सफ़र पर निकली हूँ तो अब लौट जाने का मन नहीं है ......... यायावरी रास आने लगी है। जिद ने जद को हरा दिया है ! किसी ने पूछा कहाँ पहुंचना है ? मैंने पूछा , आप कहाँ पहुंचे ? कहाँ से चले थे ........ किसी सिरफिरे के पास ही मेरे सवालों के जवाब होते हैं ! मज़ेदार है , सब सफर पर हैं पर सब इमारतों को अपनी जागीर समझ के इंचटेपिया हो रहे हैं। यहाँ से यहाँ तक तेरा और वहां से वहां तक मेरा ! किसको कब क्या हासिल हुआ ये सिर्फ बायो में लिखा है और बायो की हकीकत से जिंदगी का असल दूर है !
उसके साथ मेरा रिश्ता यायावरी का है ........एक शाम उसने भी पूछा " तुम ठहर जाओ ,थकती नहीं हो क्या ? " मैं हंस पडी ......... ठहरने के लिए अब समय नहीं है , मैं जल्दी में हूँ !! वो पहाड़ देख रहे हो ना ,उसके पार मुझे जाना है ........
तुम पागल हो , वो बादल हैं !
बादल तुम्हारे लिए हैं , मेरे लिए उनके पार एक एक दुनिया है जो धुआं धुआं ,सीली सीली , तैरती हुई , हर कुछ से परे, बरसने को तैयार है !
ये बातें हकीकत से परे हैं ......... वो ऐसे कहता है ,जैसे मैं सुन ही रही हूँ और कहते कहते वो भी मेरा हाथ थामे बादलों के पार चल देता है।
हकीकत के किस्से बादलों की स्याही में घुलने लगे हैं। ये इश्क़ का बादल है ,खामोशी से आया है और जिंदगी में हज़ार रंग घोले जा रहा है। झील में तैरती सैंकड़ों रोशनियाँ मेरी दहलीज़ पर ला सजाई हैं उसने ....... जब इश्क़ में होते हैं तो उसके पार कुछ नहीं होता और इस पार हम नहीं होते। बैंच पर बैठे डूबते सूरज को देखते हुए हम अपने भीतर रोशनी का दरिया जमा कर रहे हैं , दरिया के इस छोर पर वो और इस छोर मैं ........ !
आवारगी का ये सम्मोहन उसके इर्दगिर्द होने के एहसास से और बढ़ चला है।
"सफर अकेले करना चाहिए " मैं कहती हूँ।
यानि मैं लौट जाऊं ? वो पूछता है।
तुम आये ही कब जो लौट जाओगे ?
उलझा दिया तुमने ,चलो उलझा ही रहने दो ! सुलझने से क्या पा लिया अब उलझे रहने में मज़ा आने लगा है ! तुम अकेली सफर पर रहो ,मैं बस तुम्हारे साथ रहूंगा !
तो मैं जीती ......... मेरी यायावरी जीती ! आवारा लम्हों के सफर में जिंदगी जीती है !
चलते रहिये आप भी , सफर में रहेंगे तो मुगालतों से बचे रहेंगे। दुनिया में किसी को न बदल सकते हैं ,न सिखा -पढ़ा सकते हैं ! आप काहे जी जला रहे हैं ......... भीतर के सफर को बाहर के सफर से अलग कर लें और यायावरी का मज़ा लें !
चलते हैं !
उसके साथ मेरा रिश्ता यायावरी का है ........एक शाम उसने भी पूछा " तुम ठहर जाओ ,थकती नहीं हो क्या ? " मैं हंस पडी ......... ठहरने के लिए अब समय नहीं है , मैं जल्दी में हूँ !! वो पहाड़ देख रहे हो ना ,उसके पार मुझे जाना है ........
तुम पागल हो , वो बादल हैं !
बादल तुम्हारे लिए हैं , मेरे लिए उनके पार एक एक दुनिया है जो धुआं धुआं ,सीली सीली , तैरती हुई , हर कुछ से परे, बरसने को तैयार है !
ये बातें हकीकत से परे हैं ......... वो ऐसे कहता है ,जैसे मैं सुन ही रही हूँ और कहते कहते वो भी मेरा हाथ थामे बादलों के पार चल देता है।
हकीकत के किस्से बादलों की स्याही में घुलने लगे हैं। ये इश्क़ का बादल है ,खामोशी से आया है और जिंदगी में हज़ार रंग घोले जा रहा है। झील में तैरती सैंकड़ों रोशनियाँ मेरी दहलीज़ पर ला सजाई हैं उसने ....... जब इश्क़ में होते हैं तो उसके पार कुछ नहीं होता और इस पार हम नहीं होते। बैंच पर बैठे डूबते सूरज को देखते हुए हम अपने भीतर रोशनी का दरिया जमा कर रहे हैं , दरिया के इस छोर पर वो और इस छोर मैं ........ !
आवारगी का ये सम्मोहन उसके इर्दगिर्द होने के एहसास से और बढ़ चला है।
"सफर अकेले करना चाहिए " मैं कहती हूँ।
यानि मैं लौट जाऊं ? वो पूछता है।
तुम आये ही कब जो लौट जाओगे ?
उलझा दिया तुमने ,चलो उलझा ही रहने दो ! सुलझने से क्या पा लिया अब उलझे रहने में मज़ा आने लगा है ! तुम अकेली सफर पर रहो ,मैं बस तुम्हारे साथ रहूंगा !
तो मैं जीती ......... मेरी यायावरी जीती ! आवारा लम्हों के सफर में जिंदगी जीती है !
चलते रहिये आप भी , सफर में रहेंगे तो मुगालतों से बचे रहेंगे। दुनिया में किसी को न बदल सकते हैं ,न सिखा -पढ़ा सकते हैं ! आप काहे जी जला रहे हैं ......... भीतर के सफर को बाहर के सफर से अलग कर लें और यायावरी का मज़ा लें !
चलते हैं !
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