
फैलाएंगे
मुस्कुरा कर कहेंगे कि तुम सब मेरे अज़ीज़ हो !
दिल का एक हिस्सा कहीं और बस रहा है,एक
हिंदुस्तान में धड़क रहा है |
मैं खुद को दुनिया के हर हिस्से में , उसकी बनायी
हर शह में जीती हूँ |
हर किसी के दर्द में रो लेती हूँ
हर किसी की मुस्कुराहट पर मर जाती हूँ
गीता में जब कृष्ण कहते हैं कि आत्मा लंबे सफर पर
है
ऐसा है तो मैं कहती हूँ कि फिर हम उसे वीज़ा देने
वाले हैं कौन ?
ये नियम, ये शर्तें ,ये पाबंदियाँ बस साँसों की
गुलाम हैं....
कितना रोक लीजिएगा !
देह के रंग-ईमान ,उस पर कानून बनाने
बेकार की वजहों से
छोटी सी जिंदगी में जहर भर देने का ये सिलसिला थम
जाना चाहिए !!
मैं न कर सकी पर आप जो विद्रोह कर सकते हैं, जरूर कीजिएगा
|
इश्क की सतरंगी दुनिया में लौट आने की उम्मीद मत
छोड़िएगा !
हम कहीं न कहीं ,कभी न कभी उसे जरूर पा लेंगे !
हम उस पार रोशनी की दुनिया में फिर से मिलेंगे
उम्मीद मत हारना !!
Monday 17 August 2020
दिल्ली की राजनीति में बधाई की राजनीति के मायने क्या हैं ?
दिल्ली की राजनीति बड़ी दिलचस्प है | शीला दीक्षित का राजकाज हो , साहिब सिंह वर्मा हों या अब अरविन्द केजरीवाल , इन सब की राजनीति में केन्द्रीय सत्ता की भूमिका अन्य राज्यों की तुलना में अलग रही है | स्पष्ट कर दूं कि मैं राजनैतिक मसलों की कोई जानकार नहीं हूँ | एक सामान्य नागरिक की तरह जो सामने घटता दिख रहा है उसी आधार पर ये विश्लेषण कर रही हूँ |
कल अरविन्द केजरीवाल का जन्मदिवस था | नरेंद्र मोदी से लेकर छोटे –बड़े भाजपा नेताओं तक ने उनको बधाई दी | राजनीति में मूलतः विरोधी कोई नहीं होता ये बात जग जाहिर है इसलिए इन संदेशों से कोई अर्थ निकालना प्रथम द्रष्टया अनुचित है लेकिन ऐसा जब बीते सालों में ना हुआ हो तो कुछ अटपटा जरूर लगता है | क्या अरविन्द केजरीवाल भाजपा के करीब जा रहे हैं या भाजपा अरविन्द के करीब आ रही है ? दिल्ली की राजनीति में बधाई की राजनीति के मायने क्या हैं ?
कोरोना दौर की दोस्ती के मायने
कोरोना संकट के शुरुआती दौर में हमने देखा है की दिल्ली भाजपा के नेताओं से लेकर गोदी मीडिया तक के स्वर अरविन्द केजरीवाल को कोसने के थे | हमने ये भी देखा कि दिल्ली सरकार ने कोरोना संकट से जूझने के लिए जो प्रयास किये उसका केंद्र ने शुरुआती दौर में जबर्दस्त विरोध किया | जिसमें होम आईसोलेशन का मुद्दा खूब गर्माया पर वही बाद में देश भर में लागू करने पर भाजपा सरकार ने मंशा दिखाई |
लेकिन जब अमित शाह ने दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का दौरा किया , उनकी प्रशंसा की , राधा स्वामी सत्संग हॉल को कोविड उपचार केंद्र में बदलने का रास्ता साफ़ किया तब से मीडिया की भी भाषा बदली और भाजपा नेताओं की जुबान पर भी लगाम लगी | क्या ये उतना ही सहज है जितना दिख रहा है ?
