Saturday 9 January 2016

अकेले चलना और चले जाना ही नियति है तो ये रवायतों के मेले फिजूल हैं.…….

तुमने अपना फ्लैट क्यों बेचा !!
तुम क्यों बुलाते रहे मुझको !!
क्यों तुम मुझे ..... ...... 
वो फोन पर उलझ रही थी ,इस बात से बेख़बर कि आसपास कोई है ,उसकी आवाज़ मेरे कमरे तक आ रही थी। कॉलेज में अक्सर उलझते देखती हूँ इन लड़कियों को फोन पर ! नज़रंदाज़ कर दिया पर आवाज़ की तल्खी और दर्द मेरे जेहन में उतरा जा रहा था। मन किया कि उसको बुला कर पूछूँ ..........  पर ..... 

खैर !! वो एकआध घंटा उससे उलझती रही फिर आवाज़ खामोश हो गयी। मैं भी भूल सी गयी। 
एक दिन बाद जब शहर लौटी ,अखबार उठाया तो खबर पर नज़र गयी कि कुछ दूरी पर ही बसने वाले परिवार के तीन लोगों ने खुदकुशी कर ली। अफ़सोस हुआ , अखबार एक ओर रख उठ गयी। 

घंटी घनघना उठी ........ लड़की आपके कॉलेज में पढ़ती थी। परेशान थी ,तीन साल से सगाई का रिश्ता था ,टूट गया था .......... कर्जा था ,लड़की पर दवाब था ....... दूसरी तरफ से और भी बहुत कुछ कहा जा रहा था ! मैं शायद कुछ सुन ही नहीं पा रही थी....... 

तुम सोचते हो मेरा उसके साथ चक्कर है ,तुम ने मुझे उसके साथ कब देखा ? तुम मुझे अपनी मर्जी से ले जाते रहे ........ ! उस लड़की की आवाज़ें मेरे कानों में झनझनाने लगी। 

लड़की ,उसके पापा और उसकी माँ तीनों दुनिया से विदा हो गए। 

उस गली की जिंदगी दो दिन के बाद सामान्य हो गयी। फुसफुसाहटों का दौर चल रहा है। कर्जा था , दहेज़ का चक्कर था , बेटी पापा -मम्मी से नाराज़ थी....... मैं चुप से गुज़र आती हूँ। 

आसपास कितने घर हैं ,कितने लोग ,कितने कंधे ......... पर तीनों में से किसी को कोई भी नहीं मिला जो इस लौ को बुझने  से बचा पाता। हम सब साथ हैं पर कितने अकेले हैं ........ कितना डर है , कितने भय में जीना सिखाया जाता है। 

काश !! उस पल में उससे बात कर लेती ! काश वो भी रो पाती.......... पर ऐसा नहीं होना था। हर कोई उतना खुशनसीब भी नहीं होता कि उस दौर में कोई हाथ आगे बढ़ा के कह भर दे कि हम साथ हैं ना .......... आप चिंता न करिये !! जब बीतती है तो दर्द का अहसास जोर मारने लगता है और वक़्त कोरों को फिर से नम कर जाता है। 

बात गयी ,कल सब मेहमान भी उस आँगन से चले जाएंगे .........  जो पीछे रह गए वो भी उनके बिना जीना सीख लेंगे पर हम जो जिन्दा हैं कब सीखेंगे कि किसी को इतना भी दर्द न दें कि दर्द ही जिंदगी बन जाए। जो बाँट नहीं सकते उसे दे कर जिए तो क्या जिए ? 

जिन्दा होना और जिंदगी के साथ होना दो दीगर बातें हैं। कुछ और नहीं कर सकते तो कमजोर पलों में हाथ बढ़ा उबार लीजिये बाकि तो जो है सो हईए ही ! किस दोस्ती किस नाते रिश्तों का भरम पाले बैठे हैं ....... ?

अकेले चलना और चले जाना ही नियति है तो ये रवायतों के मेले फिजूल हैं और अगर ये सब काम के हैं तो क्या सब सिर्फ जश्न के साथी हैं ?

सवालों से उलझ रही हूँ। जवाब भी है पर अनजान बन बच निकलना चाहती हूँ। सच यही कि कभी कभी अपना ही सामना हो जाए तो डर लगने लगता है। क्यों नहीं पूछा उससे ? पर पूछ के भी क्या हो जाता ....... खुद से विश्वास डगमगा जाता है ,कभी लौट आता है। भाग्य भी कोई चीज होती है......  बहुत बहाने है खुद को समझाने के ,समझा ही लूंगी !


चलते हैं  ! जो जीती हूँ लिख देती हूँ , आप सही गलत ,नैतिक -अनैतिक सब तय करने के लिए स्वतंत्र है। 

मस्त रहिये ! खुश रहिये ! चलते रहिये !


1 comment:

  1. अच्छा लिखा है।जिन्दा होना और जिंदगी के साथ होना दो दीगर बातें हैं। कुछ और नहीं कर सकते तो कमजोर पलों में हाथ बढ़ा उबार लीजिये बाकि तो जो है सो हईए ही ! किस दोस्ती किस नाते रिश्तों का भरम पाले बैठे हैं

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