कभी कभी शिकायतों का सिम सिम पिटारा खुल जाता है और वक्त के आहते में लम्हे इधर उधर बिखर जाते हैं। उसकी शिकायतें खुद से इस कदर हैं कि गाहे बगाहे छम्म से फ़ैल जाती हैं और उसको ही परेशान करती रहती हैं , मुश्किल ये है वो सुनता भी नहीं और सुनाये बिना रहता भी नहीं।
हम जिंदगी के कितने करीब से गुज़र जाते हैं और जिंदगी को छू भी नहीं पाते। शिकायतों में वक्त इतना जाया हो जाता है कि लौटते वक्त मलाल के सिवा जिस्म पर कुछ नहीं होता। ताउम्र खुद के लिए सहूलियतें जुटाने में इस कदर मसरूफ रहते हैं कि रूह जिस्म से कब फना हो गई होती है इसका पता ही नहीं चलता।
आक्रोश स्वभाविक होते हैं पर एक से जुर्म के लिए खुद को पारितोषिक और दूसरे के लिए सजा का आयोजन भी अजीब सच है। आक्रोश खुद को तर्क से परे और दूसरे को कटघरे में खड़ा कर देता है। हम सब अपने कंधों पर अपने सच का सलीब ले कर चलते हैं और सब के पास अपने सही होने की वजह है। वाजिब है या गैरवाजिब इसका फैसला जब हो सकता है जब वो एक दूसरे की जिंदगी के फैसलों से परे हो। नैतिकता के धरातल पर सब नंगे हैं। सबके जिस्म से उह्ह्ह् आती है। लिबास को जिस्म समझने वाले और रवायतों को गिरवी रख रूह का मोलभाव करने वाले दिल के दलाल गली के हर मोड़ पर मिल जाते हैं।
मैं उसकी शिकायतों से पार उससे हार जाना चाहती हूँ। हर तर्क से परे उसको उस झील सा ठहरा और हजारों सितारों को अपने सीने पर लिए बेसाख्ता खिलखिलाते ,उड़ते देखना चाहती हूँ। ये वक्त का दरिया है जो हमारे बीच बह रहा है। क्या फर्क पड़ेगा ये दरिया मनो सूख भी जाए ............तो भी हर बरसात पानी अब यहीं से हो कर गुज़रेगा और जब भी गुज़रेगा हम फिर एक दूसरे के सामने होंगे।
कुछ रिश्ते न काल के , न सवाल के मोहताज़ होते है। उनकी उम्र भी नहीं होती ,जिसकी होती है वो रिश्ते नहीं होते बस मुलाकात होती है । सो चुकना तो है ही है आज नहीं तो कल ये हिसाब बराबर होगा पर जितना होगा उतना मेरा दावा वक्त पर मजबूत होता जाएगा।
वो उलझा हुआ है ये मैं जानती हूँ लेकिन ये भी सच है कि बिना सच को स्वीकार किये वो एक कदम आगे नहीं बढ़ पाएगा। शिकायतों से परे संवाद की दुनिया है । इस दुनिया में जाओ और सुनो कि पीड़ा की हरेक की परिभाषा अलग अलग है। कुछ देर कंधे पर हाथ रखो और सुनो..........दर्द पिघल जाएगा और अहम की दीवार टूटेगी तो ये सूखी सी लगने वाली घास फिर से हरी होने लगेगी ! मौसम सब गुज़रते हैं ,ये भी गुजरेगा !
हम जिंदगी के कितने करीब से गुज़र जाते हैं और जिंदगी को छू भी नहीं पाते। शिकायतों में वक्त इतना जाया हो जाता है कि लौटते वक्त मलाल के सिवा जिस्म पर कुछ नहीं होता। ताउम्र खुद के लिए सहूलियतें जुटाने में इस कदर मसरूफ रहते हैं कि रूह जिस्म से कब फना हो गई होती है इसका पता ही नहीं चलता।
आक्रोश स्वभाविक होते हैं पर एक से जुर्म के लिए खुद को पारितोषिक और दूसरे के लिए सजा का आयोजन भी अजीब सच है। आक्रोश खुद को तर्क से परे और दूसरे को कटघरे में खड़ा कर देता है। हम सब अपने कंधों पर अपने सच का सलीब ले कर चलते हैं और सब के पास अपने सही होने की वजह है। वाजिब है या गैरवाजिब इसका फैसला जब हो सकता है जब वो एक दूसरे की जिंदगी के फैसलों से परे हो। नैतिकता के धरातल पर सब नंगे हैं। सबके जिस्म से उह्ह्ह् आती है। लिबास को जिस्म समझने वाले और रवायतों को गिरवी रख रूह का मोलभाव करने वाले दिल के दलाल गली के हर मोड़ पर मिल जाते हैं।
मैं उसकी शिकायतों से पार उससे हार जाना चाहती हूँ। हर तर्क से परे उसको उस झील सा ठहरा और हजारों सितारों को अपने सीने पर लिए बेसाख्ता खिलखिलाते ,उड़ते देखना चाहती हूँ। ये वक्त का दरिया है जो हमारे बीच बह रहा है। क्या फर्क पड़ेगा ये दरिया मनो सूख भी जाए ............तो भी हर बरसात पानी अब यहीं से हो कर गुज़रेगा और जब भी गुज़रेगा हम फिर एक दूसरे के सामने होंगे।
कुछ रिश्ते न काल के , न सवाल के मोहताज़ होते है। उनकी उम्र भी नहीं होती ,जिसकी होती है वो रिश्ते नहीं होते बस मुलाकात होती है । सो चुकना तो है ही है आज नहीं तो कल ये हिसाब बराबर होगा पर जितना होगा उतना मेरा दावा वक्त पर मजबूत होता जाएगा।
वो उलझा हुआ है ये मैं जानती हूँ लेकिन ये भी सच है कि बिना सच को स्वीकार किये वो एक कदम आगे नहीं बढ़ पाएगा। शिकायतों से परे संवाद की दुनिया है । इस दुनिया में जाओ और सुनो कि पीड़ा की हरेक की परिभाषा अलग अलग है। कुछ देर कंधे पर हाथ रखो और सुनो..........दर्द पिघल जाएगा और अहम की दीवार टूटेगी तो ये सूखी सी लगने वाली घास फिर से हरी होने लगेगी ! मौसम सब गुज़रते हैं ,ये भी गुजरेगा !
हर एक को उसका आईना प्यारा ही बताएगा पर कभी उसके आईने से उसको भी देखो शायद आराम आ जाए .......वैसे भी तुम को अपने चेहरे पर ज्यादा ही गुमान है भले गुस्से में नाक पकौड़े सी हो जाए और गाल बंगाल की खाड़ी हो रहे हों ......... तो मुस्कुराओ उठो और शिकायतों को परे रख आसमान को अपने आलिंगन में समेट लो ! मौसम खुशगवार है !
You are great. In you resides a person who wants to know what life is. you know we are not searching the God, it is the God who is searching us---- to attain the purpose for which this Creation has been created by HIM. HE selects a few. And God has selected you for this job.Your expressions are so touching.No words.---Sudhir Sharma
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