अरविन्द केजरीवाल सरकार की मंशा दिल्ली में कोरोना पर काबू पाने की थी ,उसने यह कर दिखाया भले उसके लिए उसे अपने क्रेडिट कार्ड में सेंध लगवानी पडी |
दिल्ली दंगों पर चुप्पी
यही बात दिल्ली के दंगों में दिल्ली सरकार की भूमिका को लेकर उठे प्रश्नों पर भी लागू होती है | दिल्ली जल रही थी तब आरोप लगे की अरविन्द केजरीवाल की सरकार चुप क्यों है ? सब जानते थे कि दिल्ली के चुनाव होने वाले थे और जल्द ही स्पष्ट भी हो गया था कि भाजपा चुनावों में शाहीन बाग़ का इस्तेमाल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए कर रही थी |
अब जब शाहीन बाद में सक्रीय शहजाद अली को भाजपा ने अपने घर में बुला लिया है तो लोगों को समझ आ जाना चाहिए की अरविन्द केजरीवाल चुप क्यों रहा ? सत्ता हर नागरिक आन्दोलन को येनकेन हाईजैक करवा ही लेती है , शाहीन बाग़ का संघर्ष भी अंततः इसी तरह बंधक बना कर सत्ता ने अपने हितों को साधने के लिए काम में लिया |
जानते हुए कि दिल्ली पुलिस ,जिसका नियंत्रण अमित शाह के हाथ में है वही जेएनयू हिंसा के फरार दोषियों को नहीं पकड़ सकी तो भी आप पूछ रहे हैं की अरविन्द केजरीवाल चुप क्यों रहा ?
दंगों और सरकारों को गिराने का इतिहास किस दल का है , सब जानते हैं , सबको मालूम है | सब ये भी जानते हैं कि शहर में आग लगेगी तो आग उनके घर तक भी आयेगी ...... सब जानते बूझते भी अगर लोग भीड़ का हिस्सा बना कर अपनों की ही जमापूंजी को आग के हवाले कर देना चाहते हैं तो कठपुतली पुलिस किस किस को रोकेगी ? क्यों रोकेगी ?
विपक्ष की तैयारी अरविन्द केजरीवाल को दंगों के खेल में फंसा कर चुनावी रण जीतने की थी | केजरीवाल सरकार जानती थी कि न पुलिस उसकी सुनेगी ना विपक्ष के गुंडे उसकी मानेंगे !!
हर राजनैतिक दल ऐसे समर्थकों और कार्यकर्ताओं की फ़ौज बना लेना चाहता है जो उसके कमांडर के हर गलत को सही सिद्द करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद के गुप्तकालीन नियमों का पालन करे | नैतिकता के मारे ये मासूम लोग पोस्टर चिपकाने , नारे लगाने , सोशल मीडिया पर ट्रोलगिरी करने , भीड़ बन जाने को ही जीवन की सार्थकता मान लेते हैं | दिल्ली में आम आदमी पार्टी , कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी तीनों के पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं लेकिन तीनों में अंतर साफ़ दिखाई देता है | ये अंतर उनकी तर्किकता, भाषाई मर्यादा , कार्यशैली , सामाजिक सरोकारों में स्पष्ट रूप से दखा जा सकता है | आम आदमी पार्टी के अधिकाँश कार्यकर्ता / समर्थक सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक पर भाजपा कार्यकर्ताओं/ समर्थकों की गुंडई से जूझते-उलझते दीखते हैं | दुष्प्रचार और प्रोपगेंडा मशीनरी के इस्तेमाल में सबसे अधिक चंदा उगाही करने वाली पार्टी अव्वल नम्बर पर है | बेरोजगार नवयुवक –युवतियों को आसान मेहनताना/भावुक झांसे देकर कुछ भी लिखवाया-बुलवाया जा सकता है |
केन्द्रीय सत्ता के परोकारों ने व्हाट्सएप्प से लेकर फेसबुक तक सब पर कभी अरविन्द केजरीवाल की खांसी तो कभी उनके ऑड इवन के फार्मूले , मोहल्ला क्लीनिकों तक का मजाक उड़ाया | बाकी चुनावों की तरह दिल्ली के आमचुनावों में बड़े दलों ने धन बल से लेकर भुज बल तक का खूब इस्तेमाल किया | अमित शाह की रैलियां और उनके नेताओं के कड़वे बोल किसे याद नहीं होंगे ? किसे ये याद नहीं होगा कि अरविन्द केजरीवाल भी भाजपा और कांग्रेस की जमकर आलोचना किया करते थे |
सब नजारा यकायक कैसे बदल गया ? क्या दुश्मनी यारी में बदल गयी या दोनों खेमों ने विरोधी की ताकत को भांप के राजनीति बदली है ?
