Tuesday 30 November 2021

पापा बगीचे के वो हरे भरे दरख्त थे जिसकी हर डाल पर बचपन पसरा था ....

आज फिर नींद नहीं आयी | अब नींद का नहीं आना ,आकर लौट जाना या आते हुए भी न आने सा महसूस होना सामान्य सी बात हो गई है | मैं अवसाद में नहीं हूँ ,ये यकीन दिलाते रहना और सहज बने रहने के लिए जूझते रहना ,आदत में शुमार हो गया है | नींद से दोस्ती हमेशा से बहुत अच्छी नहीं रही लेकिन साल 2021 ,अप्रेल-मई-जून के महीनों के कोरोना युद्ध ने उसे और बेमना कर दिया |

सच कहूं तो इस सब को लिखने से भागती रही मैं.. नहीं लिखना चाहती थी ,नहीं चाहती थी कि कोई और उस दर्द का सहभागी बने ,नहीं चाहती थी कि वो काली रातें ,स्याह दिन फिर -फिर आँखों के सामने से गुजरें लेकिन छः महीने बीत जाने पर भी वो टीस रह -रह कर उठती है ,जख्म फिर हरे हो जाते हैं | नींद फिर आँखों से दूर हो जाती है | इस कमरे से उस कमरे में , कभी भीतर -कभी बाहर भागते हुए सुबह हो जाती है | रात डराती है , डर से गुजर जाने पर भी डर लगना अजीब है | ये शायद डर नहीं है ,ये मलाल है कि पापा को उनके हिस्से की ऑक्सीजन ,उनके हिस्से की साँसे मैं उनको हजार कोशिशों के बाद भी न दे सकी | 

उनके जाने के बहाने हो सकते हैं लेकिन उनके न होने के बहानों से दिल राजी नहीं होता | सब तर्क -वितर्क ,ज्ञान का हर पन्ना वो खिलौना लगता है जिसे देख कर भी उठाने का मन नहीं करता | 

पापा को उम्मीद नहीं थी कि वो पॉजिटिव आ सकते हैं ,डर जरूर था उनके मन में | जिसका मन सिर्फ उसके बगीचे में लगता हो वो आईसोलेशन में कैसे रहते ? फिर भी उन्होंने कोशिश की , वो फिर भी बिना सहारे मुकाबला करते रहे | खुद चल कर पहला सीटी स्कैन करवाया , खुद चलकर अप्रेल की 23 तारीख को आईसीयू के बिस्तर तक पहुंचे | दिन में उनको वहाँ छोड़ा , रात तक वे घबरा गए | पास के मरीज से फोन करवाया ,सामने बैड पर कोई आखिर साँसे ले रहा था | उनको मोबाईल पसंद नहीं था ,चलाना सीखा नहीं | माँ के बिना रह नहीं सकते थे , बगीचा भी साथ नहीं था | डाक्टर वार्ड में रहने से मना कर रहा था | हम भाई -बहन उन्हें समझा -बुझा के लौट आए | सुबह फिर जिद कर ली ,घर लौटने की | कैसे लौटा लाती ? पापा भर्ती हुए उसके तीसरे दिन छोटे भाई की सांस भारी होने लगी | वो घर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर था ,पापा अस्पताल में | मैं 103 बुखार में, डॉक्टर को रेमेडेसीवर समेत जो चढ़ना था ,चढ़ता .. हाथ में कैनूला लगा रहता .. सुबह पापा के पास भागती , पापा बिटिया को बुलाया दो कि जिद किये रहते थे ! उनको बिठाना ,स्पंज करना ,मालिश करना , खिलाना.. 

वार्ड में किसी को पानी पिलाना ,किसी आंटी को बाथरूम तक ले जाना ,किसी को खिलाना .. सब किया ,सबको  उम्मीद रहती थी कि बिटिया आएगी .. पापा के पास वाले बैड पर एक भाई जिसे तीन दिन तक संभाला ,सामने हाथ जोड़ कर चला गया , कोई अपने घरवालों को पुकारते चले गए  .. प्यार भरे स्पर्शों को प्लास्टिक के बैग में सिमटते देखा मैंने  .. 

दोपहर फिर घर लौटना भाई के लिए सिलेंडरों का इंतजाम करना फिर वापिस पापा के पास लौटना.. रात फिर से घर के आईसी यू में खुद को भर्ती करना , बाल्टी भर दवाओं के डिब्बे .. एक पलंग पर भाई ,एक पर मैं !! रातभर भाई खांसी से सो नहीं पाता था | माँ को कह सुन के सुला देती थी | वे भी सहमी सी हिम्मत दिखाती रहीं | भतीजा सिलेंडर के इंतजाम के लिए रात भर लाईनों में लगा रहता.. सुबह हो जाती !! 

