Saturday 20 June 2020

बालकनियों में उतरती शामों के किस्से हमेशा रूमानी नहीं होते .....


                           

नींद जब नहीं आती तो नहीं आती और जब आती है तो सुबह आती है जब जागना होता है ..... उठने – सोने का वक्त बदलता रहा !! पहले अपने स्कूल की बस निकल जाने का डर जगा देता था फिर बच्चों की स्कूल बस का, उसके बाद आदत बन गयी और चाहने पर भी देर तक सोना नहीं हो पाया |

पिछले तीन महीने में व्यवस्थाएं बदलीं !! बच्चे हॉस्टल से घर आ गये और संजय ने भी घर को दफ्तर बना लिया था ! बदलना केवल मुझे था , मुझे सबको वैसा ही माहौल देना था जैसा उनके कॉलेज –हॉस्टल –ऑफिस में होता है | घर का एक कोना जो नहीं बदला वो थी रसोई .....सारे स्विच बोर्ड चार्जर से लदे रहते , बिस्तरों पर ,सोफे –कुर्सी ,मेज पर लैपटॉप –पावरबैंक ,किताबें .... कपड़े कहीं और सिरहाने पानी की बोतलों का जमावड़ा !! इस बेतरतीबी से झुंझला कर कलह करने से भी कुछ नहीं होना था क्योंकि मोबाइल और कंप्यूटर से गर्दन उठाने का वक्त किसी के पास नहीं था |

नाश्ता क्या बनाऊं ?
बना लो , जो बनाना है !!
पोहे ?
नहीं कुछ और ?
इस और का जवाब ढूँढने का वक्त किसी और के पास नहीं था, वो मेरा धर्म था, मुझे ही निभाना था |
नाश्ते के बर्तन धोना फिर खाने की तैयारी के बीच सीमा के ना आने का मलाल करते करते झाडू –पोंछा....
करती क्या हो सारा दिन ?
ये काम नहीं है क्या  ?
कोई कुछ कहता नहीं, जैसा जचे जब जचे कर लिया करो क्यों परेशान रहती हो ?

संजय की आवाज़ की तल्खी मुझे हर बार ये बात बताने से रोक देती कि परेशानी काम से नहीं है, उस वक्त से थी जिसमें मैं कहीं हूँ ही नहीं ! पत्नी और मां होने के अलावा मेरा कोई वजूद है क्या ? कुछ देर मोबाइल हाथ में ले लो तो संजय की गर्दन ऐसे घूमती है , जैसे मैं कोई गुनाह कर रही हूँ !

क्या देखती रहती हो इसमें ?
व्हाट्सएप्प है , कानपुर वाली बुआ के पोता हुआ है !!
हुआ होगा , हमें क्या ? ये ग्रुप छोड़ दो, बेकार गॉसिप और पोलिटिकल बातें हैं, दिमाग खराब करती हैं |
मैं सिर्फ देखती हूँ , कहती कुछ नहीं !
बेकार टाइम खराब करना है |
तो क्या करूँ ?
पढ़ा करो !
क्या ?
जो पढ़ना चाहो !!

याद आया पढ़ने के लिये पिछले मेले से कुछ किताबें लाई थी | एक रोज उठाईं, कुछ पन्ने पलटे कि संजय कहने लगे कि ये बेकार ऑथर है , सनसनी के लिए लिखता है |

किताब उस दिन से शेल्फ से बाहर नहीं निकली |

तुम घूम आया करो , वजन बढ़ जाएगा !!
ठीक है , शाम को जाउंगी !
शाम को तो बच्चों के स्नैक्स का टाइम होता है ,कैसे जाओगी ?
तो सुबह चली जाउंगी !!
देख लेना ऐसे जाना कि 7 बजे तक लौट आओ, मुझे 8 बजे रिपोर्ट करनी होती है !!
उसके बाद वो सुबह भी आज तक नहीं आयी |

ना घूमने जाना हुआ ,ना पढना ,ना सोना ,ना जागना ......
इस सब का अभ्यास हो गया है मुझे , अब यही जिन्दगी है | मैं नहीं समझ पाती कि 14 दिन के क्वारेंनटीन से या होम आईसोलेशन से लोग डरते क्यों हैं ? ये होम आईसोलेशन तो मैं 28 बरस से जी रही हूँ !!!! चुप्पी का एक मास्क ओढ़े रिश्तों को बचाते, जी रही हूँ |
क्या पहनना है ,क्या बनना है ,क्या लाना है, किससे रिश्ते रखने हैं और किसके साथ कितनी दूरी रखने है सब गाईडलाइन जी ली हैं मैंने |

