Wednesday 6 July 2016

काश कि मोदी भी अरविन्द के साथ खड़े होते .........

सत्ता और सट्टा बेईमानी सिखा ही देते हैं। नीयत में खोट भले न हो राजनीति के दांव खेलने में चालबाज बन ही जाते हैं। हर कोई ईमानदारी का दम भरता है और बेईमान बन जाता है। ईमानदारों की फ़ौज बेईमानों से उलझते उलझते कब दांवपेच सीख जाती है पता ही नहीं चलता।

अरविन्द अकेले क्या कर लेंगे ? मोदी भी अकेले क्या कर लेंगे ? निर्णय दोनों अकेले नहीं ले सकते ,ले भी लें तो उस निर्णय को लागू कराने के लिए जिन लोगों का सहारा लेना पड़ेगा , वो वही होंगे जो उन तक वही बात पहुंचाएंगे जो उनके मन मुताबिक़ हो। सत्ता के चौकीदार भेस धरे घूमते हैं। चमचे और चाटुकार अंततः मोतियों का हार ले जाने में  कामयाब हो जाते हैं और दूरगामी परिणाम के लिए नेतृत्व को छोड़ देते हैं।

मोदी भी उसी छद्म दुनिया में चले गए हैं और उसके ग्लैमर से इस कदर अभिभूत हैं कि वास्तविकता को अब चाह कर भी जी नहीं सकेंगे। सत्ता कुछ मायनों में बेहद क्रूर होती है। 

जब तक नेतृत्व घेराबंदी से बाहर है तभी तक ताजी हवा की गुंजाइश है , बंद कमरों में सिर्फ साजिशें रची जाती हैं। सत्ता का यही खेला जबर्दस्त है , पद और शक्ति पर एकाधिकार की भावना इस कदर प्रबल है कि आलोचना को विरोध मान कर दरवाजे -खिड़कियां बंद कर ली जाती हैं। नतीजा पूरा समाज और उसकी असीमित अपेक्षाएं भुगतती हैं। 

 देश को मोदी और अरविन्द से असीमित अपेक्षाएं हैं।  जनमानस ने दोनों को सर्वशक्तिमान मान लिया है। दुखद ये है कि देश के दो सर्वशक्तिमान साथ होने की जगह हर बार आमने सामने आ खड़े होते हैं। यही दुर्भाग्य है जो देश का पीछा नहीं छोड़ रहा। 

उत्तराखंड भीषण त्रासदी से गुज़र रहा है ,बुंदेलखंड सूखे से परेशान  , बस्तर गरीबी में कैद है.  हम अठ्ठन्नी चवन्नी की लड़ाई लड़ रहे हैं। दाल है नहीं गाय पर बवाल करते हैं। नौकरी नहीं पर राष्ट्रवाद कभी भारतमाता पर बखेड़ा करते हैं ......... 

अरविन्द आंदोलन की उपज हैं ,उनके साथ आंदोलन की शक्ति थी जिसे मोदी दिल्ली के हित के लिए काम में ले सकते थे और देश में सकारात्मक राजनैतिक ऊर्जा का संचार कर सकते थे लेकिन हुआ इसके विपरीत। 

काश कि मोदी भी अरविन्द के साथ खड़े होते और विकास के उस सपने को सच करते जिसका कि वो दावा करते हैं। 

किसी दुर्घटना से कोई नहीं सीखता ! शहादत भी खेल और सियासत भी खेल है।दोनों की मैयत हमारी नियति है।

तो राजनीति -राजनीति खेलते रहिये ,तकाजे करते रहिये और इज़ इक्वल टू की थ्योरी पर चलते हुए देश के प्रति अपनी छद्म प्रतिबद्धता का बेशर्म प्रदर्शन करते रहिये। सब राम हवाले और राम तम्बू के हवाले हैं। 

जय राम जी की। चलते हैं !

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