एक रोज अस्पताल के वार्ड के बाहर चर्चा सुनी कि जो ऑक्सीजन लाइन आईसी यू में या रही है उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है | सुनते ही अंदर भागी तो समझ आया कि अपने पेशेंट के लिए घरवाले सिलेंडरों का इंतजाम कर रहे हैं | 

जिंदगी में पहली बार खुद को इतना निराश ,इतना हताश पाया | सिलेंडर कहाँ से लाऊँ ? दोस्तों -शुभचिंतकों की मदद से 21 सिलेंडर इकट्ठे किये 15 दिनों में , भाई और पापा दोनों को उसकी जरूरत थी .. सिलेंडर भरवाना हर रात संजीवनी लाने से कम न था | इस बीच पापा को ब्रेन स्ट्रोक आ गया | एक हिस्सा काम नहीं कर रहा था ,नजर आना बंद हो गया | आवाज भी जाने लगी | वे पेन मांगते लिखते तो  घर में सबका हालचाल पूछते | कहते कि घर ले चले .. एक रोज उन्होंने लिखा " बिटिया खूब खुश रहना ,मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है | सबका ध्यान रखना | "

मैं नहीं जानती ,कैसे खुद को संभाला .. 7  तारीख को पापा को घर ले आयी कि अब जो हो सो हो कम से कम माँ के आँखों के सामने ,अपने -घर -बगीचे से रुखसत हों !! पापा मास्क खींच देते थे ,सो हाथ बांधना पड़ता था | आखिरी दिन उन्होनें मुझसे हाथ खोलने जिद की ,मैंने मना किया .. उनका देखना ऐसा था जैसे कह रहे हों कब तक बाँधेगी.. 

शाम को देह के बंध से वो मुक्त हो गए ! कोई रो भी न सका .. भाई के सामने से उनकी देह अंतिम यात्रा पर थी वो कंधा न दे सका | 

इधर पापा का जाना हुआ उधर भाई की साँसे जवाब देने लगीं | शाम 5 बजे खुद ही गाड़ी में सिलेंडर समेत भाई -भतीजे के साथ शहर के पाँच अस्पतालों के दरवाजे खटखटाए .. रात 11 बजे जाकर जगह मिली !

भाई जीत गया | 15 दिन बाद घर लौटा फिर महीने भर बाद पापा के फूल मां गंगा की गोद में रख आया | पापा दो महीने अपने ही बगीचे के ,अपने ही सँवारे आसापाला के आलिंगन में रहे |

इस सब के बीच मैं कब ठीक हो गई ,पता नहीं चला ! कब मुझे कोरोना हुआ ,कैसे कब गया, नहीं पता | 

मैं चाहती थी कि मुझे ये सब याद न रहे , स्लेट -पट्टी पर लिखे की तरह इसे भी सूखा दूँ .. नहीं सूख रहा है | एक -एक कर कितने ही चेहरे ,कितनी बातें , कितने मलाल दिमाग को सुन्न किये जाते हैं | 

आज फिर सुबह हो गयी ! एक दिसंबर 2021 .. अब जब फिर तीसरी लहर की आशंका उठने लगी है ,दिल फिर से घबराने लगा है ! कहते हैं ,ब्रह्म मुहूर्त में ईश्वर जल्दी सुनते हैं .. मैंने आज सब लिख दिया है ,मैं चाहती हूँ ईश्वर इसे पढ़ें ,हमसे जो भी गलत हुआ हुआ हो उसे क्षमा करें .. कुछ न दें बस अपनों को आसपास रहने दें ,उनकी साँसों पर उनका हक रहने दें !

आप सब भी अपना ध्यान रखना ,अपनों के साथ रहना .. पापा बगीचे के वो हरे भरे दरख्त थे जिसकी हर डाल पर बचपन पसरा था ! माँ देहरी हैं , बस वही हैं जो हिम्मत बँधायें हैं कि एक दिन सब अच्छा होगा .. आप भी दुआ करें कि सब के साथ ,सबके पास सब अच्छा रहे !

चलते हैं ,फिर मिलेंगे ! निराश फिर भी मत होना ,जीवन है सब चलता रहेगा .. 

2 comments:

  1. Samajh sakta hu kis dour se aap guzri ho .Bhagwaan aapko aage badhne ke taqat de.

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  2. Didi.. bahut takleef ho rahi thi padte hue.. apka dard to mehsoos nahi kar sakti .. par samajh sakti hu.. ap jaante hai ki meine bhi apni zindagi ki sabse beshkeemti rishta kho diya...ishwar hum sab ko swastha rakhe aur humaare parivaro ki raksha kare..

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