बच्चों को क्या खुद में शामिल करूं , मैं अब मेरे साथ नहीं रहती !!
तो, ऐसे कब तक चलेगा ?
चलेगा, सबका चल ही रहा है | बच्चों की अपनी दुनिया है, अपनी परेशानियाँ हैं..... उनको और क्या परेशान करना !! सबको अपने हिस्से की चक्की चलानी हैं– अपना पेट भरना है| भाड़ है दुनिया – फूंक मारते जाओ !!

आभा कहती जा रही थी ...... धाराप्रवाह , सांस की फ़िक्र किये बिना !!
फेसबुक पर तुम्हारी तस्वीरें देखकर मुझे लगता था कि तुम अपने परिवार में खुश हो ?
हाँ ,खुश हूँ मना कब किया ?
फिर खुद में नहीं होना क्या है ?
कुछ नहीं बस ज़िंदा रहना है , साँसों के खेल को मेले में बदलना भर है | इसका ख़ुशी या नाखुशी से कोई वास्ता नहीं है !! जो ख़ुशी है तो बस इतनी कि अब दर्द नहीं होता ना किसी से झगड़ने का मन करता है | संजय की कर्कशता और मेरे प्रति उनका दोयम प्रेम मुझमें अब ऊब और गुस्सा भी नहीं भरता !! वो जब  कभी कहता भी है कि तुमको लोगों से तौर तरीके सीखने चाहियें तो लगता है कि इतना दोगला होने से बेहतर है चुप रह जाना , अकेले रह जाना |

आभा कहते कहते चुप हो गयी ....पीछे से आवाज़ आ रही थी “किससे इतनी देर तक बातें कर रही हो ? समय देखो, ये फोन करने का वक्त है क्या ?

आभा ने रिसीवर रख दिया , उसका फोन आना कम हो गया है ! उसका होम आईसोलेशन अंतहीन है , उसके लिए इस जिन्दगी से जूझने के सिवा कोई विकल्प नहीं !! उसके प्रश्नों का मेरे पास समाधान नहीं और मेरे समाधानों को वो अपने सवालों में फिट कर पाए उसके पास उतनी स्पेस नहीं |

ये हर बंद दरवाजे के पीछे की कहानी है .... समन्दर की स्याही से रेत पर लिखी कहानी !! फेसबुकिया तस्वीरों से किसी की तकलीफ , भीतर चल रहे संघर्ष और इन्कलाब की करवटों को जान लेना आसान नहीं | प्रेम का परिंदा उड़ान चाहता है पर हमने उसे दुनियादारी की और कभी अपने कम्फर्ट जोन की सलाखों के पीछे धकेला है |


बंद दरवाजों और बालकनियों में उतरती शामों के किस्से हमेशा रूमानी नहीं होते ...... इनके किरदार अपने वजूद की लड़ाई - लड़ते , समझौते करते करते लम्बी नींद सो जाते हैं !! इनके ख्व़ाब बहुत खूबसूरत होते हैं , मौका मिले कभी आपको तो इनके सोने से पहले उनको जगा के पूछियेगा, खुद से और दुनिया से आपकी भी शिकायतें कम हो जायेंगी  !!!!

12 comments:

  1. Bahut khoob, har ghar ki sacchai utar di hai aapne. Apni maa ko dekha hai isi tarah ki zindagi jeete huye, par unko is baat ka koi dukh bhi nahi. Poori zindagi pati aur bacchon me hi kaat di. Koshish hai ki meri wife aisi zindagi na jiye. Use apne hisab se zindagi jine ki aazadi ho aur uske liye mujhe uski dincharya ka hissa banna padta hai. Kitna safal hoon ye to samay hi bata payega.

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    1. मुझे ख़ुशी है कि आप इसे अपने आसपास ही देख पाए !! सफर सहज हो जाता है अगर पहियों में तालमेल रहे , बहुत दूर जाना होता है !! खुश रहना -रखना जरूरी है !

