Monday 16 August 2021

मैं न कर सकी पर आप जो विद्रोह कर सकते हैं, जरूर कीजिएगा | इश्क की सतरंगी दुनिया में लौट आने की उम्मीद मत छोड़िएगा ....

 

बहुत बार मुझे ऐसा लगता था

अगर विद्रोह करने पर मजबूर कर दी जाऊँ

तो मैं बहुत जोर से चीख सकती हूँ

दीवार को भड़भड़ा के गिरा सकती हूँ

आसमान को पीछे धकेल सकती हूँ

और

अततः उन सब चीजों को बदल सकती हूँ जो मुझे असहज कर रही हैं |

पर ये सब निहायत बचकाना सिद्ध हुआ

विद्रोह की हर स्थिति में

मैं बच निकली

कभी ये कहते हुए कि मेरे ही लड़ने से क्या होगा

कभी ये मान कि मुझसे पहले भी कई चले गए

जो सोचते थे

आसमान में सुराख कर देंगे |

 

हाई स्कूल में आयी , तीसरी भाषा के रूप में उर्दू पढ़ने का ऐलान कर दिया |

घर वालों ने विरोध नहीं किया लेकिन जब उर्दू की क्लास में जाकर बैठी

टीचर के साथ साथ क्लास की बाकी लड़कियों ने भी समझा दिया कि ये उनके लिए भी अजीब है |

मैंने संस्कृत पढ़ी ,बेमन से |

मन उर्दू की किताब में था

 

ये विद्रोह भी वहीं दब गया |

 

मेरी सबसे पक्की सहेली फिरोजा दसवीं में ही पाकिस्तान के किसी लड़के से ब्याह दी गयी|

फिरोजा चली गयी | पक्की सहेलियों का विद्रोह कच्चा साबित हो गया |

 

ईद की सिवईयों का स्वाद लेते , शरारा –कुर्ते और चुन्नी को संभालते

गज़लों वाली रातों और मुशायरों के साये में बचपन बीत गया |

उस दौर को रोक लेने की जिद भी बहुत की

पर विद्रोह तब भी नहीं कर सकी |

 

वो दौर आया जब दिल बल्ले पर धड़कने लगा !

पाकिस्तान की टीम जयपुर आयी थी

सनक की इंतिहा ये कि इमरान के ऑटोग्राफ के लिए कॉरीडोर पार कर उसे सीढ़ियों पर ही घेर लिया |

तब वो सिर्फ इमरान था | इमरान खान नहीं !!!

हॉस्टल की दीवार पर चस्पा दसियों पोस्टर वाला हीरो !!

एक दिन कर्फ्यू लग गया | सब हिन्दू –मुसलमान हो गए |

भीतर का इंसान , विद्रोह के स्वर में चिल्लाया

बंद करो ये खेल !!

सुनो सब एक से नहीं हैं

आवाज मेरी बस मैंने ही सुनी

पर विद्रोह मैं तब भी नहीं कर सकी |

 

लोगों ने कहा तुम मासूम हो, तुम सच नहीं जानती |

न जानने,

न बता पाने,

न सुने जाने का आक्रोश समझते हैं ना ?

मैं तब भी कुछ बदल नहीं सकी |

मैं उन सबको तब भी कुछ समझा न सकी |

विद्रोह तब भी नहीं कर सकी |

 

फिर एक रोज इंदिरा का खून बहा....

गोधरा हुआ , गुजरात हुआ.........दिल खूब रोया !

वो संभलता कि राजीव गए ,सफ़दर झुंड में घेर के मारे गए

फिर ये दर्द आदत में शुमार हो गया..

फिर क्या आईसीस और क्या RSS

विद्रोह तो मैं तब भी नहीं कर सकी |

 

सच तो ये है

मैंने ही इश्क में तर

खूबसूरत नज़्म सी दुनिया की तमन्ना की थी

ये और बात है कि

लहू में तरबतर दुनिया मुझे हासिल हुई |

ये जान समझ लिया है मैंने

विद्रोह मैं अब भी नहीं कर सकी |

 

अब कुछ नहीं सूझता मुझे

बस एक खामोश उम्मीद बाकी है

कोई दिन ऐसा आएगा जब सब एक दूसरे को देख बाहें फैलाएंगे

मुस्कुरा कर कहेंगे कि तुम सब मेरे अज़ीज़ हो !

 

दिल का एक हिस्सा कहीं और बस रहा है,एक हिंदुस्तान में धड़क रहा है |

मैं खुद को दुनिया के हर हिस्से में , उसकी बनायी हर शह में जीती हूँ |

हर किसी के दर्द में रो लेती हूँ

हर किसी की मुस्कुराहट पर मर जाती हूँ

गीता में जब कृष्ण कहते हैं कि आत्मा लंबे सफर पर है

ऐसा है तो मैं कहती हूँ कि फिर हम उसे वीज़ा देने वाले हैं कौन ?

ये नियम, ये शर्तें ,ये पाबंदियाँ बस साँसों की गुलाम हैं....

कितना रोक लीजिएगा !

देह के रंग-ईमान ,उस पर कानून बनाने

बेकार की वजहों से

छोटी सी जिंदगी में जहर भर देने का ये सिलसिला थम जाना चाहिए !!

मैं न कर सकी पर आप जो विद्रोह कर सकते हैं, जरूर कीजिएगा |

इश्क की सतरंगी दुनिया में लौट आने की उम्मीद मत छोड़िएगा !

हम कहीं न कहीं ,कभी न कभी उसे जरूर पा लेंगे !

हम उस पार रोशनी की दुनिया में फिर से मिलेंगे

उम्मीद मत हारना !!

 

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