Sunday 4 December 2016

जाड़ों की शाम है

जाड़ों की शाम है
धूप का सिमटना
दिन का सिकुड़ना
रात का फैलना
अदरखी चाय में
तीखी हवा
तुम्हारी बातों
गुलाबी शरारतों का
घुलना और जम जाना
नम होना
आंखों के कोरों का
कोई जाड़ा याद आना
तुम्हारी वार्डरोब हो जाना
बर्फ संग
तुम्हारा खेलना
मुझे लंबे से खत भेजना
अब सब
जाड़ो की शाम है
वही एक मौसम
वही एल्पस
वही ठंड
इस छोर से उस छोर तक
बची रह गयी
केवल जाडों की शाम
वही एक शाम....



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