Thursday 12 May 2016

रिश्ते फ़ास्ट फ़ूड नहीं होते ........

तुम किसी रोज़ "मैं " हो कर मुझे देखो ......
उससे क्या हो जायेगा ?
देखो न कभी ,फिर पूछना !
तुम हो जाना मुश्किल है मेरे लिए ! कहाँ से शुरू करूंगा ,नहीं समझ आएगा !
शुरू ऐसे करना कि मान लेना कि मैं मेरे साथ नहीं हूँ तुम्हारे साथ हूँ और अकेली भी हूँ !
उफ्फ्फ ! जिंदगी को जलेबी बना के जीती हो तुम !
जलेबी सी जिंदगी   ......... आह्ह्ह ! क्या ख्याल है और इस जलेबी की चाशनी तुम हो !

वो किसी एक सिरे को पकड़ कर मुझ तक पहुंचने की राह बनाता है और खुद ही उलझ जाता है। रिश्तों का मकड़जाल होता ही ऐसा है , कोई कभी कहीं पहुंचा ही नहीं ! सब भरम में जीते हैं ,सफर के -मंजिल के -साथ के......... ये मुगालते हैं ! सबने पाले हैं ,सब छले जाते हैं और सब फिर भी जमे रहने के लिए जमे रहते हैं।

किसी शाम पहाड़ी पर बैठे -बैठे उसने मेरे आँचल से अपना मुहं ढांप लिया और कहने लगा कि बस अब इसके बाद समय को रोक लो ! सूरज को डूबने से रोकती या अपना आँचल सरका लेती............

जब मन का हो तो समय रेत सा फिसलता है और ना हो तो तन तपती बालू में  धंसा जाता है। हवाओं में उलझते बालों ने कोई नज़्म लिख डाली है। ये वक़्त किसी सूरज का पाबंद हो सकता है पर मन का पंछी उड़ने के लिए किस घड़ी को देखता है। वो बस उड़ जाता है ,समंदर के पार कोई है ........... जो कहता है तुम होतीं तो ऐसा होता,तुम होतीं तो वैसा होता  .......... तुम कहाँ नहीं हो ,कब नहीं हो और मैं भी कब तुम्हारे साथ नहीं हूँ ! ज़रा हाथ भर बढ़ाओ और महसूस करो मुझे !

रिश्ते फ़ास्ट फ़ूड नहीं होते ,ये इश्क़ की इंस्टेंट डिलीवरी लेने वाले , कूपनों और स्कीम के मोहताज नहीं समझ सकते !
किसी पगडण्डी पर हाथ थामे खामोश सिलसिले को जीना फूलों के उस शज़र जैसा है जो आज भी उस झील किनारे मुस्कुरा रहा है ! हम आज भी वही हैं और कहीं नहीं हैं !

चलते रहना और मुस्कुराते रहना आप भी ,कोई है जो आपसे हौसला मांग रहा है और दे रहा है तो इन पलों को संजो के रखिये ! काम आएंगे !






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