Thursday 7 January 2016

ये सफर मज़ेदार है....... मेरी आवारगी का दरिया हो , इश्क़ को समंदर हो जाना है।

वो एक पल होता है जिसमें जिंदगी या तो खत्म हो जाती है या फिर से जी उठती है........ आशाओं और अपेक्षाओं के बीच डूबती उतरती ख्वाहिशें और ख्वाहिशों की बेहिसाब बारिश में भीगते हम -तुम। तुम कब समंदर बन गए पता ही नहीं चला मैं कब सिमट के दरिया रह गयी नहीं पता। बरसों गुज़र गए तुम खार से उलझते रहे मैं गति से उलझती रही। तुम कब मेरे मन के किसी कोने से विस्तार पा किनारों से पार हो गए ,कैसे मैं जिंदगी की ताल -बे -ताल पर बहती रही......... कोई तो हिसाब होना चाहिये ना !

कभी कभी जी करता है कि तुम कुछ कहो और हज़ार सवाल  पूछो। तुम कुछ कभी नहीं पूछते , क्यों सिर्फ मुस्कुरा कर हाथ आगे बढ़ा देते हो ? नाराज़गी इस बात से भी कि कभी तो समंदर दरिया से उलझे ..... हाहाहा !
मुझे पता है तुम कहोगे कि क्या होगा पूछने से ? क्या जवाब दोगी तुम ? हम्म ,उसका कहना भी सही है , जब  जवाब कुछ नहीं तो सवाल पूछने भर से क्या होगा ! ये भी सच है और झूठ ये भी कहाँ कि हम शिकायतों की जद से भी परे आ पहुंचे हैं।

कितना अनमोल एहसास है तुम्हारे होने का ! हजारों दास्तानें हैं जो तुमको सुनानी हैं , तुमसे कहनी हैं ,कुछ पल हैं जो तुमसे साझा करने हैं……चुप से हाथ थामे चलते रहने में भी कितना सुकून है। 

सुकून की गर्माहटों की बीच जिंदगी के तमाशे चलते रहते हैं। कभी खुद पर हंसने के पल कभी खुद पर रो देने के पल ...... सब कुछ फिर वहीं तुम पर आकर खत्म हो जाते हैं। लहरों से आते हो और मन की हर शंका को बहा ले जाते हो। मैं फिर से जी उठती हूँ , मैं फिर से बह निकलती हूँ। 

कहीं तुमने लिखा था कि तुम्हारे और मेरे ख्यालों के बीच समंदर का ये शोर भी तुम्हें पसंद नहीं लेकिन देखो वक्त ने तुमको ही समंदर बना दिया। कितने खामोश दिख रहे हो पर भीतर के शोर की आवाज़ मैं सुन पा रही हूँ। हमने ऐसे ही जीना सीख लिया है। तुम आकाश से जा मिले हो मैं ककंर -पत्थरों को पार करती ,समेटती , खुद को आगे ठेलती जा रही हूँ। 

ये सफर मज़ेदार है.......  मेरी आवारगी का दरिया हो, इश्क़ को समंदर हो जाना है। जी भर के चाहा है जिंदगी ने मुझको और मैंने समंदर को। जब समंदर से निकली तो जिंदगी ने मीठा कर दिया अब ख्वाहिश ये कि मैं जिंदगी से बाहर आऊं तो समंदर का खार मेरे रोम रोम का निशां खत्म करे ,मेरा वजूद  तुम में इस कदर घुल जाये कि मैं लहर दर दर लहर तुममें फिर फिर मिलती ही रहूँ ..... 

उफ्फ्फ ये ख्वाहिशें ! ना जीने दें ना मरने दें..... पर अच्छा है कि ये मेरी आवारगी की लौ को दिए में तेल रहने तक जिलाये रखें बाकी हवाओं को किसने रोका है , मैं वहीं थमी हूँ आप जम के बहते रहिये !




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