मुझे दूसरा वाला विकल्प ज्यादा करीब लगता है | अरविन्द केजरीवाल अब राजनीति में पहले से ज्यादा परिपक्व व्यवहार करने लगे हैं | जनता की नब्ज समझने में उनका कोई सानी नहीं है | मोदी की आलोचना से ज्यादा वक्त वो अपनी विकास योजनाओं को अमल में लाने में लगा रहे हैं | दिल्ली MCD के चुनाव जीतना उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा है | महामारी के इस दौर में दिल्ली की बीमार MCD अरविन्द केजरीवाल के योग्य सिपहसालारों की निगरानी में आ जाए उससे बेहतर उनके लिए कुछ नहीं हो सकता | दिल्ली सरकार जानती है की उनकी ये विजय जनता तक सीधे पहुंचने और निचले स्तर पर भाजपा के सियासी दखल को कम करने में मदद ही करेगी इसलिए सीधे टकराव को जितना टाला जा सके अच्छा है |
भाजपा जानती है “आप” के पास कांग्रेस का वोट बैंक है , अगर वो ये सिद्ध कर दे कि “आप” भाजपा साथ हैं तो उन वोटों में सेंध लग सकती है | दिल्ली में कांग्रेस वैसे ही नगण्य स्थिति में है , भाजपा के लिए केवल “आप” चुनौती है | “आप” जनता के हित में जितने साधन –संसाधन जुटा सकती है ,जुटाने की जुगत में है भले उसके लिए उनको विरोधियों से फीते कटवाने पड़ें या बधाई की राजनीति से दो चार होना पड़े |
इस सब में भी ‘आप ’ ने लाभ दिल्ली की जनता को ही पहुंचाया है | केजरीवाल की मांग पर अगर एक दिन में 30 हजार ऑक्सीमीटर जनता के लिए उपलब्ध हो जाते हैं तो ये राजनीति सकारात्मक है |
स्कूलों –अस्पतालों और जन सुविधाओं को लेकर अगर कोई सरकार गम्भीर है तो उसकी इस गुरिल्ला राजनीति से किसी को परहेज नहीं होना चाहिए | अन्य दल अगर इसी राजनीति की आड़ में दिल्ली की सत्ता पर नज़र लगाये हैं तो उनको अपने चश्मे के नम्बर में सुधार की दरकार है |
...............बाकि तो दलों के दलदल में राजा-रंक सब नंगे है , सब चंगे हैं ,सब रंगेपुते हैं, इससे ज्यादा क्या कहें !!
Saturday 20 June 2020
बालकनियों में उतरती शामों के किस्से हमेशा रूमानी नहीं होते .....
बंद दरवाजों और बालकनियों में उतरती शामों के किस्से हमेशा रूमानी नहीं होते ...... इनके किरदार अपने वजूद की लड़ाई - लड़ते , समझौते करते करते लम्बी नींद सो जाते हैं !! इनके ख्व़ाब बहुत खूबसूरत होते हैं , मौका मिले कभी आपको तो इनके सोने से पहले उनको जगा के पूछियेगा, खुद से और दुनिया से आपकी भी शिकायतें कम हो जायेंगी !!!!