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    2. Female lockdown endless hai ,Sahi Kaha aapne.par self care is must .बेहतरीन चित्रण

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  2. एक गृहणी का शानदार मार्मिक चित्रण किया है mam👍👍👍👍

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  3. बहुत ही अच्छी तरह आपने एक ग्रहिणी जो पत्नी है माँ है बहु भी है पर खुद नही है। आपको अच्छा comment देने से इसका निवारण नही होगा, ये मेरे घर पर भी है तो मै आपके इस लेख को शेयर करूँगा और ध्यान रखूंगा कुछ बदलाव हो।

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  4. Bahut hi sahi chitran kiya hai Prerna ji.

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  5. आप ने बहुत ही सहज रूप से परिवारिक वास्तविकता का चित्रण किया है पढ़ते पढ़ते ऐसा लगता है कि यही तो समझाना चाह रही थी लेकिन समझा न पाए, आप का धन्यवाद, अभिनन्दन🙏🙏

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  6. Wowwww Di...बहुत अच्छा लिखा है। पर क्या हर घर की, हर शादी शुदा जिंदगी की यही कहानी है, बस अंतर इतना ही है कि आप ये सब महसूस कर पा रहे हो और कई बिना सोचे बस ये सब किए जा रहे हैं।

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  7. Aeroplane mein jab baithte Hain, toh instructions diye jaate hain ki Koi mishappening hone par pehle Apne munh par mash lagayiye phir dooron ki help kariye. Soch Kar dekhiye, toh aapko realise hoga that we have been quite selfish all these years. Humne Ghar mein voh sab Karna shuru Kar diya Jo humein thik laga, Jo humse ho saka. Kabhi bimaar hue, toh kya adhikaar se Ghar valon se Kaha ki aaj main Nahi aap yeh kaam Kar dijiye. Balki jab husband ne kaam Karne ko mana bhi Kara Hoga, toh humne Apni 'DUTY' samajhte hue, bimaari mein bhi, unke office jaane ke baad Khana bana Diya, with the expectation that every one Must be thankful. Phir dheere dheere unhe aapko aise hi dekhne ki aadat ho gayi. Ab jab itne saalon baad voh yehi kehte Hain, toh humein Bura Lagta hai, hum unko apni takleef Ka aaina dikhane ki kooshish karte Hain. Shuru mein toh Kabhi 'ME' time ki khwashish Nahi jatayi, Kabhi self respect ki guhaar Nahi lagai, Kabhi apni health ko importance Nahi di. Tab kyun Nahi miljul Kar kaam Karne Ka Ghar mein ek trend chalaya? Us vaqt Jo time lagta, ya Jo efforts lagte in sab adjustments mein, voh lag jaata. Us se humara aaj toh sunder hota. Apne aap par lagaye ' bechari'ke label ko hatao. Strong bano, har vaqt ke complaint mode se bahar aao. Jiwan jeene ke liye mila hai, kaatne ke liye Nahi. I am not a writer. I've been able to write all this because till some time back, I was also facing the same problem as shared by
    Prerna ji. I would like to give all the credit to my regular saadhna that brought certain situations in front of me that forced me to think with a different perspective. For once, I thought from my children's and my husband's point of view. I was able to keep my expectations aside. I used to complain that they didn't live me enough, but then I realized, that one statement, ' Bana lo Jo banana hai', has so much love and trust in it. Ab main us mein unki aawaz ki talkhi par dhayaan doon,toh is mein Mera hi kasoor hai. Situation ko kis Tarah read Karna hai, maximum number of times, yeh humare haath mein hota hai. Hum log situations par act Karne ke bajaye react karte Hain, as if insaan na hue, chemical Hain hum. Pehle Aapne aap par dhyaan dein agar hum toh, aas paas vaale khud ko bhi badal lete Hain. Have that trust and confidence that everyone around you is there because they all love you. If you have been tolerating them, then they have also been tolerating you. Saath rehne ki, nibhane ki koshish surf hum ladies hi Nahi karte Hain, humare aas paas rehne vala, humse Juda har shaqs karta hai. Bas hum Apne efforts dekhte Hain, saame vale ko ignore karte Hain, aur irony dekho, isi baat ki complaint un se rakhte hain. Ishwar se prarthna hai, ki Jaise mujhe yeh realization hua, vaise hi sabko ho

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