अकस्मात ही तुम मिल गए ...... कुछ दिन पहले मिल जाते ...ना ,कुछ साल साल पहले ,अरे कुछ उससे भी पहले........ पर तुम नहीं मिले ! तुम को तब मिलना ही नहीं था ! वक्त भी मजिस्ट्रेट है मनो ,वक्त ही क्या हर लम्हा जज की कुर्सी पर बैठा है। तुम लम्हों का सबसे नायाब तोहफा हो जो जिंदगी की किताब के सबसे दिलचस्प मोड़ पर साथ चलने को हो !!
मैं तुमको उन लम्हों से चुरा लाई हूँ या तुमने मुझे ढूंढ निकाला है !! हहहहा ..... ये रोज की लड़ाई है और जीतता कोई नहीं ! हम दोनों ही हारना चाहते हैं ! ये वक़्त और चाँद से दूरी कुछ नहीं है। सांसों की लय पर सफर तय किया जा सकता है। मीलों चला जा सकता है और बरसों तक निभाया जा सकता है। जो कुछ हमने पाया ,जो कुछ हमने जिया , वो महक रहा है मेरे चारों ओर।
तुम बात करते करते कहीं गुम जाते हो और मैं सुनते- सुनते कहीं और निकल जाती हूँ। हमारे पास इतनी कहानियां हैं ,इतने फ़साने हैं कि जमाने बीत जाएंगे खत्म होने में पर वो किस्से खत्म नहीं होंगे। चलो छोड़ो..... हम अक्सर एक दूसरे को कहते हैं और फिर से उसी किसी सिरे को पकड़ कर उस सिलसिले को दफन करने लगते हैं। ये साथ का रोना ,साथ का हंसना...... अच्छा लगता है !
मुस्कुराहटें बिखर रही हैं ! चेहरे पर तैरते सुकून और तुम्हारी ख्वाहिशों की दलीलें मेरे आसपास रुमानियत का जंगल उगा रही है।
कौन इतनी फ़िक्र करता है कि चाँद को उदास नज़र से ना देखा जाये या उदास किसी भी ग़ज़ल और किसी भी चुभने वाले लम्हों को जमींदोज़ कर मुझसे दूर कर दिया जाए । अब जिंदगी की टाइम लाइन को मैंने तुम्हारे हवाले कर दिया है ,तुम जो चाहे रखो ,जिसे चाहे रखो. ....... ये पासवर्ड मुसीबतों का फेरा है ! जो घर में ताला नहीं लगाता उसके लिए ये सब सम्भालना भी बेकार है........ बस मैं और मेरा सुकून ,मेरी आवारगी ....... मेरे साथ चल ! सब बवाल से दूर , बस खामोश हम -तुम .........
तुम्हारी आवाज़ मेरे आँचल को सितारों से भर देती है ! मैं रात उसे मुहं तक ढांप हर उस शह से दूर निकल जाती हूँ जो मुझे सताती है ! मैं खुश हूँ कि जिंदगी महरबां है मुझ पर ........अब कोई जिक्र नहीं और फ़िक्र भी नहीं क्यूंकि रिश्ता अब कोई उस नाम का है ही नहीं !
कभी जी कर देखें ,कभी अमृता -इमरोज बन कर देखें ! देह के पार भी कोई दुनिया है जो हज़ारों बरस से उसके मेरे बीच इश्क का समंदर बन रोज़ ही उतरती है ! ये सफ़र उसके नाम का उसी के साथ हो चला है !
मैं नज़्म लिख रही हूँ , वो कहानी लिख रहा है ! किसी दिन साथ छापेंगे ! आप पढियेगा जरूर.........
मैं तुमको उन लम्हों से चुरा लाई हूँ या तुमने मुझे ढूंढ निकाला है !! हहहहा ..... ये रोज की लड़ाई है और जीतता कोई नहीं ! हम दोनों ही हारना चाहते हैं ! ये वक़्त और चाँद से दूरी कुछ नहीं है। सांसों की लय पर सफर तय किया जा सकता है। मीलों चला जा सकता है और बरसों तक निभाया जा सकता है। जो कुछ हमने पाया ,जो कुछ हमने जिया , वो महक रहा है मेरे चारों ओर।
तुम बात करते करते कहीं गुम जाते हो और मैं सुनते- सुनते कहीं और निकल जाती हूँ। हमारे पास इतनी कहानियां हैं ,इतने फ़साने हैं कि जमाने बीत जाएंगे खत्म होने में पर वो किस्से खत्म नहीं होंगे। चलो छोड़ो..... हम अक्सर एक दूसरे को कहते हैं और फिर से उसी किसी सिरे को पकड़ कर उस सिलसिले को दफन करने लगते हैं। ये साथ का रोना ,साथ का हंसना...... अच्छा लगता है !
मुस्कुराहटें बिखर रही हैं ! चेहरे पर तैरते सुकून और तुम्हारी ख्वाहिशों की दलीलें मेरे आसपास रुमानियत का जंगल उगा रही है।
कौन इतनी फ़िक्र करता है कि चाँद को उदास नज़र से ना देखा जाये या उदास किसी भी ग़ज़ल और किसी भी चुभने वाले लम्हों को जमींदोज़ कर मुझसे दूर कर दिया जाए । अब जिंदगी की टाइम लाइन को मैंने तुम्हारे हवाले कर दिया है ,तुम जो चाहे रखो ,जिसे चाहे रखो. ....... ये पासवर्ड मुसीबतों का फेरा है ! जो घर में ताला नहीं लगाता उसके लिए ये सब सम्भालना भी बेकार है........ बस मैं और मेरा सुकून ,मेरी आवारगी ....... मेरे साथ चल ! सब बवाल से दूर , बस खामोश हम -तुम .........
तुम्हारी आवाज़ मेरे आँचल को सितारों से भर देती है ! मैं रात उसे मुहं तक ढांप हर उस शह से दूर निकल जाती हूँ जो मुझे सताती है ! मैं खुश हूँ कि जिंदगी महरबां है मुझ पर ........अब कोई जिक्र नहीं और फ़िक्र भी नहीं क्यूंकि रिश्ता अब कोई उस नाम का है ही नहीं !
कभी जी कर देखें ,कभी अमृता -इमरोज बन कर देखें ! देह के पार भी कोई दुनिया है जो हज़ारों बरस से उसके मेरे बीच इश्क का समंदर बन रोज़ ही उतरती है ! ये सफ़र उसके नाम का उसी के साथ हो चला है !
मैं नज़्म लिख रही हूँ , वो कहानी लिख रहा है ! किसी दिन साथ छापेंगे ! आप पढियेगा जरूर.........
बहुत सुन्दर रचना ! बार बार पढ़ने और लिखने को मन करता है आपकी आवारगी को
ReplyDeleteशुभकामनायें और दिल से सलाम आपके लेखन को .....यूँ ही भटकते टहलते सुबह से शाम हो गयी …परिंदे ,पहाड़ ,जंगल नदी -ताल के किनारे रूह बसी है ! ताल में तैरती रोशनाई मेरी साँसों की उड़ान को रफ्तार देती हैं …मैं उसके ख्याल की रहगुज़र का बाशिंदा बस नाम पे बसर करता हूँ !