Sunday 12 June 2016

राजनीति की रसोई में पकाने आये हैं तो चमचे और लोटों की जगह बना लीजिए !

राजनीति के रसोईघर में दाखिल होने से पहले कवच -कुंडल धारण करके आईये। पकाने आये हैं तो चमचे और लोटों की जगह बना लीजिए , दाल गलने से लेकर परोसने तक वही काम आएंगे । अगर जीमने आये हैं तो अपनी थाली -कटोरा लेकर पंगत में बैठ जाइये , "जैसे ही बनेगा परोसा जाएगा " पर भरोसा रखिये और इंतज़ार कीजिये।

इस रसोईघर में कुछ बर्तन हैं जो बरसों से काम नहीं आये ,शायद दादी दहेज़ में लाई हों या दादा जी जिद करके ले आये हों , बहरहाल वो ऊपर वाली दुछत्ती में पड़े हैं ,इस इंतज़ार में कि कभी जरूरत हुई तो निकालेंगे। मुझ याद ही नहीं कि वहां से बर्तन कभी निकले भी थे ,हाँ ये जरूर हुआ कि बाऊजी सबको बताते रहे कि उनके पास अंग्रेजों के जमाने का कलसा और मुगलों के जमाने का लोटा पड़ा है। बाज़ार में कोई खरीददार भी नहीं ,कबाड़ी को बेचेंगे तो मुहल्ला कहेगा कि पुरखों की निशानी बेच दी , सो सब जस के तस है।

निष्ठाओं के अचार की कई बरनियां भी एक आले में सजी हैं। ये सब मौसम आने पर सस्ते में मिल जाने वाली सब्जियां हैं तो बारहों महीने काम आती हैं। निष्ठा का अचार चटपटा और पाचक होता है। सब्जी न हो तो इसके साथ किसी गर्मागर्म बवाल को परोसा जा सकता है।

रसोई पार के कोने में एक चक्की है जो मुद्दों को पीस मालपुए का घोल बनाने के काम आती है। चक्की की घरघराहट से सात घर दूर तक पता चल जाता है कि आज दिन की रसोई में क्या पकने वाला है। सब अलर्ट हो जाते हैं और कानाफूसी शुरू हो जाती है। माहौल में उत्तेजना बनाए रखने के लिए ये दो पाट की मशीन बड़े काम आती है। इसे चलाता कोई और, और इसमें पिसता कोई और है।

मीडिया का दूध आंच पर चढ़ा है और बहने के इंतज़ार में है पर इस रसोई काका की पैनी नज़र से न दूध उबल के गिरता है न आंच ही मंदी होती है। ये दूध जितना उबलेगा इस पर मलाई उतनी गाढ़ी आएगी और रसोई काका  ही जानते हैं कि उस मलाई का हकदार कौन होगा सो आपको ये कभी पता नहीं चलेगा कि जो दूध आप चढ़ा के आये थे उसकी मलाई कौन खा गया।

राजनीति की रसोई सब्र का इम्तिहान भी लेती है। छुरी में धार न हो तो फांक नहीं मिलती और गलती से खुद को लग जाए तो धार रुकती नहीं सो सब्र से काम लें। थाली में बैंगन लुढ़क रहे हों  या तड़का लगाना हो या चार बर्तनों की टकराहट को सम्भालना हो ,आपको धीरज रखना ही होगा वरना रायता फैलते देर नहीं होगी और मेहमान रसोई की अव्यवस्था के लिए सब रसोई काका की जगह जजमान को लानते भेजेंगे।
यहाँ सब कुछ पकता है , छिलके से लेकर गूदे तक कुछ भी ! कचरे के डिब्बे में जो कुछ दिख रहा है वह सब उनकी किस्मत का लेखा है

सो देवियों -सज्जनों ! राजनीति की रसोई में सम्भल के पांव धरियेगा ! पांव के नीचे भी नज़र रखिएगा कि कोई टूटे गिलास का कांच ही न आ जाए या मक्खन पर फिसल जाएँ। यहाँ जो कुछ भी पक रहा है वो सबको बराबर पचे जरूरी नहीं सो बाजार से आदर्शों की भूसी खाते रहिये और यहाँ का लुत्फ़ उठते रहिये।

रसोई काका आपके अन्नदाता हैं उन्हें प्रणाम करके बाहर आईयेगा वरना अगली बार भूख लगने पर खाना तो क्या दाना भी नसीब नहीं होगा !

नमस्कार ,चलते हैं ! हाँ ! जानते हैं ,भूख पर जोर किसी का नहीं है ........... 

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